अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हाड़ी और एंड्रिया तेरियांग अभिनीत फिल्म ‘पिंक’ में औरत की निर्बलता और समाज के औरतों के प्रति गलत रवैए को ले कर गंभीर सवाल उठाया गया है कि अगर कोई औरत रात को देर से घर लौटती है या छोटे कपड़े पहनती है या मर्दों के साथ बैठ कर शराब पीती है तो वह निश्चित तौर पर खराब औरत है.

औरतों को ले कर समाज में पहले से ही गलत धारणाएं बनी हुई हैं. मध्यवर्गीय परिवार के लोग, जिन के लिए इज्जत से बढ़ कर कुछ नहीं है, समाज के ढकोसलों की बदौलत ही अपनी बेटियों को प्रतिभावान होने के बावजूद आगे बढ़ने नहीं देते.

नारी के अधिकार और उस की निर्बलता को ले कर हमेशा से ही चर्चा होती रही है. एक तरफ जहां नारी प्रधानमंत्री, पायलट, डाक्टर, पत्रकार जैसे मजबूत स्थानों पर सफलता से डटी है वहीं दूसरी तरफ उसे निर्बल माना जाता है. उसे समाज में रहने के लिए हिदायतें दी जाती हैं कि उस को क्या करना है, क्या नहीं करना है.

औरतों को सामाजिक मर्यादा में रह कर दहेज, बलात्कार जैसे अत्याचारों से जूझना पड़ रहा है. इसी आधार पर अमिताभ बच्चन ने अपनी नाती और पोती के नाम एक खुलापत्र लिखा. पत्र में उन्होंने साफ किया है कि उन की नाती या पोती अपने अंतर्मन की शक्ति को कैसे समझे और उस को अपनी ताकत कैसे बनाए. क्या निर्बल कहलाने वाली नारी अपनी अंतर्शक्ति के चलते समाज से लड़ कर अपना स्थान पा सकती है? एक स्त्री अपनी आंतरिक शक्ति को कैसे पहचाने जहां समाज उस को ऐसा करने का मौका ही नहीं देता? और अपनी इसी आंतरिक शक्ति के चलते वह विषम परिस्थिति में अपनेआप को कैसे बचा सकती हैं? ऐसे ही कई दिलचस्प मगर गंभीर सवालों के जवाब दिए फिल्म ‘पिंक’ की उन 3 हीरोइनों ने, जिन्होंने इस फिल्म में पुरुषों और समाज द्वारा किए गए अत्याचारों का जवाब अपने स्टाइल में दिया है.

हम ने एक खास बातचीत के दौरान ‘पिंक’ की तीनों हीरोइनों तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हाड़ी और एंड्रिया तेरियांग से बात की.

तापसी पन्नू

आधी से ज्यादा औरतों को यही पता नहीं होता कि वे अंदर से कितनी मजबूत हैं. यह बात तो बाद में आती है कि औरतें अपनी आंतरिक शक्ति का इस्तेमाल कैसे करती हैं. अगर हम अपनी आंतरिक शक्ति या क्षमता को पहचान लें, तभी उस का इस्तेमाल कर पाएंगे. औरत में बहुत ज्यादा हिम्मत होती है. हिम्मत का मतलब यह नहीं होता कि हमें सामने वाले को मुक्का मार कर गिराना है. आंतरिक शक्ति का मतलब है कि विषम परिस्थिति में अपना दिमाग लड़ा कर उस स्थिति से कैसे निकलें. उस दौरान ही हमारी सोचसमझ का पता चलता है कि अपने ऊपर आई मुसीबत से हम कैसे निबट सकते हैं. जैसे, मैं दिल्ली में रहती थी, तब बस में आतेजाते वक्त लोग अकसर गलत जगह टच करने की कोशिश करते थे. उस वक्त मैं अपने साथ सेफ्टी पिन ले कर जाती थी. और जो भी गलत हरकत करता, उसे जोर से सेफ्टी पिन चुभा देती थी. मैं निर्बल नारी की तरह सब सहन नहीं करती थी.

मेरा मानना है, औरतों में बहुत दिमाग होता है. हम एक समय में चार चीजें कर सकती हैं. सब से बड़ी बात तो यह है कि हम बच्चा पैदा करने की ताकत रखती हैं. आदमी से फूल जैसे बच्चे को संभालने के लिए कह दो तो उस की डर के मारे सांस फूल जाएगी. औरत एक पत्नी, मां बन कर जहां पूरा घर संभालती है वहीं आदमी अकेला अपनेआप को ही नहीं संभाल पाता. उसे हर उम्र में बहन, बीवी, प्रेमिका और सब से खास मां की जरूरत पड़ती है. औरत शादी कर के अकेले ससुराल जाती है और वहां पर लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाती है जबकि आदमी, उस औरत को लेने के लिए बरात ले कर जाता है.

कहने का मतलब यह है कि मैं ने अपनी अभी तक की छोटी सी जिंदगी को खुद सरवाइव किया है और बहुत सारी मुश्किलों का सामना किया है. लेकिन उस दौरान मैं ने अपनी दिमागी ताकत का इस्तेमाल कर के अपनेआप को बचाया है. और आज भी मैं सरवाइव कर रही हूं. मैं सफलता के साथ अपनी पहचान बना रही हूं क्योंकि मैं ने अपनी आंतरिक शक्ति को पहचाना है और मुझे पता है कि मुझे उस का प्रयोग कैसे करना है. ऐसे ही हर लड़की को अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान कर, दिमाग का इस्तेमाल कर के अपनी रक्षा खुद ही करनी पड़ेगी. अपनेआप को निर्बल कहलाने से बेहतर है आप दिमाग का इस्तेमाल कर के अपनी आंतरिक शक्ति के जरिए समाज में अपना स्थान बनाएं.

कीर्ति कुल्हाड़ी

मुझे इस बात का दुख होता है कि 21वीं सदी में भी औरतों को अपनेआप को बचाना पड़ता है. अपने औरत होने पर वे कहीं न कहीं शर्म महसूस करती हैं. शायद, इस की वजह यह है कि समाज में औरत को मनोरंजन की चीज समझा जाता है. अगर औरत घर की है तो उस पर किसी की बुरी नजर न पड़े, इसलिए उस पर कई सारे प्रतिबंध होते हैं. वहीं, अगर औरत बाहर की है तो उसे अश्लीलता की नजर से देखना गलत नहीं माना जाएगा. ऐसी समाज की सोच है.

दरअसल, जब चीजें दबाई जाती हैं तो वे गलत रूप में सामने आती हैं. मैं ने इंडियन और वैस्टर्न कल्चर दोनों देखे हैं. इंडिया में सैक्सुअलिटी को ले कर क्रेज पश्चिमी देशों से आया है जबकि आज पश्चिम में सैक्स का क्रेज खत्म सा हो चुका है.

जहां तक आंतरिक शक्ति की बात है, तो हर औरत में आंतरिक शक्ति होती है. औरत को तो कहा ही गया है शक्ति का रूप. लिहाजा, औरतें अपने औरत होने पर शर्मिंदा न हों बल्कि अपने औरत होने की ताकत को सही ढंग से इस्तेमाल करें. जहां तक औरत के निर्बल होने की बात है तो औरत ही नहीं, मर्द भी निर्बल होता है. अगर उस के सामने चार ताकतवर आदमी आ गए और उसे सैक्सुअली या फिजिकली हर्ट किया और वह आदमी बचाव नहीं कर पाया तो वह भी निर्बल है. इसलिए औरतें ही निर्बल होती हैं, ऐसा सोच कर अपनेआप को कमजोर न समझें.

औरत को निर्बल इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि समाज में औरतों पर ज्यादा रोकटोक होती है, शराब मत पियो, देर रात तक बाहर मत रहो, सिगरेट मत पियो, छोटे कपड़े मत पहनो आदि.

आंतरिक शक्ति का मतलब है कि आप सब से पहले अपनी सोच बदलें कि औरत होना कोई गुनाह नहीं है या कोई कमजोरी नहीं है. अगर आप अपनेआप को सुरक्षित रखने की ताकत रखती हैं तो आप रात को बाहर निकल सकती हैं. आप अगर दिलोदिमाग से ताकतवर हैं तो आप वह सबकुछ कर सकती हैं जो पुरुष कर सकते हैं. लेकिन यह आप पर निर्भर करता है कि आप को क्या करना है और क्या नहीं करना है. अगर आप को सहीगलत की पहचान हो जाएगी तो आप अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान लेंगी.

एंड्रिया तेरियांग

हर औरत में आंतरिक शक्ति होती है. मुझ में भी है. इस बात का एहसास उस वक्त हुआ जब मैं ने अपनी जगह, अपनी पहचान बनाने के लिए खुद सरवाइव करना शुरू किया. मैं छोटी सी, नाजुक सी हूं, लिहाजा मेरे डैड मेरे लिए बहुत फिक्रमंद थे कि मैं अकेले कैसे सरवाइव करूंगी. लेकिन मैं ने न सिर्फ म्यूजिकल वर्ल्ड में बल्कि मौडलिंग की दुनिया में भी अपनी अलग पहचान बनाई.

उस के बाद जब हिंदी फिल्म ‘पिंक’ में काम करने के लिए मुंबई आई तो मेरे डैड बहुत तनाव में थे कि मैं अकेले कैसे सरवाइव करूंगी. लेकिन मैं ने बिना हिंदीभाषा के ज्ञान के यहां पर अपना काम किया. धीरेधीरे मेरी फैमिली को विश्वास होने लगा कि मैं छोटा पैकेट बड़ा धमाका हूं.

मेरा मानना है मेरी आंतरिक शक्ति, मेरा खुद पर विश्वास और मेरी प्रबल इच्छाशक्ति है. अगर आप को अपने ऊपर विश्वास है तो कोई भी आप का बाल बांका नहीं कर सकता. औरत में सोचनेसमझने की आदमियों से ज्यादा तीव्र शक्ति होती है. उस में यह शक्ति होती है कि वह सामने वाले आदमी को देख कर समझ जाती है कि वह उस के लिए अच्छा सोचता है या बुरा. लिहाजा, अपनी आंतरिक शक्ति के जरिए मैं ऐसे लोगों से बहुत दूरी बनाए रखती हूं जो मेरा बुरा करने की सोचते हैं.

कई बार हम नहीं भी जानते कि हमारे साथ क्या होने वाला है, जैसे रास्ते चलते किसी औरत का अपहरण कर उस का बलात्कार कर दिया जाए. यह बहुत ही खराब होता है लेकिन इसे एक हादसा समझ कर भूलने की कोशिश करें, इसे दिल से लगा कर अपनी जिंदगी को खराब न करें. हादसा किसी के साथ भी हो सकता है. उस के लिए मर्द या औरत होना जरूरी नहीं.

आप चाहें तो अपनी इच्छाशक्ति के जरिए समाज को बदल भी सकते हैं. अगर आप कामयाब हैं तो लोगों का आप के प्रति सोचने का नजरिया भी बदल जाएगा. लेकिन वहीं अगर आप कमजोर या निर्बल हैं तो कई सारे गलत लोग, जो आप के अगलबगल में हैं, आप की कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश करेंगे.

लब्बोलुआब यह है कि यह तय करना आप को है कि निर्बल या कमजोर बन कर समाज के खराब लोगों का शिकार बनना है या अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान कर समाज में अपनी पहचान बनाने के साथ अपना और अपने परिवार का नाम रोशन करना है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...