क्या धौनी का दौर खत्म?

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी के दिन कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं. उन की असफलता को ले कर लोगों ने खुलेआम मुंह खोलना शुरू कर दिया है. पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन ने कहा कि धौनी अब वे पहले जैसे खिलाड़ी नहीं रहे इसलिए चयनकर्ताओं को इस दिशा में गंभीरता से सोचना चाहिए. यह बात सही भी है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से टीम इंडिया को लगातार शर्मनाक हार का सामना करना पड़ रहा है. विदेशी धरती पर तो टीम इंडिया फ्लौप साबित हो ही रही है और अब घरेलू मैदान में भी धौनी की रणनीति कुछ खास असर नहीं दिखा पा रही है. कानपुर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले एकदिवसीय मैच में रोहित शर्मा के 150 रन के बावजूद भारत 5 रन से मैच हार गया. धौनी भी टीम को लक्ष्य तक पहुंचाने में नाकाम रहे. हालांकि इस की भरपाई धौनी ने दूसरे एकदिवसीय मैच में पूरी कर ली. लेकिन इस से धौनी की गलतियों को ढका नहीं जा सकता.

कुछ वर्ष पहले तक अपनी चतुराई भरी कप्तानी से चयनकर्ताओं और आम दर्शकों में अपनी खासी पहचान बनाने वाले धौनी अब न तो दर्शकों का दिल जीत पा रहे हैं और न ही चयनकर्ताओं का. धौनी के खिलाफ आज से नहीं बल्कि बहुत पहले से आवाज उठ रही है. इधर लगातार उन के नेतृत्व में टीम इंडिया हार रही है जिस की आलोचना पूर्व खिलाडि़यों से ले कर वर्तमान खिलाड़ी भी कर रहे हैं. विराट कोहली से उन का मतभेद कुछ छिपा नहीं है. रवि शास्त्री भी धौनी को पसंद नहीं कर रहे हैं. अब तो धौनी को बचाने वाला एन श्रीनिवासन का वर्चस्व भी बीसीसीआई में खत्म हो गया है. एक वह दौर था जब धौनी को पारस पत्थर माना जाता था लेकिन अब उन पर फ्लौप कप्तान का लेबल चस्पां हो चुका है. अगर वाकई धौनी को अपनी इज्जत प्यारी है और पारस पत्थर का तमगा बरकरार रखना है तो उन्हें खुद ही पहल करनी चाहिए और दूसरे खिलाडि़यों के लिए रास्ता साफ कर देना चाहिए. यदि धौनी अब भी कप्तानी के मोहपाश से अपने को अलग नहीं करते तो हो सकता है कि एक दिन उन्हें स्वयं कहना पड़े, ‘बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले.’

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