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इस वक्त. बाबूजी किस से बात कर रहे हैं. कौन हो सकता है उन के कमरे में...? कौन है इतनी रात गए. बाबूजी किस से बातें कर रहे हैं? यह सब सोच रोमी दरवाजे से ?ांकने लगी, देखा, अंदर कुंवर प्रताप और बाबूजी में बातें चल रही थीं. एक पल को रोमी ने सोचा, लौट जाए, वैसे भी कुंवर प्रताप को देखते ही उस का खून खौल जाता है. मगर जैसे ही वह जाने को हुई, उस के कानों में आवाज टकराई, ‘‘क्या करता साली, मानती ही नहीं थी. बड़ी सावित्री बन रही थी. तुम्हारे भाई की ब्याहता हूं, छोड़ दो मु?ो...’’ एक पल को रोमी पत्थर हो गई मानो कोई भारी चीज उस के सिर पर दे मारी गई है. यह तो उस के बारे में चर्चा हो रही है. शायद, बाबूजी कुंवर प्रताप को डांट रहे हैं, यह सोच उस का मन जानने को इच्छुक हुआ.

‘‘अरे नालायक, तु?ा से किस ने कहा था पहली ही बार में मांस नोंचने को. अरे, जानता नहीं, वह परदेस रह आई है, नजाकत वाली बनती है, उस के मिजाज को सम?ा कर वैसा पासा फेंकना था. पहले उसे अपनी गिरफ्त में लेता, प्यार से बहलाताफुसलाता. तू ने तो पहली बार में जवानी का जोर दिखा दिया. सारा कियाधरा गुड़गोबर कर दिया. अब कोई और उपाय खोजना होगा.’’ ‘‘अब क्या करें?’’ ‘‘अरे, तू ठाकुरों की औलाद है. एक औरत भी काबू न हो पाई तु?ा से? प्यार से, प्यार से नहीं तो धिक्कार के... सम?ा रहा है न मेरी बात. अरे, एक विधवा को काबू करने में इतना सोच रहा है. ज्यादा सोच मत, मोम को पिघलने में ज्यादा देर नहीं लगती और फिर विदेश में रही है, ज्यादा ऊंचनीच का विचार वह भी न करेगी. सोच ले, अगर निकल गई न चिडि़या हाथ से, तो फिर बस... आधी जायजाद गई, सम?ा ले. अच्छा है नाग फन फैलाए, इस से पहले उसे कुचल देना चाहिए. पड़ी रहेगी घर में रखैल बन कर.

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