तभी फोन की घंटी बजने लगी. लोग अफसोस जताने के बहाने कुछ सुनना चाहते थे.
मांपापा बोले, ‘‘हमें अपनी बेटी की बहादुरी पर नाज है... पेपर झूठ बता रहे हैं.’’
शाम होतेहोते इंदौर से योगेशजी का फोन आ गया जहां नमिता की सगाई हुई थी. दिसंबर में उस की शादी होने जा रही थी.
‘‘पेपर में आप की बेटी के बारे में पढ़ा, अफसोस हुआ... मैं फिर आप से बात करता हूं.’’
योगेशजी के लहजे से भयभीत हो उठे नमिता के पिता विमल. पत्नी से बोले, ‘‘पेपर में छपी यह खबर हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी. योगेशजी का फोन था. उन के आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे. कह रहे थे अभी आप परेशान होंगे, आप की और परेशानी बढ़ाना नहीं चाहता, बाद में बात करते हैं.’’
पुलिस और मीडिया वाले फिर घर के चक्कर लगा रहे थे, ‘‘हम नमिता का इंटरव्यू लेने आए हैं.’’
‘‘क्यों इतना कुछ छाप देने के बाद भी आप लोगों का जी नहीं भरा? लड़की ने अपनी सुरक्षा स्वयं कर ली, इतना काफी नहीं है?’’
‘‘नहीं सर, हम तो अपराधी को सजा दिलाना चाहते हैं... नमिता उस की पहचान बयां करती तो अच्छा था.’’
पापा बोले, ‘‘पुलिस में रिपोर्ट कर के तुम ने अच्छा नहीं किया बेटी. कितनी जलालत का सामना करना पड़ रहा है...’’
‘‘आप ने अन्याय के खिलाफ बोलने की आजादी दी है पापा,’’ नमिता उन्हें परेशान देख बोली, ‘‘मैं ने आप दोनों को सहीसही सारी घटना बता दी... मुझ पर भरोसा कीजिए.’’
‘‘नहीं बेटी, तू ने केस फाइल कर अच्छा नहीं किया. अब देख ही रही है उस का परिणाम... सब तरफ खबर फैल गई है... ऐसे हादसों को गुप्त रखने में ही भलाई होती है.’’
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