म्यांमार की सरकार की तरह कई देशों व राज्यों के संगठन रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने क्षेत्र में पनाह देने के खिलाफ खड़े होते रहे हैं. दुनिया में फैली तमाम समस्याओं में से एक है गृहयुद्ध के बाद हुए पलायन से सामने आई शरणार्थियों की समस्या. इराक, सीरिया सहित कई अफ्रीकी देशों में शरणार्थी समस्या विकाराल रूप ले चुकी है. दया और मानवता की चिरपरिचित नारेबाजी के बाद भी किसी भी देश में घुसने से मनाही कितनी कष्टपूर्ण और क्रूर हो सकती है, इस को अगर समझना है तो रोहिंग्या मुसलमानों को एक नजर देखना होगा. ये वे लोग हैं जो बरसों से उस देश में गैरों का जीवन जीने को मजबूर हैं जहां कभी ये मजदूरी करने के लिए बसाए गए थे.

भारत जैसा देश भी इन को अपने यहां से निकालने की तैयारी कर चुका है. इस अपमान और छटपटाहट में तमाम रोहिंग्या मुसलमान या तो उग्रवाद की ओर मुड़ गए हैं या उन्होंने मुसलिम उग्रवादियों से हाथ मिला लिया है. इस से उन की समस्या कम होने के बजाय कई गुना ज्यादा बढ़ गई. अब दूसरे समुदाय के वे लोग भी इन्हें शक की निगाह से देखने लगे जो इन की मदद या तो कर रहे हैं या फिर करना चाहते हैं.

रोहिंग्या हैं कौन

लोगों के जेहन में यह बात उठना लाजिमी है कि आखिर ये रोहिंग्या हैं कौन, जिन की मदद करने से अब भारत भी मुंह फेर रहा है. शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित म्यांमार, जो बर्मा के नाम से जाना जाता था, की आंग सांग सू की भी रोहिंग्या की बात करना नहीं चाहतीं. एक विदेशी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में रोहिंग्या का सवाल आते ही वे इंटरव्यू छोड़ कर चली गईं. यानी, अगर सू भी सत्ता में हों, तो भी रोहिंग्या मुसलमानों का कुछ भी भला होने वाला नहीं है.

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