52 वर्षीय तबला वादक और संगीतकार तौफीक कुरैशी ने अपने प्रशंसकों को संगीत के कई नएनए वाद्ययंत्रों से परिचित करवाया है. उन्होंने अफ्रीका के एक प्राचीन वाद्य ‘जिम्बे’ को हिंदुस्तानी संगीत के साथ जोड़ कर फ्यूजन संगीत बनाया जिसे देश में ही नहीं, विदेश में भी लोग आश्चर्य से सुनते हैं.

बचपन से ही शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वाले तौफीक के पिता उस्ताद अल्ला रक्खा और भाई उस्ताद जाकिर हुसैन हैं. उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ली. इस के बाद की शिक्षा उन्होंने पंडित विक्कू विनायक्रम और घाटम विधवान से ली. वे लाइव परफौर्मेंस के लिए जाने जाते हैं. शुरुआती दौर में उन का म्यूजिक बैंड ‘सूर्या’ काफी प्रसिद्ध रहा. देशविदेश में उन्होंने कई प्रस्तुतियां दीं. आज भी उन के किसी भी कौन्सर्ट में हजारों लोगों की भीड़ जुटती है.

उन्होंने टीवी सीरियल्स, ऐड जिंगल्स, एलबम आदि सभी के लिए काम किया है. वे ‘जिम्बे’ के अलावा डफ, बोंगो, बाताजौन आदि बजाते हैं. शास्त्रीय संगीत के दौर के बारे में पूछे जाने पर वे बताते हैं, ‘‘शास्त्रीय संगीत आज भी जीवित है. पिछले 10-15 सालों में संगीत के क्षेत्र में काफी बदलाव आए हैं पर आज भी अच्छा संगीत सभी पसंद करते हैं.

‘‘हालांकि हमारे सभी साथी कलाकार अपनी कला में परिवर्तन कर रहे हैं लेकिन संगीत का आधार हमेशा शास्त्रीय संगीत ही रहेगा. बिना शास्त्रीय संगीत के कोई भी फ्यूजन या नया संगीत नहीं बन सकता.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘संगीत में पारंगत होने के लिए रियाज जरूरी है और रियाज के लिए धैर्य का होना अति आवश्यक है और धैर्य, आज के युवाओं में कम है. आज का युवा जल्दी पैसा कमाने की सोचता है. ऐसे में बहुत कम युवा इस दिशा की ओर आगे बढ़ रहे हैं. शास्त्रीय? संगीत में कामयाबी के लिए 4 घंटे प्रतिदिन रियाज करना पड़ता है.’’

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