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लेखिक-श्रुति अग्रवाल

एक अनजाना खौफ मां को अंदर ही अंदर डराए जा रहा था. इसी कारण उन का व्यवहार भी अजीब सा हो गया था. विपिन मां के इस व्यवहार से हैरानपरेशान था…

उस की मुखमुद्रा कठोर हो गई थी और हाथ में लिया पेन कागज पर दबता चला गया. ‘खट’ की आवाज हुई तो विपिन चौंक कर बोला, ‘‘ओह मम्मी, आप ने फिर पेन की निब तोड़ दी. आप बौलपेन से क्यों नहीं लिखतीं, अब तो उसी का जमाना है.’’ विपिन के सु?ाव को अनसुना कर वे बेटे के हाथ को अपनी गरदन से निकाल कर बालकनी में चली गईं. बिना कुछ कहेसुने यों मां का बाहर निकल जाना विपिन को बेहद अजीब लगा था. पर इस तरह का व्यवहार वे आजकल हमेशा ही करने लगी हैं. उस की सम?ा में नहीं आ रहा था कि मां ऐसा क्यों कर रही हैं.

आज ही क्या हुआ था भला? वह औफिस से लौट कर आया तो पता चला मम्मी उस के ही कमरे में हैं. वहां पहुंच कर देखा तो वे उस की स्टडी टेबल पर ?ाकी कुछ लिख रही थीं. विपिन ने कुरसी के पीछे जा, शरारती अंदाज में उन के गले में बांहें डाल कर किसी पुरानी फिल्म के गीत की एक कड़ी गुनगुना दी थी, ‘तेरा बिटवा जवान हो गवा है, मां मेरी शादी करवा दे.’ इतनी सी बात में इतना गंभीर होने की क्या बात हो सकती है? वे तो पेन की निब को कागज पर कुछ उसी अंदाज में दबाती चली गई थीं जैसे किसी मुजरिम को मृत्युदंड देने के बाद जज निब को तोड़ दिया करते हैं.

इस समय विपिन सीधा सुधा से मिल कर आया था और आज उन दोनों ने और भी शिद्दत से महसूस किया था कि अब एकदूसरे से दूर रहना संभव नहीं है. फिर अब परेशानी भी क्या थी? उस के पास एक अच्छी नौकरी थी, अमेरिका से लौट कर आने के बाद तनख्वाह भी बहुत आकर्षक हो गई थी. फ्लैट और गाड़ी कंपनी ने पहले ही दे रखे थे. और फिर, अब वह बच्चा भी नहीं रहा था.

उस के संगीसाथी कब के शादी कर अपने बालबच्चों में व्यस्त थे. अब तक तो खुद मम्मी को ही उस की शादी के बारे में सोच लेना चाहिए था. पर पता नहीं क्यों उस की शादी के मामले में वे खामोश हैं. यद्यपि अमेरिका जाने से पहले वे अपने से ही 2-1 बार शादी का प्रसंग उठा चुकी थीं. पर उस समय उस के सामने अपने भविष्य का प्रश्न था. वह कैरियर बनाने के समय में शादी के बारे में कैसे सोच सकता था? उसे ट्रेनिंग के लिए पूरे 2 वर्षों तक अमेरिका जा कर रहना था और मम्मी इस सचाई को जानती थीं कि किसी भी लड़की को ब्याह के तुरंत बाद सालों के लिए अकेली छोड़ जाना युक्तिसंगत नहीं लगता. सो, हलकेफुलके प्रसंगों के अलावा उन्होंने इस विषय को कभी जोर दे कर नहीं उठाया था. यही स्वाभाविक था. वहीं, उस ने भी कभी मां से सुधा के बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं सम?ा थी. सोचा था जब समय आएगा, बता ही देगा.

पर अब हालात बदल चुके हैं. अपने संस्कारजनित संकोच के कारण यह बात वह साफसाफ मां से कह नहीं पा रहा था. परंतु आश्चर्य तो यह है कि मां भी अपनी ओर से ऐसी कोई बात नहीं उठातीं. हंसीमजाक में वह कुछ इशारे भी करता, तो उन की भावभंगिमा से लगता कि वे इस बात को बिलकुल सम?ाती ही

न हों.

मम्मी का व्यवहार बड़ा बदलाबदला सा है आजकल. अचानक ही मानो उन पर बुढ़ापा छा गया है, जिस से उन के व्यक्तित्व में एक तरह की बेबसी का समावेश हो गया है. चुप भी बहुत रहने लगी हैं वे. वैसे, ज्यादा तो कभी नहीं बोलती थीं. उन का व्यक्तित्व संयमित और प्रभावशाली था, जिस से आसपास के लोग जल्दी ही प्रभावित हो जाते थे. हालात ने उन के चेहरे पर कठोरता ला दी थी. फिर भी उस के लिए तो ममता ही छलकती रहती थी.

वह जब 3-4 साल का रहा होगा तब किसी दुर्घटना में पिताजी चल बसे थे. मायके और ससुराल से किसी तरह का सहारा न मिलने पर मम्मी ने कमर कस ली और जीवन संग्राम में कूद पड़ीं. बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं, पर जीवन के प्रति बेहद व्यावहारिक नजरिया था. छोटी सी नौकरी और मामूली सी तनख्वाह के बावजूद उस को कभी याद नहीं कि उस के भोजन या शिक्षा के लिए कभी पैसों की कमी पड़ी हो. इसी से वह उन आंखों के हर इशारे की उतनी ही इज्जत करता था, जितनी बचपन में. शायद उन की ममता में ही वह ताकत थी, जिस ने उसे कभी गलत राह पर जाने ही नहीं दिया. मनचाहा व्यक्तित्व मढ़ा था उस का और फिर अपने कृतित्व पर फूली न समाई थीं.

पर यह सब विदेश जाने से पहले की बात है. अब तो मम्मी को बहुत बदला हुआ सा पा रहा था वह. अच्छीखासी बातें करतेकरते एकाएक वितृष्णा से मुंह फेर लेती हैं. हंसना तो दूर, मुसकराना भी कभीकभी होता है. तिस पर से पेन तोड़ने की जिद? उस ने स्पष्ट देखा है, निब अपने से नहीं टूटती, जानतेबू?ाते दबा कर तोड़ी जाती है.

उस दिन एक और भी अजीब सी घटना हुई थी. वह गहरी नींद में था, पर अपने ऊपर कुछ गीला, कुछ वजनी एहसास होने से उस की नींद टूट गई थी. उस ने देखा कि मम्मी फूटफूट कर रोए जा रही थीं. छोटे बच्चे की तरह उस का चेहरा हथेलियों में भर कर और अस्फुट स्वर में कुछ बड़बड़ा रही थीं, पर उस के आंखें खोलते, वे पहले की तरह खामोश हो गईं. वह लाख पूछता रहा, पर केवल यही कह कर चली गईं कि कुछ बुरा सपना देखा था. उस ने इतने सालों में पहली बार मम्मी को रोते हुए देखा था, जिस ने इतनी बड़ीबड़ी मुसीबतें सही हों, वह सपने से डर जाए? क्या ऐसा भी होता है?

इधर सुधा का मम्मी से मिलने का इसरार बढ़ता जा रहा था, क्योंकि उस के घर वाले उस के लिए रिश्ते तलाश रहे थे और वह विपिन के बारे में किसी से कुछ कहने से पहले एक बार मम्मी से मिल लेना चाहती थी, पर मम्मी का स्वभाव उसे कुछ रहस्यमय लग रहा था. इसीलिए विपिन पसोपेश में था और कोई रास्ता निकाल नहीं पा रहा था. एक बार उस के मन में यह विचार आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि घर में किसी दूसरी औरत के आने से मां डर रही हैं कि स्वामित्व का गर्व बंटाना पड़ जाएगा? उसे अपना यह विचार इतना ओछा लगा कि मन खराब हो गया. अपना घर मानो काटने को दौड़ रहा था. सो कुछ समय किसी मित्र के साथ बिताने की सोच विपिन बाहर निकल गया.

विपिन उन के व्यवहार से उकता कर घर से निकल गया है, यह उन्हें भी पता है. पर वह भी क्या करे? उन का तो सबकुछ स्वयं ही मुट्ठी से फिसलता जा रहा है. अंधेरों के अतिरिक्त और कुछ सू?ाता ही नहीं है. यह हरीभरी खूबसूरत बालकनी, जिस के कोनेकोने को सजातेसंवारते वे कभी थकती ही नहीं थीं, आज काट खाने को दौड़ रही है. हालांकि, यह जगह उन्हें बहुत पसंद थी. यहां से सबकुछ छोटा, पर खूबसूरत दिखता है. कुछ उसी तरह जैसे कर्तव्य की नुकीली धार पर से जिंदगी अब मखमलों पर उतर आई थी. शायद अब जीने का लुत्फ लेने का समय आ गया था. नौकरी छोड़ चुकी थीं, इसलिए उन के पास खूब सारा समय था रचरच कर अपने घर को सजाया था उन्होंने. इसी उत्साह में विपिन का 2 वर्षों के लिए अपने से दूर जाना भी उन को इतना नहीं खला था. उसे अपनी जिंदगी को रास्ते दिखाने हैं, तो हाथ आए मौके लपकने तो पड़ेंगे ही. वे क्यों अपने आंसुओं से उस का रास्ता रोकें?

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