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लेखक- डा. भारत खुशालानी

सुबह का चमकता हुआ लाल सूरज जब चीन के वुहान शहर पर पड़ा, तो उस की बड़ीबड़ी कांच से बनी हुई इमारतें सूरज की किरणों को प्रतिबिंबित करती हुई नींद से जागने लगीं.

मुंबई जितना बड़ा, एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर अंगड़ाई ले कर उठने लगा, हालांकि मछली, सब्जी, फल, समुद्री खाद्य बेचने वालों की सुबह 2 घंटे पहले ही हो चुकी थी. आसमान साफ था, लेकिन दिसंबर की ठंड चरम पर थी. आज फिर पारा 5 डिग्री सैल्सियस तक गिर जाने की संभावना थी, इसीलिए लोगों ने अपने ऊनी कपडे़ और गरम जैकेट बाहर निकाल कर रखे थे. वैसे भी वहां रहने वालों को यह ठंड ज्यादा महसूस नहीं होती थी. इस ठंड के वे आदी थे. और ऐसी ठंड में सुहानी धूप सेंकने के लिए अपने जैकेट उतार कर बाहर की सैर करते और सुबह की दौड़ लगाते अकसर पाए जाते थे. दूर से, गगनचुंबी इमारतों के इस बड़े महानगर के भीतर प्रवेश करने वाला सड़कमार्ग पहले से ही गाडि़यों से सज्जित हो चुका था. सुबह के सूरज से हुआ सुनहरा पानी ले कर यांग्त्जी नदी, और इस की सब से बड़ी सहायक नदी, हान नदी, शहरी क्षेत्र को पार करती हुई शान से वुहान को उस के 3 बड़े जिलों वुचांग, हानकोउ और हान्यांग में विभाजित करते हुए उसी प्रकार बह रही थी जैसे कल बह रही थी.कुछ घंटों के बाद जब शहर पूरी तरह से जाग कर हरकत में आ गया, तो वुहान शहरी अस्पताल के बाहर रोड पर जो निर्माणकार्य चल रहा था,

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