धनबल, बाहुबल, जनबल के इस युग में जहां सामाजिक परिर्वतन को सिरमौर बनने की दृष्टि से देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक गिरावट के दौर में एक ऐसा व्यक्तित्व भी देखने को मिलता है, जो लोगों की आस्था का केंद्र बनता है. लोग उनके लिए न सिर्फ आंसू बहाते हैं बल्कि प्राण तक न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं. आखिर इस शख्स में ऐसा क्या था, जो उसके जाने के बाद लोगों को रूला गया.
हम बात कर रहे हैं समाज में आई नैतिक मूल्यों की गिरावट के उस दौर की जहां कुर्सी पाने के लिए राजनेता, भाई-भाई का कत्ल करने पर आमादा है. चुनाव जीतने में धन का बोलबाला है. राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए किसी भी हद तक जाने को लोग आतुर हैं. ऐसे कठिन और विपरीत समय में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का जाना और उनके लिए समूचे तमिलनाडु की जनता का ह्दय से विलाप, कोई छोटी बात नहीं है. यह वह जनता है जिसने अम्मा का बुरा वक्त भी देखा था और तब भी उनसे नजदीकियां कम नहीं हुयी थीं. आखिर अम्मा में ऐसा क्या था जो लोग उनके दीवाने हो गए. लोग न उनके लिए आंसू बहा रहे थे बल्कि अपना प्राणोत्सर्ग करने में भी उन्हें संकोच नहीं था. जनता का दीवानापन कोई छोटी बात नहीं है. खासतौर से जब व्यक्ति राजनीति में हो. हम जानते हैं कि राजनीति की राहें बहुत रपटीली और कंटकाकीर्ण हैं. जैसा कि हम जानते हैं कि हमारा लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए बना है. इसमें व्यक्ति मतदाता होता है और उसे अपना प्रतिनिधि चुनने की स्वतंत्रता होती है. बाद में वही प्रतिनिधि उस पर हूकूमत करता है. वही सत्ताधीश होता है. ग्राम पंचायत से लोकसभा तक मतदाता अपने भाग्यविधाता का निर्वाचन करता है. देखने में आता है कि चुनाव के वक्त राजनेता गिरगिट की तरह पैंतरे बदलते हैं और मतदाता रूपी भगवान को खुश करने के अनेक यत्न करते हैं. सीट या कुर्सी प्राप्त होने पर वह अभिमानी हो जाते हैं और उसी मतदाता से उन्हें बू आने लगती है. नौकरशाह उनके शार्गिद हो जाते हैं. तब जनता उन्हें उनकी राह अगले चुनाव में दिखाती है.
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