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‘‘उस के डर को मैं बखूबी समझ रहा था. वह एकदम पत्थर हो गई थी. मैं ने मेजर रंजीत से कहा, तुरंत डाक्टर को भेजो और इस के शरीर को कंबल से ढंकने का प्रबंध करो. आदेश का पालन हुआ, कंबल से जब उस ने शरीर को ढक लिया तो अनायास ही मेरे मुख से निकला, ‘माफ करना, बहन, इस समय हमारे पास इस से अधिक कुछ नहीं है. लड़ाई के मैदान में जनाना कपड़े नहीं मिलेंगे.’ पहली बार उस ने अपनी बड़ीबड़ी आंखों से मेरी ओर देखा. पहली बार मैं ने भी उसे गौर से देखा. गोरा रंग, सुंदर व कजरारी आंखें. सांचे में ढला शरीर, ऐसी सुंदरता मैं ने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी थी.

‘‘वह थोड़ी देर मुझे देखती रही फिर उस की आंखें छलछला आईं. उस की सीमा का बांध टूट गया था. परिवार को खोने का दुख, दुश्मनों के हाथों पड़ने का गम. भविष्य की अनिश्चितता. जीवन में अंधेरा ही अंधेरा था. उस का रोना जायज था. मैं उसे चुप नहीं कराना चाहता था. रोने से मन हलका हो जाता है. मैं ने मेजर रंजीत को पानी देने को कहा. उस ने पानी लिया. कुछ पीया, कुछ से अपना मुंह धो लिया. मैं ने मुंह पोंछने के लिए अपना रूमाल आगे किया. उस ने फिर एक बार मेरी ओर देखा. मैं बोला, ‘ले लो, गंदा नहीं है. बस, थोड़ी नाक पोंछी थी,’ और मुसकराया. मैं ने माहौल को हलका करने का भरसक प्रयत्न किया परंतु उस के चेहरे का दुख कम नहीं हुआ. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘बाथरूम जाना है.’ मैं ने अपने लिए निश्चित बाथरूम की ओर इशारा किया. वह अंदर गई.

‘‘‘सर, एक सुझाव है.’

‘‘‘यस, मेजर रंजीत.’

‘‘‘सर, अल्लड़ गांव में बहुत सा सामान पड़ा है जिसे हमारे जवानों ने छुआ तक नहीं. जैसे किचन का सामान, कपड़ों के टं्रक आदि. उन में इस लड़की के नाप के कपड़े मिल जाएंगे.’

‘‘‘गुड आइडिया.’

‘‘‘सर, वह लड़की.’

‘‘‘हमें पता ही नहीं चला, वह कब बाथरूम से निकल कर हमारे पीछे आ कर खड़ी हो गई थी. हम ने सोचा, उस ने हमारी बातें सुन ली थीं. ‘इस के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है,’ मैं ने कहा, ‘हमें आप का नाम नहीं पता, नहीं तो हम आप को नाम से पुकारते.’

‘‘कुछ देर वह चुप रही, फिर उस के मुख से निकला, ‘फातिमा सिद्दीकी’. पहली बार हम जान पाए कि उस का नाम फातिमा है. उस की आंखें फिर छलछला आईं. वह रोने भी लगी.

‘‘‘अब आप क्यों रो रही हैं? आप यहां बिलकुल महफूज हैं. मैं कर्नल अमरीक सिंह, राजपूताना राइफल्स का कमांडिंग अफसर, इस बात का यकीन दिलाता हूं.’

‘‘‘एक सवाल मुझे बारबार  साल रहा है. मैं अपनी  पाकिस्तान की फौज के रहते महफूज नहीं थी तो यहां दुश्मन की फौज में कैसे महफूज हूं?’

‘‘‘यह हिंदुस्तान की फौज है जो दुश्मनों के साथ दुश्मनी निभाती है और इंसानों के साथ इंसानियत,’ थोड़ी देर बाद मैं ने फिर कहा, ‘यह बताओ, आप के परिवार वालों को किस ने मारा?’

‘‘‘पाकिस्तान की फौज ने, घर की औरतों की इज्जत लूटने के लिए वे बहुत सी औरतों को अपने साथ भी ले गए. मैं आप की टुकड़ी की वजह से बच गई.’

‘‘‘इतने समय में आप को हिंदुस्तान और पाकिस्तान की फौज में अंतर नजर नहीं आया?’

‘‘‘जी.’

‘‘‘मैं ने आप को बहन कहा है. मेरी पूरी रैजिमैंट मेरा परिवार है. इस नाते आप भी इस परिवार की सदस्य हैं. हमारे देश में जिस को भी बहन कह दिया जाता है उस की रक्षा फिर अपनी जान दे कर भी की जाती है. यही हमारे देश और हमारी फौज की रिवायत है, परंपरा है.’

‘‘इतने में एक जवान ट्रंक ले कर हाजिर हुआ. मैं ने फातिमा को अपने लिए कपड़े चुनने के लिए कहा, ‘मुझे दुख है, मैं आप के लिए इस से अच्छा इंतजाम नहीं कर सका.’

‘‘मैं बाहर जाने लगा कि फातिमा अपने लिए कपड़े निकाल कर पहन सके. उसी समय मेजर रंजीत ने आ कर बताया कि मोरचाबंदी पूरी हो चुकी है और अल्लड़ गांव क्लियर कर दिया गया है.

‘‘‘अच्छी बात है, पर सभी को आगाह कर दिया जाए कि पूरी चौकसी बरती जाए. दीपक जब बुझने लगता है तो उस की लौ और बढ़ जाती है. सांप घायल हो कर और खतरनाक हो जाता है, इसलिए सावधान रहा जाए.’

‘‘‘यस सर.’

‘‘‘देखो, अभी तक डाक्टर क्यों नहीं आया.’

‘‘‘सर, मैं हाजिर हूं. कुछ घायल जवानों को संभालना जरूरी था, इसलिए थोड़ी देर हो गई.’

‘‘‘ओके फाइन. ड्रैसिंग के साथ आप यह भी जांच करें कि कोई सीरियस चोट तो नहीं है. इस के बाद हमें इसे तुरंत पीछे कैंप में भेजना होगा. तब तक इस की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है.’

‘‘‘जी सर. अगर आप इजाजत दें तो मैं इलाज के लिए इसे एमआई रूम में ले जाऊं, वहां इस की अच्छी देखभाल हो सकेगी.’

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