साल 2011 में एवरेस्ट पर विजयी पताका लहरा कर प्रेमलता अग्रवाल निश्चिंत होकर नहीं बैठ गई हैं. अब वह दक्षिण अफ्रीका के किलीमंजारो पर्वत और अंटार्कटिका पर फतह पाने के सपने को साकार करने की तैयारियों में लगी हुई हैं. एवरेस्ट फतह करने वाली सबसे ज्यादा आयु की महिला होने का विश्व रिकार्ड उनके नाम है. वह कहती हैं- ‘मजबूत इरादों से हर उम्र में हर मुश्किल पर जीत हासिल की जा सकती है. उम्र चाहे जो भी हो संघर्ष से हर जंग जीती जा सकती है.’
ऊंचे पहाड़ों के शिखरों को छूने की उनकी कोशिश एवरेस्ट पर चढ़ने के बाद खत्म नहीं हुई, बल्कि एक के बाद एक दुनिया के तमाम ऊंची शिखरों पर कदम रख डाला. दक्षिण अफ्रीका के तंजानिया के किलिमंजारो (5895 मीटर), अमेरिका के माउंट एकानकरगुआ (6962 मीटर), यूरोप के माउंट एल्ब्रस (5642 मीटर), आट्रेलिया के कासेंस पिरामिड (4884 मीटर) और अंर्टाटिका के माउंट विन्सन (4897 मीटर) की चोटियों पर जीत का झंडा फहरा चुकी हैं. अब वह उत्तर अमेरिका के 6196 मीटर ऊंची चोटी माउंट मैकिनले पर चढ़ाई करने की तैयारियों में लग गई हैं.
1963 में सिलीगुड़ी में जन्मी प्रेमलता बताती हैं कि बेटी को स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग दिलवाते-दिलवाते उनमें भी स्पोर्ट्स में दिलचस्पी पैदा हो गई. उन्हीं दिनों टाटा में वाकिंग कॉम्पीटिशन में हिस्सा लिया और उसी दौरान मशहूर पर्वतारोही और टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की प्रमुख बछेंद्री पाल से मिलने का मौका मिला. उनकी औफिस में लगी मांउंटेनिंग की तस्वीरें देख कर उनमें माउंटेनिंग करने और उंचे पहाड़ों को फतह करने का सपना देख लिया. उसके बाद अपने सपने को साकार करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और 6 साल की कड़ी मेहनत के बाद 45 साल की आयु में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली उम्रदराज महिला बन गई.
उसके बाद एक के बाद एक कई चोटियों पर विजयी पताका लहरा कर उन्होंने साबित कर दिया कि कामयाबी हासिल करने के लिए उम्र कोई रूकावट नहीं बनती है, सपना, मेहनत और लगन से हर मंजिल की राह आसान बन जाती है. पिछले दिनों इस माउंटेन वूमेन को भारत सरकार ने पद्मश्री के खिताब से नवाजा.
झारखंड के जमशेदपुर शहर में रहने वाली प्रेमलता कहती हैं कि जज्बे से ही जीत मिलती है. अकसर लोग कहते मिल जाते हैं कि उनकी उमर हो गई है अब क्या काम करें? घर-गृहस्थी में फंसने की दुहाई दी जाती है. यह सब बहानाबाजी ही होता है. जिस चीज के प्रति आदमी का इंटरेस्ट होता है उसके लिए वह किसी न किसी तरह से समय निकाल ही लेता है. बछेंद्री पाल की देखरेख और उनसे ट्रेनिंग लेकर प्रेमलता ने 20 मई 2011 को 8848 मीटर ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा दिया.
सिलीगुड़ी के व्यवसायी रामावतार अग्रवाल और शारदा अग्रवाल के घर पैदा हुई प्रेमलता बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें पढ़ने से ज्यादा खेलकूद में मन लगता था. बड़ा परिवार होने और पिता की व्यस्तताओं की वजह से वह अपने खेलकूद के शौक को आगे नहीं बढ़ा सकी. मां-बाप के 9 संतानों में दूसरे नंबर की प्रेमलता कहती हैं कि बड़ा परिवार होने के कारण परिवार का खर्च कापफी मुश्किल से चल पाता था. विमल अग्रवाल से विवाह होने के बाद वह जमशेदपुर आ गई.
मजबूत इरादों, हिम्मत और जुनून का दूसरा नाम है प्रेमलता अग्रवाल. उनकी एक बेटी की विवाह हो चुकी है और दूसरी बेटी नौकरी कर रही है. प्रेमलता का विवाह 18 साल की उम्र में ही हो गया था. विवाह के बाद वह परिवारिक काम-काज में पूरी तरह से रम गई थी. बछेंद्री पाल से मिलने के बाद तो प्रेमलता के सपनों और हौसलों को मानो पंख लग गए. पति बिमल अग्रवाल से उन्होंने जब एवरेस्ट पर चढ़ने की बात कही तो पहले वह हैरान हुए, पर बाद में उनकी लगन को देखकर प्रोत्साहन देने लगे. उसके बाद से प्रेमलता ने लगातार 12 सालों तक माउंटेनिंग की ट्रेनिंग ली, जिसमें बछेन्द्री पाल ने काफी मदद और हौसला आफजाई की. 25 मार्च 2011 को आखिर वह दिन आया जिस दिन उन्होंने 8848 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ाई शुरू की थी.
वह बताती हैं कि शरीर को बेधने वाली बर्फीली हवाएं, चारों ओर फैला बर्फ ही बर्फ, पीठ पर लादा भारी सामान, बर्फ का तेज तूफान, ऊंची- ऊंची चढ़ाई, जीरो से 20 डिग्री कम टेम्प्रेचर के बीच भी एवरेस्ट को छूने का हौसला कमजोर नहीं हुआ. बर्फीले सफर का खौफनाक दास्तान बताते हुए वह कहती हैं- ‘25 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंची थी तो अचानक मौसम बहुत ज्यादा खराब हो गया. ज्यादातर लोग वापस लौटने लगे, पर हमने हिम्मत नहीं हारी. मौसम के ठीक होते ही फिर चढ़ाई चालू की. 27 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंची तो ऑक्सीजन मशीन खराब हो गया. उसे ठीक करने के लिए दायें हाथ का गलव्स खोला तो वह तेज हवा में उड़ गया. हाथ ठंड से जड़ होने लगा. तभी पास में एक पुराना गलव्स गिरा हुआ मिल गया तो उससे राहत मिली.’
आगे वह बताती हैं कि मौसम जब ज्यादा खराब हो जाता था तो साथ चल रहे शेरपा उनका मजाक उड़ाते और फब्तियां कसते थे. वे कहते थे कि जिस उमर में लोग घर में आराम करते हैं. नाती और पोतों को खिलाते हैं, उस उमर में पता नहीं क्या सूझा कि एवरेस्ट पर चढ़ने चली आई. कभी शेरपा कहते थे कि तुम्हें अपने घर परिवार, पति और बच्चों से प्यार नहीं है क्या? इन सबके बाद भी प्रेमलता का हौसला कमजोर नहीं हुआ और वह सबसे ज्यादा उम्र में एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला बन गईं.
प्रेमलता के कोच निर्मल पांडे कहते हैं कि प्रेमलता मजबूत इरादों वाली महिला हैं. उन्होंने यह साबित कर दिया है कि कामयाबी पाने के लिए कोई उम्र नहीं होती है. इंसान में हिम्मत, हौसला, लगन और मेहनत करने का जज्बा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं हैं.