गुजरात स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों ने भाजपा के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. चुनावों में कांग्रेस को मिली कामयाबी से अब ‘मोदी मौडल’ पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. ये नतीजे भाजपा की लोकप्रियता में गिरावट के संकेत माने जा रहे हैं तो प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का उत्साह उमड़ पड़ा है.
ये चुनाव नतीजे वर्ष 2017 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए महत्त्वपूर्ण संकेत हैं. हालांकि प्रदेश भाजपा नेतृत्व ग्रामीण इलाकों में हार की समीक्षा की बात कह रहा है पर साफ है कि ग्रामीण मतदाताओं की नाराजगी साफ दिखाई दी है. राजनीतिक समीक्षक भाजपा के पिछड़ने की वजह पटेल आरक्षण, किसानों की अनदेखी, गरीबों तक योजनाओं का फायदा नहीं पहुंचने और सरकार द्वारा अमीरों, कौर्पोरेट पर खास मेहरबान रहने जैसे मामलों को मान रहे हैं.
चुनाव नतीजों में यह बात भी जाहिर हुई है कि पाटीदारपटेल मतदाताओं ने अपनी ही जाति के उम्मीदवारों को वोट दिए, वह चाहे कांग्रेस का रहा हो या भाजपा का.
इस चुनाव की खास बात यह रही कि 10 साल बाद पालिका व पंचायत में कांग्रेस की वापसी हुई है. 31 में से 24 जिलों व 230 में से 132 पंचायतों पर कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी है. भाजपा इस चुनाव में नरेंद्र मोदी की मजबूत अगुआई व अमित शाह की कही जाने वाली माइक्रोप्लानिंग के बिना ही चुनाव मैदान में उतरी थी. यह चुनाव गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के लिए परीक्षण समान माना जा रहा था. वे मोदी के दिए हुए भाजपा साम्राज्य को बचाने में विफल रही हैं. पिछले 15 सालों में राज्य में पहली बार भाजपा को भारी नुकसान हुआ है. चुनाव परिणाम के मद्देनजर, गुजरात विधानसभा की 182 में से 95 सीटों पर कांग्रेस मजबूत स्थिति में है.