90 के दशक में एक मूवी आई थी ‘प्रेमगीत’ जिस का एक गाना बहुत प्रचलित था, ‘होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो, न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन...’

यह बात सच है कि जब व्यक्ति किसी से प्रेम करता है या उस के प्रति आकृष्ट होता है तो वह उस के विचार, उस की सोच से बहुत ज्यादा प्रभावित होता है. किसी व्यक्ति का स्वरूप तभी तक आंखों में रहता है जब तक वह व्यक्ति उस के सामने होता है किंतु उस की बातें दूसरे व्यक्ति के मानसपटल पर बहुत समय तक छाई रहती हैं. यानी व्यक्ति के व्यक्तित्व में उस की सोच का बहुत अहम किरदार होता है और प्रेम वही होता है जो व्यक्ति से न हो कर व्यक्तित्व से होता है.

शायद प्रेम और आकर्षण में यही फर्क है. व्यक्ति शारीरिक रूप से जिस उम्र का होता है मानसिक रूप से कभीकभी उस से कम या ज्यादा उम्र का हो सकता है. यानी जरूरी नहीं है कि शारीरिक और मानसिक उम्र एकबराबर ही हो. कभीकभी व्यक्ति जिस्म से प्रौढ़ हो जाता है किंतु मन से बहुत युवा होता है और प्यार में अगर 2 व्यक्ति मानसिक रूप से एकदूसरे के पूरक हैं तो शारीरिक उम्र का अंतर बेमानी साबित हो जाता है. अगर दोनों की उम्र में अंतर होता है तो रोजमर्रा के बहुत से मतभेद आसानी से निबट जाते हैं. जबकि एक ही उम्र का होने पर दोनों का ईगो क्लैश होना भी बड़ी सामान्य बात होता है जो रिश्तों की बुनियाद हिला देता है.

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