पृथ्वी का क्लाइमेट चेंज होना दुनियाभर के लिए घातक है. हालत यह है कि ठंडे देश भी इस समय गरमी की मार झेल रहे हैं. अगर यह जल्द नहीं रुका तो आने वाले समय में इस के भयंकर परिणाम देखने को मिल सकते हैं. ‘तेरे मेरे होंठों पे मीठेमीठे गीत मितवा…’ फिल्म ‘चांदनी’ का यह गाना वर्ष 1989 में स्विट्जरलैंड की हरीहरी ग्रासलैंड पर श्रीदेवी और ऋषि कपूर पर फिल्माया गया था. 90 के दशक का एक खूबसूरत गीत जिसे सुनते ही उस देश की खूबसूरती को दर्शक अनायास ही महसूस करते हैं. इस के अलावा फिल्म ‘सिलसिला’ का ‘देखा एक ख्वाब…’, ‘दो लफ्जों की है दिल की कहानी…’ आदि कई रोमांटिक गाने फिल्माए गए.

आज इस खूबसूरत मौसम और सुंदर वादियों वाले देश में इस समय गरम हवा चल रही है. कभी ऐसा था कि जब हिंदी सिनेमा जगत में भी फिल्मों की शूटिंग यूरोप में जाए बिना अधूरी रहती थी. फिल्म ‘संगम’, ‘चांदनी’, ‘दिलवाले दुलहनियां ले जाएंगे’, ‘प्यार का सपना’, ‘हीरो नंबर वन’, ‘साहो’, ‘बौडीगार्ड’ आदि न जाने कितनी ही फिल्में और उन के गाने शूट किए जाते रहे हैं और मजे की बात यह है कि हर अभिनेता और अभिनेत्री का एक सपना यशराज फिल्म्स के साथ काम करने का होता था ताकि वह एक बार यूरोप जा कर किसी गाने या किसी फिल्म को शूट कर सके क्योंकि यशराज की कई फिल्मों की शूटिंग यूरोप में हुई है. मुंह न मोड़ें सचाई से गरम हवा से स्पेन और फ्रांस के जंगलों में लगी आग ने मुश्किलों को और बढ़ा दिया है. यूनाइटेड किंगडम (यूके) से ले कर हर हिस्से में तापमान नए रिकौर्ड बना रहा है.

स्पेन में लगी आग में 2 व्यक्तियों की मौत ने इसे और गंभीर बना दिया है. स्पेन के पीएम पेद्रो सांचेज ने इस स्थिति को ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ा है और कहा है कि अब क्लाइमेट चेंज लोगों की जान लेने लगा है. क्लाइमेट चेंज को एक मोहरा बना कर रिच कंट्री के सभी वैज्ञानिक अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. सचाई को जान कर भी लोग अनजान बन रहे हैं जिस का असर पूरा विश्व भुगत रहा है. अब इस का हल चाहिए क्योंकि कुछ दिनों पहले इंग्लैंड का तापमान 38 डिग्री था जो बढ़ कर 41 डिग्री हो गया. इस से रेल सेवाएं कई स्थानों पर बंद हो गईं और लोगों को घरों से जरूरत न होने पर निकलने से मना कर दिया गया. इस बारे में वैज्ञानिकों ने चेतावनी कई साल पहले भी दी थी पर किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया. खतरा वयस्कों और बीमारों को फ्रांस की गरमी ने तो नया रिकौर्ड बना लिया है.

वहां का तापमान 42 डिग्री सैल्सियस के ऊपर जा चुका है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अत्यधिक गरमी बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. ब्रिटेन के लिए यह गरमी खास चिंता की बात है क्योंकि वहां सिर्फ 3 फीसदी घरों में एयरकंडीशनिंग की सुविधा है. आगे ब्रिटेन, पुर्तगाल और स्पेन में गरमी अधिक बढ़ने का अंदेशा है. अधिक गरमी न झेल सकने की वजह से सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. इस संख्या के बढ़ने की आशंका है. जलवायु परिवर्तन की वजह गरमी और आग में बहुत संख्या में जंगली जानवर व पेड़पौधे नष्ट हो चुके हैं. मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक इस गरमी का कारण अफ्रीका से आ रही गरम हवाएं हैं. लेकिन ये गरम हवाएं तो पहले भी आती थीं, तब ऐसा कभी देखने को नहीं मिला. यह सही है कि जंगलों को काट कर नष्ट करना, प्राकृतिक संपत्ति का खनन कर उस का धुआं फैलाना आदि भी इस के कारण हो सकते हैं.

दूसरी कई वजहों से धरती लगातार गरम होती जा रही है. एक सदी से जलवायु परिवर्तन के कारण धरती की सतह का औसत तापमान 1.2 डिग्री सैल्सियस बढ़ चुका है. अब यह तापमान आम मौसम को प्रभावित कर रहा है. इस की वजह से रिकौर्ड गरमी पड़ रही है, ऐसा भी कहा जा रहा है. गरमी पड़ने की अवधि भी पहले की तुलना में लंबी हो चुकी है. कई अनुसंधानों से यह साबित हुआ है कि मानव क्रिया के कारण हुए जलवायु परिवर्तन के बिना ऐसी गरमी पड़ना संभव नहीं था. इतना ही नहीं, यूरोप में कुछ महीनों में पानी की कमी भी हो चुकी है. बिजली का संकट भी यूरोप पर गहराया है क्योंकि यूक्रेन और रूस के युद्ध में यूरोप के रूस के विरुद्ध होने की स्थिति में रूस ने वहां बिजली भेजना बंद कर दिया है. विश्व को खतरा कुछ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आगे यह गरमी दक्षिणपश्चिम भाग में किसी कयामत से कम नहीं होगी. स्पेन और पुर्तगाल में गरमी से मरने वालों की संख्या 748 हो चुकी है. लंदन की गरमी इतनी बढ़ गई है कि वहां पर इंजीनियर्स को 135 साल पुराने लंदन ब्रिज को सिल्वर फौयल से कवर करना पड़ा. वहां बारिश भी कम होने से पानी की समस्या भी बहुत है.

ट्रांसपोर्ट नैटवर्क के लिए भी यह गरमी मुश्किलें पैदा कर रही है. ब्रिटेन में अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि गरमी के कारण यह संभव है कि रेल पटरियां पिघल जाएं. विमानों के टायरों के भी गरम हो कर क्षतिग्रस्त होने की चेतावनी दी गई है. नैचुरल रिसोर्स का अंधाधुंध प्रयोग इस बारे में एनवायरनमैंटलिस्ट भारती चतुर्वेदी कहती हैं, ‘‘अफ्रीका की गरम हवा का इस से कुछ लेनादेना नहीं है. विकसित देशों द्वारा प्राकृतिक रिसोर्स के अंधाधुंध प्रयोग करने की वजह से आज अफ्रीका और दूसरे गरीब देश प्राकृतिक आपदा के प्रकोप झेल रहे हैं. ‘‘क्लाइमेट चेंज तब होता है जब ग्रीन हाउस गैसेस जैसे कार्बनडाईऔक्साइड, मीथेन, नाइट्रस, औक्साइड के अलावा इंडस्ट्रियल गैसेज, मसलन हाइड्रोफ्लुरोकार्बंस, सल्फर एक्साफ्लोराइड, नाइट्रोजन ट्राईफ्लोराइड आदि का हद से अधिक हवा में मिलने से गरमी का बढ़ जाना है. इस से हवा का रुख भी अलग हो जाता है. ग्लेशियर पिघलने लगते हैं, समुद्र का पानी बढ़ता है. इस से पूरा इकोसिस्टम खराब हो जाता है. मौसम बदलने लगता है.

कहीं बाढ़ तो कभी सूखा पड़ने लगता है. जंगल जो मिट्टी को पकड़े रहते हैं उसे काटने पर लैंडस्लाइड होने लगते हैं.’’ अनियमित मौसम भारती आगे कहती हैं, ‘‘यूरोप की बात करें तो वहां भी बारिश होने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है जैसे प्रैशर, हीट, और तापमान बड़ी भूमिका निभाते हैं. क्लाइमेट चेंज से पर्यावरण में बदलाव हो जाता है जिस से मौसम के अनुसार इरैटिक बारिश या अनियमित स्नोफौल नहीं होता. होता भी है तो ढाई महीने की बारिश 3 दिन में हो जाती है. इस समय मौसम, बारिश, सूखा सभी में पूरी तरह से बदलाव आ चुका है. पेरिस में लोगों का पानी में चलना भी अधिक गरमी होने को दर्शाता है. इस के अलावा कनाडा में जाड़े में भी गरमी अधिक होने लगी है जबकि वहां पर ठंड बहुत अधिक होती थी.’’ एनवायरनमैंटलिस्ट का आगे कहना है, ‘‘यूरोप में फ्रांस, जरमनी, इंग्लैंड में सारी इंडस्ट्रीज स्थापित हो गई हैं.

इंडिया की सारी प्राकृतिक संपदा को अंगरेज अपने साथ ले गए. उस समय इंडिया को ‘ज्वैल इन द क्राउन’ कहा जाता था. उस समय पैट्रोल न होने की वजह से कोयले को भरपूर जलाया गया. कोयले को जलाने से ग्रीन हाउस गैस बहुत अधिक पैदा होती है. इस ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है. ‘‘विकसित हो कर अमेरिका, यूरोप और चीन ने इतना पैट्रोल जलाया है लेकिन वे इसे जलवायु पर गलत असर नहीं मानते और अपनी ऊंची लाइफस्टाइल बिता रहे हैं, जिस का असर अब दिख रहा है. उन के यहां आज बाढ़ दिख रही है, जबकि भारत में बाढ़ और सूखे को सालों से लोग झेल रहे हैं. हमारी पर कैपिटा इनकम बहुत कम है. भारत और पाकिस्तान ने इतना कोयला नहीं जलाया है. केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि जानवर और फसल दोनों की ही क्षति हो रही है.

मेरे हिसाब से गरीब देशों को इन विकसित देशों को जीवित रहने के लिए हर्जाना देना चाहिए.’’ कमजोर स्वास्थ्य सेवा पहले भारत में न डेंगू, न चिकनगुनिया था, लेकिन अब सबकुछ है. गरमी में मच्छर अधिक पनपते हैं और ये मच्छर हर जगह इस बीमारी को फैलाते हैं. बाढ़ आने पर साफ पानी की कमी होती है. जानवर और लोग पानी में बह जाते हैं या मर जाते हैं. अस्पताल की साफसफाई में कमी होने से इलाज संभव नहीं होता. मु झे डर इस बात से लगता है कि आने वाले समय में कोविड से भी अधिक खतरनाक बीमारी आ सकती है जिस का खतरा पूरे विश्व पर मंडरा रहा है. पूरे यूरोप की गरमी से स्विट्जरलैंड भी प्रभावित हुआ है. वहां के ग्लैशियर्स में दरारें दिखने लगी हैं जो जल्दी पिघलने वाले हैं.

शोध से पता चला है कि इन जगहों पर ठंड में बर्फ जमा होती है और गरमी में धीरेधीरे बर्फ पिघलती है और आम नागरिकों को कृषि और प्रयोग के लिए पानी मिलता है. वैज्ञानिकों ने माना है कि अभी पृथ्वी 1.2 डिग्री सैंटीग्रेड गरम हो चुकी है और इसे 1.5 डिग्री सैंटीग्रेड पर नहीं रोका गया तो आगे बहुत ही भयंकर परिणाम विश्व को देखने पड़ेंगे. यूरोप में कुछ बातें खास ध्यान रखी जा रही हैं जो उसे गरमी से बचा सकें. द्य अधिक फिजिकल एक्टिविटी न करना, जानवरों और बच्चों को घर में रखना. द्य खुद को हमेशा हाईड्रेटेड रखना, लूज और आरामदायक कपड़े पहनना, एल्कोहल, कैफीन और शुगरी ड्रिंक्स को अवौयड करना, 2 से 3 घंटे तक किसी कूल प्लेस पर रहना, गरमी को अंदर न आने देने के लिए किसी शटर का प्रयोग करना, द्य किसी प्रकार की क्रौनिक बीमारी होने पर डाक्टर की राय लेना, कमजोरी, अधिक प्यास, सिरदर्द, असहज आदि होने पर तुरंत किसी ठंडी जगह में जाना और अकेले रह रहे वयस्क, बुजुर्गों और बच्चों का ध्यान रखना. द्य करें खास उपाय मुंबई की एनवायरमैंटलिस्ट सुमायरा अब्दुलाली कहती हैं, ‘‘शहरीकरण व जंगलों के काटने से क्लाइमेट चेंज का बहुत अधिक इफैक्ट पड़ा है. लेकिन इस ओर ध्यान लोगों का बहुत कम है.

उन्हें अधिक जागरूक होने की जरूरत है. इसे कम करने के लिए खुद के ऐक्शन को कम कर, सम झदार, शिक्षित होना और जागरूकता को बढ़ाना है.’’ कुछ सु झाव : द्य लाइफस्टाइल में सस्टेनेबल चीजों को अधिक से अधिक शामिल करना. द्य एनर्जी का कम से कम प्रयोग, खासकर कोयले की खुदाई को कम करना, उस का विकल्प ढूंढ़ना, कोयले के जलने से पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के बारे में सोचना, खुद की खपत को कम करना. द्य पश्चिमी देशों को फौलो न करने की कोशिश करना.

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