बाराबंकी जिले के एक गांव हैदरगढ़ से करीब 100 मजदूर रोज लखनऊ कामधंधे के लिये आते थे. केवल बाराबंकी जिले के ही नहीं सीतापुर, उन्नाव, रायबरेली और सुल्तानपुर जैसे जिलों से काफी तादाद में मजदूर लखनऊ आते थे. यह लोग ज्यादातर लोकल ट्रेन से आते थे. दिनभर यहां काम कर 6 से 7 बजे के बीच फिर वापस अपने घरों को चले जाते थे.

लखनऊ के महानगर, पौलीटेक्निक, अलीगंज, तेलीबाग जैसी जगहों के चैराहों पर यह लोग एक भीड की शक्ल में खड़े नजर आ जाते थे. कई बार मजदूरों की इस भीड़ से चैराहों पर जाम लग जाता था. जब से नोटबंदी की घोषणा हुई है, बाहर से आने वाले मजदूरो की शहरों में बहुत कमी हो गई है. कारण यह है कि अब लोग नोटबंदी से परेशान हैं और ऐसे कामों को आगे सरकाते जा रहे हैं.

लखनऊ के दुबग्गा में रहने वाले अभिषेक कहते है मैं घरों की मरम्मत और पोताई को काम करता हूं. नोटबंदी के बाद से लोग मजदूरी देने के बजाये कह रहे है कि बाद में ले लेना. जब मजदूरी का 1 हजार 15 सौ रूपया उनके पास जमा हो जाता है तो 2-4 सौ रूपये दे देते हैं. सब इस बात से परेशान दिखते है कि उनके पास पैसा होने के बाद भी निकाल नहीं पा रहे. हम भी हालात को देखते हुये पैसा नहीं मांगते. पर अब क्या करें? कितने दिन बिना पैसे के काम करें. ऐसे में उधार काम करने से बेहतर है कि घर बैठ जायें.

बाराबंकी से आने वाले दिनेश का कहना है, मजदूरी रोज कमाता रोज खाता है. उसके लिये धन केवल धन होता है. काला और सफेद क्या होता है यह पता नहीं होता. उसके लिये तो पैसा घर परिवार चलाने का माध्यम भर होता है. जिसके लिये वह मेहनत करता है. अब जब पैसा ही नहीं मिल रहा तो वहा जाने का क्या लाभ पर काम ने मिलने से हम जैसे मजदूर भुखमरी की कगार पर पहुंच गये हैं. नोटबंद होने का प्रभाव मजदूर वर्ग पर ज्यादा पड़ रहा है. नोटबंदी से कब क्या प्रभाव पड़ेगा पता नहीं पर अभी तो मजदूर परेशान हैं. वह भुखमरी के कगार पर है.केवल मजदूर ही नहीं छोटे मोटे कामधंधे वाले भी परेशान हैं.

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