व्यापार, मुनाफा और स्वार्थ के इस दौर में अनेक ऐसे लोग हैं जो समाजसेवा की सनक में भी अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं. मुफ्त दवा, किताबें, कापियां वितरण, अपंगों के लिए व्हीकल जैसी वस्तुएं समाजसेवा के नाम पर जरूरतमंदों को दी जाती हैं. यह एक सामाजिक सेवा का कार्य माना गया है. आजकल भीषण गरमी में एक ऐसा ही कार्य जलसेवा का है. आगरा, मथुरा, वृंदावन, नाथद्वारा, उदयपुर जैसे कई शहरों, कसबों में रेलवे स्टेशनों, बाजारों, बस स्टैंडों पर ‘जलसेवा’ नाम से ठंडे पानी के प्याऊ संचालित किए जा रहे हैं. यह एक शख्स बांकेलाल माहेश्वरी के समाजसेवा के जनून का नतीजा है. श्रीनाथजी जलसेवा नाम से कई शहरों में जलसेवा प्याऊ चलाए जाते हैं. आगरा में जगहजगह पर जलसेवा प्याऊ लगाए गए हैं. आज बोतलबंद पानी के युग में आम लोग ठंडा व स्वच्छ पानी पीने से वंचित हैं. टे्रन जब किसी स्टेशन पर आ कर ठहरती है तो प्यास से बेहाल यात्री इधरउधर पानी की तलाश करते देखे जा सकते हैं. ऐसे में प्यासे के पास कोई मुफ्त में ठंडा पानी लिए आ जाए तो मन खुश हो जाता है. आगरा में 100 से अधिक चलअचल प्याऊ संचालित किए जा रहे हैं. इन प्याउओं के जरिए बड़ी उम्र के 100 से अधिक स्त्री व पुरुषों को रोजगार मिला हुआ है.

निशुल्क जलसेवा

करीब 32 सालों से जलसेवा में लगे बांकेलाल माहेश्वरी कहते हैं कि भारत की पहचान रही है कि यहां पानी का कोई मूल्य नहीं होता. इसी परंपरा को वे जीवंत रखना चाहते हैं और निशुल्क जलसेवा करते हैं. यह काम निस्वार्थ, निशुल्क मानवता की सेवाभावना के लिए किया जाता है. एक बार वे नाथद्वारा गए थे तो एक स्टेशन पर देखा कि कुछ लोग बड़ी लगन व तत्परता से मुसाफिरों को शीतल जल व चाय पिला रहे हैं. यह देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगा और उन लोगों की सेवाभावना ने उन्हें झकझोर दिया. लगभग उन्हीं दिनों 1986 में आगरा के राजामंडी स्टेशन पर रेल दुर्घटना हुई. उन का घर उस समय स्टेशन के नजदीक ही था. दुर्घटना की खबर सुन कर वे व अन्य लोग पानी की बाल्टी व मग ले कर दौड़ पड़े. कराहते हुए यात्रियों की जलसेवा की. उन्होंने पीडि़त यात्रियों की प्यास की परेशानी को देखा, उसी समय जलसेवा करने की भावना उन के भीतर जागी. तभी उन्होंने भविष्य के लिए संकल्प लिया कि वे रेलवे स्टेशनों पर लगातार जलसेवा व्यवस्था को शुरू करेंगे.

माहेश्वरी बताते हैं, ‘‘उस दुर्घटना के कुछ समय बाद ही मैं ने राजामंडी स्टेशन पर प्याऊ स्थापित किया और प्रण किया कि आजीवन जलसेवा करूंगा. प्रारंभ में जलसेवा का कार्य छोटे स्तर पर किया गया.  राजामंडी के अलावा आगरा फोर्ट, ईदगाह स्टेशन और बाद में धीरेधीरे दूसरे शहरों में भी प्याऊ शुरू किए गए. लोगों का सहयोग और प्रोत्साहन मिला और मेन हौस्पिटल, बस स्टैंड, भीड़ भरे बाजार, चौराहे, बाजार के मुख्य मार्गों पर जलसेवा शुरू हो गई.’’ प्याऊ में केवड़ायुक्त ठंडा पानी आम जनमानस के लिए उपलब्ध रहता है. इस सेवा की वजह से उन्हें ‘जल पुरुष’ कहा जाने लगा. अनेक संस्थाओं से सम्मानित माहेश्वरी सर्दी में रैनबसेरा, निशुल्क दवाखाने की व्यवस्था, असहाय लोगों को रोजगार और लावारिस शवों को श्मशान तक पहुंचाने का जिम्मा भी लगन से उठाते हैं. माहेश्वरी कहते हैं कि श्रीनाथ जलसेवा हर नीची, ऊंची जाति वालों के लिए है. रिकशे वाले, साइकिल वाले, पैदल आनेजाने वाले, मजदूर और अन्य राहगीर यहां होते हैं. अमीरगरीब सब यहां पानी पीते हैं. जलसेवा हर जरूरतमंद व्यक्ति के लिए है. इस के लिए जाति नहीं पूछी जाती. वे कहते हैं कि रैनबसेरों में रहने के लिए आने वालों की भी वे जाति नहीं पूछते. हर मानव एक बराबर है.

एक जमाना था जब कसबों, शहरों में जगहजगह पानी के प्याऊ होते थे. कुछ प्याऊ बारहों महीने चलते थे, कुछ केवल गरमी में. इन प्याउओं पर बैठे पानी पिलाने वाले पीने वाले से उस की जाति जरूर पूछते थे. जाति पूछ कर व्यवहार करते थे. ब्राह्मणों को पानी का लोटा पकड़ा दिया जाता था, निचली जाति वाले को ऊपर से इस तरह पानी पिलाते थे कि उस के कपड़े तक भीग जाते थे. कहींकहीं निचली जाति के लोगों को इन प्याउओं पर पानी पिलाने से इनकार भी कर दिया जाता था.

एक व्यावहारिक सोच

असल में प्याऊ की शुरुआत ही ब्राह्मणों को पानी पिलाने के लिए की गई थी. लंबी दूरी तय कर पैदल आने वाले ब्राह्मण को प्यास लगती थी, इसलिए उस ने अपने लिए प्याऊ के रूप में ठंडे पानी का इंतजाम करा लिया. इसे पुण्य से जोड़ दिया गया कि जो प्यासे मेहमान को पानी से तृप्त करेगा उसे पुण्य प्राप्त होगा. आजादी से पहले और 60-70 के दशक तक प्याउओं पर जाति व्यवस्था पूरी तरह हावी रही. सरकार ने यह छुआछूत खत्म करने के लिए रेलवे स्टेशनों पर अपने प्याउओं पर जानबूझ कर दलितों को नियुक्त किया. अनेक लोग तो स्टेशनों पर बने प्याऊ पर पानी पीते ही नहीं थे. अब समय बदला है. जातिपांति का भेद खत्म हो रहा है. पानी पीने और पिलाने वाला दोनों अब एकदूसरे की जात की तहकीकात नहीं करते. पानी का प्याऊ ही नहीं, माहेश्वरी सर्दियों में रैनबसेरे भी चलाते हैं जिन में कंबल, आग और खाने की व्यवस्था भी होती है. यह सभी लोगों के लिए है, बिना किसी भेदभाव के.

असल में पानी का प्याऊ एक व्यावहारिक सोच है. यह सामाजिक कार्य मानवता की मिसाल है. हर व्यक्ति में ऐसे काम करने की भावना होनी चाहिए जो आम जनजीवन की परेशानियों, अड़चनों को दूर करे. प्याऊ से ही नहीं, दिनप्रतिदिन की जिंदगी में अनेक दूसरे काम किए जा सकते हैं जिन का लाभ औरों के साथसाथ आप को भी मिल सकता है. अगर कोई व्यक्ति अपने घर के आगे रोशनी के लिए बल्ब लगा ले तो आप को तो प्रकाश मिलेगा ही, दूसरे आनेजाने वालों को भी फायदा होगा. यही लाभ आप को दूसरे इलाकों में जाने पर मिलेगा. आप ने अंधेरा दूर किया तो दूसरे आप का भी अंधेरा दूर करेंगे. इसी तरह अगर किसी दुर्घटना में आप औरों की मदद करते हैं तो आप को भी ऐसी ही सहायता मिल सकती है. लोग ऐसे कार्य, व्यवहार द्वारा अपनी समस्या के साथसाथ दूसरों की समस्याएं दूर कर सकते हैं.

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