एक ओर दलितों को समाज बराबरी का अधिकार नहीं दे रहा, तो दूसरी ओर पिछड़ी जातियां दलित बनने के लिये लामबंदी कर रही हैं. 2003 की मुलायम सरकार से लेकर 2012 की अखिलेश सरकार तक यह प्रयास जारी है. 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की कैबिनेट ने 17 पिछड़ी जातियों को दलित जाति का दर्जा दे दिया है. समाजवादी पार्टी के इस कदम को बहुजन समाज पार्टी सही नहीं मान रही.

बसपा नेता मायावती ने कहा ‘सपा इन जातियों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है. 2005 में सपा ने यही काम इन जातियों के साथ किया था. जिससे यह जातियां न पिछडी रह पाई न दलित बन पाई. इनको मिलने वाला आरक्षण तक छिन गया था. तब बसपा सरकार ने इनका आरक्षण बहाल कराया था और दलितों का कोटा बढ़ाने के सुझाव के साथ केन्द्र को मसला भेजा था. दलित पर दर्जा देने का मसला केन्द्र के पास लंबित है.’

दलित बनने के पीछे का राज आरक्षण और सरकारी सुविधाओं से जुड़ा है. सरकारी लाभ के लिये पिछड़े वर्ग की 17 जातियां दलित बनना चाहती हैं. जिससे उनको भी दलितों की तरह आरक्षण का लाभ मिल सके. इन जातियों में कहार, कश्यप, राजभर, भर, बाथम, तुरहा, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, तुरहा, गोंड, माझी, और मछुआ शामिल हैं. समाजिक रूप से यह जातियां दलितों से अपने को अलग मानती हैं. इनके बीच किसी भी तरह का रोटी बेटी का संबंध नहीं है. एक साथ बैठ कर खाना भी नहीं खाते. यह बात अलग है कि आरक्षण की मलाई खाने के लिये यह दलित बनने के लिये प्रयासरत हैं.

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