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आज अधिकारियों के मुआयने का दिन था. 2 लोगों की टीम थी. सुनने में आया कि दोनों किसी स्कूल के प्रधानाचार्य हैं. कहां 1200, कहां 400. आज 400 बच्चे ही थे. स्कूल में एक अलग तरह की शांति थी. सभी खुश थे. खासतौर पर अध्यापकगण. उन्हें आज बच्चों पर ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. बच्चे कुछ अप्रत्याशित होने की आशंका से सहमे हुए थे. उन में आज अनुशासन गजब का था. रोजाना से अलग, आज बड़े ही सलीके से वे प्रार्थना के लिए ग्राउंड पर आए. आज सुबह से ही मालिक अपनी 20 लाख रुपए वाली गाड़ी के साथ स्कूल में जमे हुए थे. क्लास में अनुशासन के साथ बच्चों के जाने के बाद दिन की शुरुआत अच्छी हुई तो सभी ने चैन की सांस ली. मालिक ग्राउंड पर कुरसी लगाए स्कूल की एकएक गतिविधि पर नजर रखे हुए थे. रोजाना से अलग आज सभी कक्षाओं में पाठ्यक्रम योजना की एक प्रति रखी गई थी. जिस पर हर टीचर, क्या पढ़ाया, का जिक्र करते हुए जाते. ब्लैकबोर्ड पर तारीख, विषय लिखना अनिवार्य कर दिया गया था. आदत के विपरीत यह सब अध्यापकों को अखर रहा था. अंदर ही अंदर वे डर भी रहे थे कि जैसा उन्हें समझाया गया है उस से इतर कुछ गलत न हो जाए उन से.

अधिकारी 10 बजे के बाद मालिक की दूसरी गाड़ी से आए. वे भी जानते थे कि जल्दी क्या है. मालिक से जितनी इज्जत करवानी है, करवा लो. फिर तो कोई पूछेगा नहीं. जांच तो महज औपचारिकता है. मान्यता देने की कसौटी से उसे कुछ लेनादेना नहीं. बना खेल के मैदान के स्कूल चल रहा है. अंधेर नगरी चौपट राजा. परे स्कूल में हलचल मच गई. मानो  बरात दरवाजे पर आ गई हो. सब  सतर्क हो गए. अध्यापकों को मालिक का डर ज्यादा था. अधिकारियों के साथ वे भी चल रहे थे. सब से पहले वे कंप्यूटर कक्ष में आए. कंप्यूटर पर काम करने वाले बच्चों का निरीक्षण कर, उस के अध्यापक से बातचीत करने लगे.

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