मधुरिमा ने लाल ड्रैस के साथ लाल रंग की लिपस्टिक लगाई और जब वह आईने में देखने लगी तो उसे खुद अपने पर प्यार आ गया था.
मन ही मन खुद पर इतराते हुए वह सोच रही थी कि आज की डील तो फाइनल हो कर ही रहेगी. जब स्त्री हो कर उस का अपना मन खुद को देख कर काबू नहीं हो पा रहा है तो पुरुषों का क्या कुसूर?
औफिस पहुंची. मिस्टर देवेश उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उसे देखते ही उन्होंने शरारत से सीटी बजाई. ये ही तो हैं उन की कंपनी का तुरुप का इक्का. लड़की में गजब का टैलेंट हैं. वह जहां कहीं भी उन के साथ जाती हैं, डील करवा कर ही आती हैं. 23 वर्ष की उम्र के हिसाब से मधुरिमा काफ़ी तेज़ थी.
मिस्टर देवेश जैसे ही मधुरिमा के साथ बाहर निकले तो करिश्मा से टकरा गए. करिश्मा को देखते ही उन का मूड खराब हो गया था. करिश्मा अगर चाहे तो इस कंपनी के वारेन्यारे कर सकती है, पर उसे तो बस काम से मतलब है. प्रैजेंटेशन गजब का बनाती है और हर क्लाइंट को अपनी बात अच्छे से समझाने में सक्षम है. पर फिर भी वह आज तक उस लक्ष्मणरेखा को पार नहीं कर पाई है, जिसे बड़ी आसानी से पार कर के मधुरिमा ने अपने लिए सोने की लंका खड़ी कर ली थी.
मधुरिमा ज़्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. पर मर्दों को पटाने में दक्ष थी. यह ही उस की काबिलीयत थी जिस के सहारे वह धीरेधीरे एक रिसैप्शनिस्ट के पद से बौस की ख़ास बन गई थी. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि मधुरिमा, मिस्टर देवेश की उपपत्नी है. पर इन सब बातों से मधुरिमा की तेज रफ़्तार पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.
करिश्मा जब मधुरिमा से कहती, ‘मधु, हर कंपनी में ऐसा वर्क कल्चर नहीं होता है. कुछ स्किल्स बढ़ाओ, कब तक इस कंपनी में रेंगती रहोगी?’
मधुरिमा तब मुसकराते हुए बोलती, ‘जिस के पास जो है करिश्मा, वह उसे ही तो प्रयोग करेगा. तुम जैसी साधरण शक्लसूरत वाली लड़कियां मुझ से अधिक पढ़ालिखा होने पर भी, मुझ से कम कमा रही हैं. प्रैजेंटेशन तुम बनाती हो, पर प्रोजैक्ट मैं ही फाइनल करवा सकती हूं. मेरी बात मानो, इस मुर्दनी से चेहरे पर लिपस्टिक के एकदो कोट अवश्य लगा लिया करो, सामने वाले को अच्छा लगेगा.’
करिश्मा को मालूम था कि मधुरिमा कुछ गलत नहीं कह रही थी. पर वह उन लड़कियों में से नहीं थी जो काबिलीयत के बजाय लिपस्टिक के बलबूते पर तरक़्क़ी करती हैं.
अगले दिन औफिस में मिस्टर देवेश ने पार्टी का आयोजन किया था. पार्टी के मौके पर मिस्टर देवेश ने बोला, ‘हमारी इवैंट कंपनी के लिए आज बहुत बड़ा दिन है. मिस मधुरिमा की मेहनत के कारण हमें इस वर्ष का सब से बड़ा कौन्ट्रैक्ट मिला है.
दफ़्तर के सभी लोगों के चेहरों पर व्यंग्यात्मक मुसकान आ गई थी. मधुरिमा पार्टी की स्टार थी.
करिश्मा का मन खिन्न हो उठा था. दिनरात मेहनत कर के उस ने प्रैजेंटेशन बनाई थी. अगर प्रैजेंटेशन ही अच्छी न बनती तो उन लोगों को वहां एंट्री ही न मिल पाती. करिश्मा यही सब सोच रही थी कि विवेक हाथों में जूस का गिलास ले कर आ गया और बोला, ‘करिश्मा, क्या सोच रही हो?’
‘इस रंगबिरंगी दुनिया का यह उसूल है कि जो दिखता है वह ही बिकता है,’ करिश्मा बोली, ‘जानते तो हो , मैं चाह कर भी उस राह पर नहीं चल सकती.’
विवेक को करिश्मा से लगाव सा था. इस कंपनी में वह सब से अलग थी. विवेक करिश्मा को उत्साहित करते हुए बोला, ‘करिश्मा, तुम मेहनत करती रहो, मुझे विश्वास है कि तुम जरूर कोई करिश्मा कर के रहोगी.’
ग्रे और पर्पल सूट में करिश्मा बहुत ही सौम्य लग रही थी. वहीँ, मधुरिमा लाल फ्रौक में एकदम आग लग रही थी.
आज करिश्मा जैसे ही दफ़्तर में घुसी, तो देखा एक नया चेहरा मिस्टर देवेश के केबिन में था. विवेक करिश्मा को देख कर हंसते हुए बोला, ‘अब देखो, मधुरिमा की नई प्रतिद्वंद्वी आ गई है.’
करिश्मा गुस्से से बोली, ‘क्या पता काम में बढ़िया हो, तुम लड़कियों के बारे में बहुत जजमैंटल हो, विकास. हर छोटे कपड़े पहनने वाली लड़की नाक़ाबिल नहीं होती.’
मिस्टर देवेश की छोटी सी इवैंट कंपनी थी- ‘पार्टी मास्टर.’ मिस्टर देवेश कानपुर से दिल्ली नौकरी करने आए थे. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया था कि उन की नौकरी के वेतन में उन के बड़ेबड़े सपने पूरे नहीं हो सकते. इसलिए कुछ सालों बाद उन्होंने यह इवैंट मैनेजमैंट कंपनी खोल ली थी. शुरू के एकदो वर्ष के भीतर ही उन्हें समझ आ गया था कि मेहनत के साथसाथ इस क्षेत्र में सफल होने के लिए और भी हुनर चाहिए. धीरेधीरे उन की कंपनी में विवेक, करिश्मा, मधुरिमा, सोहैल और जस्सी जुड़ गए थे. सोहैल और जस्सी कंपनी के लिए प्रोजैक्ट लाते थे. उन प्रोजैक्ट के लिए प्लानिंग का काम करिश्मा और विवेक करते थे. लेकिन बहुत बार फाइनल होतेहोते डील अटक जाती थी. हाई सोसाइटी में बहुत सारे क्लाइंट्स को कुछ फ़ेवर चाहिए होते थे.
मिस्टर देवेश ने इशारों से करिश्मा को ये सब समझाना चाहा था लेकिन वह टस से मस नहीं हुई थी. तभी सोहैल के तहत मधुरिमा का इस कंपनी में पदार्पण हुआ था. मधुरिमा कपड़ों के साथसाथ विचारों में भी काफी खुली हुई थी. उस ने ‘पार्टी मास्टर’ को ग्लैमरस बना दिया था. कंपनी बहुत तेजी के साथ तरक्क़ी की राह पर अग्रसर थी. मधुरिमा कहने को किसी भी कार्य में