जिंदगी के इस गणित में
दो और दो ना चार हैं,
अब तक समझ पाया न मैं
ये प्यार है, व्यापार है.
अश्क आंखों में नजर आते ही
ना समझो है गम.
दिल्लगी से भी बिगड़ जाए,
रहे ना अब वो हम.
ठूंठ हो कर रह चुका
गम आए इतनी बार हैं.
अब तक समझ पाया न मैं,
ये प्यार है, व्यापार है.
रूप सब के थे
मिलन के रंग से निखरे हुए.
अंजुमन में हर तरफ थे
फूल ही बिखरे हुए.
फिर भी पांवों के तले
अब क्यों जफा के खार हैं?
अब तक समझ पाया न मैं
ये प्यार है, व्यापार है.
इश्क की परछाइयों को
अब न पकड़ेंगे कभी.
हाथ आया था सिफर
और लुट गया मेरा सभी.
नुकसान का सौदा किया,
अपनी तो सब से हार है.
अब तक समझ पाया न मैं
ये प्यार है, व्यापार है.
-अतुल जैन
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