‘‘ऐसा क्या हो गया मीताजी कि आप चाय पीने नहीं गईं?’’ सुरेश ने व्यंग्य भरे लहजे में पूछा तो अपने विचारों में खोई मीता चिहुंक उठी.
‘‘आप भी तो नहीं गए,’’ मीता को और कुछ नहीं सूझ तो उस ने उलटे प्रश्न कर डाला.
‘‘मैं जा रहा हूं. आप को अकेला बैठा देखा तो पूछ लिया,’’ सुरेश बोला.
बाहर बरसात थम चुकी थी. सबकुछ भीगाभीगा सा था. मीता ने सुबह नाश्ता नहीं किया था इसलिए अब पेट में चूहे दौड़ रहे थे. उसे सुबह की घटना याद आ गई.
‘मुझे आज थोड़ी देर हो जाएगी,’ मीता ने तवे से चपाती उतारते हुए देवेश से कहा.
‘कितनी?’ देवेश ने पूछा.
‘यही कोई एकडेढ़ घंटा.’
‘वैसे ही तुम्हें घर आने में साढ़े 7 बज जाते हैं. इस का मतलब यह हुआ कि आज तुम साढ़े 8-9 बजे तक आओगी?’ देवेश ने घूरते हुए मीता से कहा, ‘देख रहा हूं कि महीनेभर से ऐसा ही चल रहा है कि हर दूसरेतीसरे दिन दफ्तर में काम की वजह से तुम घर देर से आती हो.’
‘एडवरटाइजिंग का औफिस है, वहां मैं ही अकेली नहीं जो देर से घर लौटती हूं.’
‘लेकिन तुम्हारे अलावा वहां सभी पुरुष हैं. वैसे भी अगर काम इतना ज्यादा है तो सुबह एक घंटा पहले चली जाया करो पर रात को देर से आना ठीक नहीं.’
‘मेरे अलावा आयशा भी है उस औफिस में. मुझे कुछ नहीं होने वाला. औफिस की गाड़ी से ही घर वापस आऊंगी. वैसे अगर अभी मेहनत कर के सब के सामने खुद को काबिल साबित नहीं कर पाई तो अगली तरक्की मिलने से रही,’ किचन में सब्जी में छौंक लगाते हुए मीता ऊंची आवाज में बोली.