11वीं कक्षा में मैं ने साइंस के मैडिकल ग्रुप के विषय लिए. अंगरेजी को छोड़ कर मैं ने बाकी चारों विषयों की ट्यूशन पढ़ने को सब से बढि़या व महंगे कोचिंग संस्थान में प्रवेश लिया. वहां की तगड़ी फीस मम्मीपापा ने माथे पर एक भी शिकन डाले बिना कर्जा ले कर भर दी.
कड़ी मेहनत करने का संकल्प ले कर मैं पढ़ाई में जुट गया. दोस्तों से मिलना और बाहर घूमनाफिरना काफी कम कर दिया. क्लब जाना बंद कर दिया. बाहर घूमने जाने के नाम से मुझे चिढ़ होती.
‘‘मम्मीपापा, मैं जो नियमित रूप से पढ़ने का कार्यक्रम बनाता हूं, वह बाहर जाने के चक्कर में बिगड़ जाता है. आप दोनों मुझे अकेला छोड़ कर जाते हो, तो खाली घर में मुझ से पढ़ाई नहीं होती. मेरी खातिर आप दोनों घर में रहा करो, प्लीज,’’ एक शनिवार की शाम मैं ने उन से अपनी परेशानी भावुक अंदाज में कह दी.
‘‘रवि, पूरे 5 दिन दफ्तर में सिर खपा कर हम दोनों तनावग्रस्त हो जाते हैं. अगर शनिवारइतवार को भीक्लब नहीं गए, तो पागल हो जाएंगे हम. हां, बाकी और जगह जाना हम जरूर कम करेंगे,’’ उन के इस फैसले को सुन कर मैं उदास हो गया.
सुख देने व मनोरंजन करने वाली आदतों को बदलना और छोड़ना आसान नहीं होता. मम्मीपापा ने शुरू में कुछ कोशिश की, पर घूमनेफिरने की आदतें बदलने में दोनों ही नाकाम रहे.
उन्हें घर से बाहर घूमने जाने का कोई न कोई बहाना मिल ही जाता. कभी बोरियत व तनाव दूर करने तो कभी खुशी का मौका होने के कारण वे बाहर निकल ही जाते.
मैं उन के साथ नहीं जाता, पर चिढ़ और कुढ़न के कारण मुझ से पीछे पढ़ाई भी नहीं होती. मन की शिकायतें उसे पढ़ाई में एकाग्र नहीं होने देतीं.
चढ़ाई मुश्किल होती है, ढलान पर लुढ़कना आसान. वे दोनों नहीं बदले, तो मेरा संकल्प कमजोर पड़ता गया. मैं ने भी धीरेधीरे उन के साथ हर जगह आनाजाना शुरू कर दिया.
इस कारण मुझे वक्तबेवक्त मम्मीपापा की डांट व लैक्चर सुनने को मिलते. उन की फटकार से बचने के लिए मैं उन के सामने किताब खोले रहता. वे समझते कि मैं कड़ी मेहनत कर रहा हूं, पर आधे से ज्यादा समय मेरा ध्यान पढ़ने में नहीं होता.
अपनी लापरवाही के परिणामस्वरूप मैं पढ़ाई में पिछड़ने लगा. टैस्टों में नंबर कम आने पर मम्मीपापा से खूब डांट पड़ी.
‘‘अपनी लापरवाही की वजह से कल को अगर तुम डाक्टर नहीं बन पाए, तो हमें दोष मत देना. अपना जीवन संवारने की जिम्मेदारी सिर्फ तुम्हारी है, क्योंकि अब तुम बड़े हो गए हो,’’ मारे गुस्से के मम्मी का चेहरा लाल हो गया था.
यही वह समय था जब अपने मम्मीपापा के प्रति मेरे मन में शिकायत के भाव जनमे.
‘मेरे उज्ज्वल भविष्य की खातिर मम्मीपापा अपने शौक व आदतों को कुछ समय के लिए बदल क्यों नहीं रहे हैं? सुखसुविधाओं की वस्तुएं जुटा देने से ही क्या उन के कर्तव्य पूरे हो जाएंगे? मेरे मनोभावों को समझ मेरे साथ दोस्ताना व प्यार भरा वक्त गुजारने का महत्त्व उन्हें क्यों नहीं समझ आता?’ मन में उठते ऐसे सवालों के कारण मैं रातदिन परेशान रहने लगा.
तब तक क्रैडिट कार्ड का जमाना आ गया. यह सुविधा मम्मीपापा के लिए वरदान साबित हुई. जेब में रुपए न होने पर भी वे मौजमस्ती की जिंदगी जी सकते थे.
उन की दिनचर्या व उन के व्यवहार के कारण मेरे मन में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती. उन से कुछ कहनासुनना बेकार जाता और घर में ख्वाहमख्वाह का तनाव अलग पैदा होता.
मैं सचमुच डाक्टर बनना चाहता था. मैं ने इस नकारात्मक ऊर्जा का उपयोग पढ़नेलिखने के लिए करना आरंभ किया. मम्मीपापा के साथ ढंग से बातें किए हुए कईकई दिन गुजर जाते. मन के रोष व शिकायतों को भुलाने के लिए मैं रात को देर तक पढ़ता. मुझे बहुत थक जाने पर ही नींद आती वरना तो मम्मीपापा के प्रति गलत ढंग के विचार मन में घूमते रह कर सोने न देते.
मेरी 12वीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षाओं के दौरान भी मम्मीपापा ने अपने घूमनेफिरने में खास कटौती नहीं की. वे मेरे पास होते भी, तो मुझे उन से खास सहारा या बल नहीं मिलता, क्योंकि मैं ने उन से अपने दिल की बातें कहना छोड़ दिया था.
बोर्ड की परीक्षाओं के बाद मैं ने कंपीटीशन की तैयारी शुरू की. अपनी आंतरिक बेचैनी को भुला कर मैं ने काफी मेहनत की.
बोर्ड की परीक्षा में मुझे 78% अंक प्राप्त हुए, लेकिन किसी भी सरकारी मैडिकल कालेज के लिए हुए कंपीटीशन की मैरिट लिस्ट में मेरा नाम नहीं आया.
मेरी निराशा रात को आंसू बन कर बहती. मम्मीपापा की निराशा कुछ दिनों के लिए उदासी के रूप में और बाद में कलेजा छलनी करने वाले वाक्यों के रूप में प्रकट हुई.
मेरा डाक्टर बनने का सपना अब प्राइवेट मैडिकल कालेज ही पूरा कर सकते थे. उन में प्रवेश पाने को डोनेशन व तगड़ी फीस की जरूरत थी. करीब 15-20 लाख रुपए से कम में डाक्टरी के कोर्स में प्रवेश लेना संभव न था.
हमारे रहनसहन का ऊंचा स्तर देख कर कोई भी यही अंदाजा लगाता कि मेरी उच्च शिक्षा पर 15-20 लाख रुपए खर्च करने की हैसियत मेरे मम्मीपापा जरूर रखते होंगे, पर यह सचाई नहीं थी. तभी मैं ने निराश और दुखी अंदाज में मम्मीपापा के सामने प्राइवेट मैडिकल कालेज में प्रवेश लेने की अपनी इच्छा जाहिर की.
पहले तो उन दोनों ने मेरे नकारापन के लिए मुझे खूब जलीकटी बातें सुनाईं. फिर गुस्सा शांत हो जाने के बाद उन्होंने जरूरत की राशि का इंतजाम करने के बारे में सोचविचार आरंभ किया. इस सिलसिले में पापा पहले अपने बैंक मैनेजर से मिले.