पांडुरावजी रात भर सो नहीं पाए थे. बात ही ऐसी हो गई थी. देशमुखजी ने कल रात की बैठक में उन पर जो हमला किया था, उस से वह तिलमिला गए थे. हां, देशमुख ही कह रहे थे, ‘‘इतनी गंदगी शहर में है कि नागरिकों का रहना मुश्किल हो गया है. सड़कों पर गड्ढे, खंबों पर बल्ब नहीं, ट्यूब लाइटें बंद पड़ी हैं. सारा शहर सड़ रहा है. लगता है प्रशासन ही सो गया है. मैं तो राज्य सरकार से अपील करूंगा कि बोर्ड ही भंग कर दिया जाए.’’ ‘‘बोर्ड भंग कर दिया जाए...बोर्ड भंग...’’

पांडुरावजी की नींद गायब हो गई थी. समाचारपत्र में छपा था, ‘‘पिछले साल 16 इस साल 56 फिर भी शहर गंदा.’’

उधर गाएं चारे के अभाव में गोशाला में मर रही थीं. हर वार्ड के सदस्य कुश्ती पर उतारू हो गए थे. बहन तारा व कसारा तो पांडुरावजी से ही लड़ गई थीं. सुबह उठते ही उन्होंने दरवाजे पर खड़ी नगर परिषद की कार को देखा. देखते ही रह गए. मोह आया, गाय जैसे बछड़े को चाटती है उसे हाथ से सहलाते रहे...गाय जड़ थी नहीं तो रंभा जाती.

माली आ गया था. जमादार बाहर सड़क पर हरिजनों को डांट रहा था. ‘हूं, यह हुकूमत ही तो देशमुख को चुभ गई है.’ वह बड़बड़ाए. टेलीफोन पर हाथ गया. रिसीवर उठाया. कमिश्नर को आने को तुरंत कह कर तैयार होने चले गए.

सक्सेनाजी की रात, मीठे सपनों में गुजर गई थी. कल की बैठक क्या हुई, लगा मानो शीरनी बरस रही हो. हैल्थ आफिसर पांडे पास ही बैठा था. बोला, ‘‘सर, अभियान हो जाए.’’ ‘‘सफाई अभियान,’’ गुप्ता चीफ सेनेटरी इंस्पेक्टर उछल गया था.

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