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हादसा इतना भयानक था कि रोमी की जिंदगी के सारे रंग छीन ले गया और एक कभी न खत्म होने वाला इंतजार दे गया मांबेटी को. बेटा सात समंदर पार ही सही, उस की सलामती तसल्ली देती थी एक मां के दिल को. मगर इस हादसे ने ठकुराइन को जिंदा लाश बना दिया. उस की सारी ताकत मानो बेटे के साथ चली गई. वह अपनी बोलने की शक्ति खो बैठी. बस, बिस्तर पर पड़ीपड़ी आंखों से आंसू बहाती रहती. रणवीर के दोस्तों ने अंतिम संस्कार तो वहीं कर दिया. आज रोमी बाकी के कर्मकांड को संपन्न करने हेतु भारत आई है. विमान हवाई अड्डे के जैसेजैसे करीब आता जा रहा था, रोमी खुद को संभाल नहीं पा रही थी. कैसे जाएगी वह परिवार वालों के सामने. स्वयं को अपराधिनी महसूस कर रही थी वह. कभी सोलह शृंगार कर इसी हवाई अड्डे से अपना नया संसार रचने चली थी,

आज अपना सारा सुहाग उस धरती पर लुटा कर तमाम उदासियों को अपने दामन में समेटे लौट रही है. खैर, विमान अड्डे पर रुका, परिवार वाले बेसब्री से रोमी का इंतजार कर रहे थे. रोमी एक हाथ में नन्ही बेटी को संभाले, दूसरे में रणवीर का अस्थिकलश थामे विमान से बाहर उतरी. जन्मदात्री के आंसू न रुकते थे. कैसे ढाढ़स बंधाए अपनी बेटी को, शब्द और हिम्मत दोनों ही हार रहे थे. पलकों पर बैठाए रखने वाले पापा का बुरा हाल था. कैसे उन की मासूम बच्ची सात समंदर पार अकेली इतने बड़े संकट को ?ोल पाई. धिक्कार है पिता हो कर भी वे दुख की इस घड़ी में बेटी के साथ नहीं थे. हवाई अड्डे से बाहर आते ही रोमी को मांपापा दिखाई दिए. रणवीर के छोटे भाई कुंवर प्रताप ने दौड़ कर उस के हाथ से अस्थिकलश ले लिया तो रोमी के भाई ने नन्ही परी को. रोमी दौड़ कर मांपापा के सीने से लिपट गई.

आखिर इतने दिनों चट्टान बनी रोमी मातापिता के प्यार की आंच पा मोम की तरह पिघलती चली गई. आज अपनों को देख उस के दिल का सारा गुबार आंसू की धारा में बहने लगा. ‘‘मां.’’ ‘‘हाय, मेरी बच्ची. कैसे इतनी दूर, अकेली, इतना बड़ा दुख सहती रही. मेरी फूल सी बच्ची पर जरा भी रहम न किया. अरे, इस नन्ही बच्ची ने क्या बिगाड़ा था किसी का जो होते ही सिर से बाप का साया तक छीन लिया.’’ उजड़ी मांग और जिंदगी के सारे रंग खो चुकी रोमी ससुराल पहुंची तो सासुमां को निष्प्राण देख उस का जी भर आया. ठकुराइन बिस्तर पर पड़ेपड़े कभी बहू की उजड़ी मांग को देखती तो कभी नन्ही पोती को.

बस, बहते आंसू ही उस की व्यथा कह पाते और कर भी क्या सकती थी वह. अपने और परी के प्रति घर वालों का स्नेह देख रोमी को तसल्ली थी कि वह अपनी जमीन पर अपनों के बीच लौट आई. अब भला विदेश जा कर वह क्या करेगी. वहां रणवीर के संग बीते पलों के और क्या रखा है? वे यादें तो उस के जीवन का अटूट हिस्सा हैं वह कहीं भी रहे, उस के साथ रहनी ही हैं. यहां रह कर वह रणवीर के परिवार का हिस्सा बनी रहेगी. बेटी को भी स्नेह की छांव मिलेगी. ठाकुरों की ठकुराई भले ही चली गई हो मगर आज भी रणवीर का परिवार गांव का ठाकुर कहलाता है. बड़े घर के नाम से सभी सम्मान करते हैं उस परिवार का. कम से कम एक सुरक्षा का हाथ तो उस के सिर पर रहेगा, उसे और क्या चाहिए. सोचा वह लिख देगी अपने मित्रों को कि उस की प्रौपर्टी सेल कर दें,

 

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