बीती 14 जनवरी को छत्तीगढ़ के पूर्व मुख्य मंत्री अजीत जोगी जब ट्रेन द्वारा रायपुर से बिलासपुर पहुंचे तो बेहद तमतमाए हुये थे. आक्रोश, ग्लानि, प्रतिशोध, क्षोभ और बेबसी जैसे दर्जनों साहित्यिक शब्द मनोभाव बनकर उनके चेहरे पर साफ पढ़े जा सकते थे, लेकिन उन्हे देख स्टेशन आए उनके समर्थकों ने अंदाजा लगा लिया कि इस बार दिल्ली मे बात नहीं बनी। वैसे भी सभी को मालूम था कि राहुल –सोनिया गांधी ने जोगी समर्थकों को खाली हाथ टरका दिया है ऐसे में जोगी के मुंह से कोई शुभ समाचार सुनने की उनकी ख़्वाहिश अधूरी रह गई.

छग कांग्रेस मे घमासान तो जनवरी के पहले हफ्ते मे ही शुरू हो गया था जब प्रदेश इकाई ने मारवाही से विधायक अमित जोगी को एक प्रस्ताव पारित करते बाहर का रास्ता दिखा दिया था. अमित पर आरोप है  कि उन्होने 2014 के अंतरगढ़ विधान सभा उप चुनाव मे मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता से सौदेबाजी की थी जिसके तहत कांग्रेस प्रत्याशी मंतू राम ने एन वक्त पर अपना नाम वापस ले लिया था और भाजपा बगेर किसी जद्दोजहाद के जीत गई थी.

जैसे ही नए साल की शुरुआत मे अमित-पुनीत की बात चीत का आडियो टेप जारी हुआ तो प्रदेश कांग्रेस ने हरकत मे आते न केवल अमित को निष्काषित कर दिया बल्कि अजीत जोगी के निष्काशन की भी सिफ़ारिश आलाकमान से कर डाली. इसके बाद जोगी समर्थकों और विरोधियों की जो दिल्ली दौड़ शुरू हुई तो अभी तक थमी नहीं है. अजीत जोगी के धुर विरोधी भूपेश बघेल से तो राहुल गांधी मिल लिए और मामले की सारी जानकारी ली, लेकिन जोगी समर्थको को कोई भाव नहीं दिया, यहाँ तक कि अजीत जोगी की विधायक पत्नी रेणु जोगी को भी सोनिया गांधी ने मिलने समय नहीं दिया. 15 जनवरी को जब यह स्पष्ट हो गया कि जोगी परिवार की नहीं सुनी जा रही है और अमित का मामला हाल फिल-हाल अधर मे ही रहेगा, तो लगने वालों को गलत नहीं लगा कि जोगी जी के दिन अब लद रहे हैं.

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