सांस की बीमारियों में मरीज को कई बार चक्कर आ जाते हैं. ऐसे में कुछ लोग इस को भूतप्रेत व झड़फूंक से जोड़ कर इस का इलाज शुरू कर देते हैं. इस से बचना चाहिए. श्वास की बीमारी का कारण फेफड़े भी हो सकते हैं. ऐसे में पहले यह समझ लें कि फेफड़े यानी लंग्स किस तरह से बीमार होते हैं और उन का क्या इलाज है. अगर झड़फूंक से इस का इलाज करेंगे तो नुकसान हो सकता है, जिस का प्रभाव मरीज के जीवन पर पड़ता है.

डाक्टर शिवम त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘जब लंग्स और हार्ट हैल्दी होते हैं तो उन का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है. शरीर स्वस्थ होता है तो कार्यक्षमता बढ़ती है और काम करने में मन लगता है. लंग्स की बीमारियों के बारे में लोगों को कम जानकारी होती है.’’

कोई भी असामान्य स्थिति या बीमारी जो फेफड़ों को ठीक से काम करने से रोकती है उसे फेफड़े की बीमारी कहा जाता है. फेफड़ों की बीमारी में कई प्रकार की बीमारियां शामिल हैं जो फेफड़ों की सामान्य रूप से कार्य करने की क्षमता को खराब कर देती हैं. इन में बैक्टीरिया, वायरल और फंगल संक्रमण सहित फेफड़ों के संक्रमण विभिन्न प्रकार की बीमारियों का कारण बनते हैं. फेफड़ों की अन्य बीमारियों में अस्थमा, मेसोथेलियोमा और फेफड़ों का कैंसर शामिल हैं.

फेफड़ों की बीमारियां 3 कारणों से फैलती हैं. वायु प्रदूषण इन में सब से प्रमुख है. इस के कारण फेफड़ों से सांस अंदर लेना और छोड़ना मुश्किल हो जाता है. दूसरा, फेफड़ों के संक्रमण के कारण सांस लेने वाली नली प्रभावित होती है. लंबे समय तक सीने में दर्द, अत्यधिक बलगम बनना, घबराहट, लगातार खांसी, सूजन या दर्द, लगातार थकावट महसूस होना, खांसी के साथ खून आना, सांस लेने में तकलीफ, वजन कम होना और लगातार सांस में संक्रमण फेफड़ों की कमजोरी की निशानी है.

इस से अस्थमा, क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और ब्रोंकाइटिस की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इस के अलावा फेफड़े में घाव या सूजन आ जाती है जिस से फेफड़े फैल नहीं पाते हैं और तब फेफड़ों को औक्सीजन लेने व कार्बन डाइऔक्साइड छोड़ने में कठिनाई होती है. ऐसे में मरीज गहरी सांस लेने में असमर्थ होते हैं.

कई बार रक्त संचार प्रभावित होता है जिस से फेफड़ों की रक्त धमनियां प्रभावित होती हैं. ऐसे में रक्त नलियों में थक्का जमना, घाव होना या सूजन होना आम होता है. अस्थमा और निमोनिया जैसे फेफड़ों के रोगों के कारण सांस लेने में परेशानी होती है. यदि आप का हृदय आप के शरीर में औक्सीजन पहुंचाने के लिए पर्याप्त रक्त पंप करने में असमर्थ है तो आप को सांस लेने में परेशानी और घबराहट के दौरे पड़ सकते हैं. इतना ही नहीं, चलने, सीढि़यां चढ़ने, दौड़ने या चुपचाप बैठने के दौरान भी सांस की तकलीफ होती है.

लंग्स की बीमारियों के लक्षण

यदि किसी को खांसी व सीने में दर्द के साथ बहुत अधिक खून आ रहा है तो यह फेफड़ों की बीमारी का संकेत हो सकता है. यदि सीढि़यां चढ़ने, चलने पर सांस फूले तो यह भी फेफड़ों की बीमारियों का संकेत हो सकता है. फेफड़ों के रोग का सब से बड़ा कारण धूम्रपान होता है. जो लोग धूम्रपान करते हैं उन में फेफड़े के कैंसर सहित फेफड़ों की बीमारियां विकसित होने की संभावना अधिक होती है. कई बार एलर्जी के कारण भी फेफड़ों के रोग बढ़ते हैं. इस से फेफड़ों की वायु थैलियों और उस के आसपास सूजन हो सकती है जो दर्द का कारण बनती है.

इलाज

फेफड़ों के रोगों में ब्रोंकोडाइलेटर्स का प्रयोग किया जाता है. ब्रोंकोडाइलेटर्स ऐसी दवाएं हैं जो फेफड़ों की मांसपेशियों को आराम देती हैं. ये नलियों को खोलती हैं, जिस से सांस लेना आसान हो जाता है. इस के अलावा इनहेल्ड स्टेरौयड का उपयोग किया जाता है. इनहेल्ड कौर्टिको स्टेरौइड्स फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं और बीमारियों को आगे बढ़ने से रोकते हैं. जो लंबे समय तक इस का उपयोग करते हैं, उन में निमोनिया होने की संभावना अधिक होती है क्योंकि दवा सीधे फेफड़ों में जाती है और कुछ दुष्प्रभाव पैदा कर सकती है.

दवाओं के अलावा कुछ उपाय हैं जिन से फेफड़ों की बीमारियों से बचा जा सकता है. इस के लिए धूम्रपान न करें. वायु प्रदूषण से बचें. शुद्ध हवा का प्रयोग करें. उन लोगों से दूर रहें जो संक्रमण वाली बीमारियों से ग्रसित हों. उन से सावधानी से मिलें. जहरीली गंध, गैस, धुआं और अन्य खतरनाक पदार्थों से बचना चाहिए. फ्लू या सर्दी से पीडि़त लोगों के निकट संपर्क से बचें. नियमित जांच कराएं. फेफड़े कितने प्रभावी ढंग से काम कर रहे हैं, इस की जांच कराएं.

सावधानियां

फेफड़ों की बीमारियां बैक्टीरियल, वायरल या फंगल बीमारियां हो सकती हैं. निमोनिया जैसे फेफड़ों के रोग एक या दोनों फेफड़ों को प्रभावित करते हैं. खांसी, बलगम, बुखार और सीने में दर्द ये सभी निमोनिया के लक्षण हैं. फेफड़ों का संक्रमण और बीमारियां किसी को भी हो सकती हैं. बुजुर्ग लोग इस बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए धूम्रपान से बचें. अधिक गहराई से सांस लेने का प्रयास करें. प्रदूषण से हर कीमत पर बचना चाहिए.

खाने में लहसुन, पानी, मिर्च, सेब, कद्दू, हलदी, टमाटर, ब्लू बेरी और ग्रीन टी का प्रयोग फेफड़ों को हैल्दी रखने में मदद करता है. दवा और ऐक्सरसाइज से फेफड़ों को हैल्दी रखा जा सकता है. इस के लिए झड़फूंक और झलाछाप डाक्टरों से बचें. कई बार लोग इन बीमारियों का इलाज झड़फूंक में ढूढ़ने लगते हैं जो ठीक नहीं.

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