जब बौलीवुड में कई सौ करोड़ रूपए की लागत वाली फिल्में भी निराश कर रही हों, ऐसे में महज चालीस लाख रूपए की लागत से ‘द ब्लू बेरी हंट’ जैसी फिल्म का निर्माण कर फिल्मकार अनूप कूरियन ने साबित कर दिखाया कि अच्छी फिल्में बजट की मोहताज नहीं होती हैं.

फिल्म ‘‘द ब्लू बेरी हंट’’ की कहानी पूरी तरह से केरला की पहाड़ी इलाके वागामोन में अपने प्रिय पालतू कुत्ते के पी के साथ रह रहे कर्नल (नसिरूद्दीन शाह) के इर्द गिर्द घूमती है. वह किस तरह अपने स्टेट में मारिजुआना/गांजा की ‘ब्लू बेरी हंक’ की दुर्लभ और बेशकीमती फसल उगाने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस फसल की खेती करना कानूनन जुर्म है. पर उन्हे कानून की परवाह नही है. उन्होने अपनी व ब्लू बेरी हंक फसल की निगरानी रखने के लिए चारों तरफ से छह सीसीटीवी कैमरे फिट कर रखे हैं और इन कैमरों के सामने जब भी कोई गतिविधि होती है, तो उसकी सूचना तुरंत उन्हे उनके कम्प्यूटर के साथ साथ मोबाइल पर मिल जाती है. वह बंदूक चलाने में भी माहिर हैं. तो वहीं नदी में तैरना जानते हैं. उन्होंने इस बेशकीमती फसल को जार्ज (पी जे उन्नीकृष्णन) के माध्यम से बेचने का सौदा कर रखा है.

एक दिन जार्ज अपने साथ बिहार निवासी सेठ (विपिन शर्मा) को लेकर पहुंचता है, यह बात कर्नल को अच्छी नहीं लगती. लेकिन बिहारी सेठ का मानना है कि वह पैसा देते हैं तो फसल का सबूत भी देखना चाहते हैं. फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है. चार दिन बाद उसे काटकर बेचना है. पर तभी एक युवक कर्नल को मारने पहुंचता है, मगर कर्नल के खुफिया कैमरे उन्हें इत्तला दे देते हैं और वह मारा जाता है. उसके बाद सेठ फिर जार्ज के साथ आता है. और एक कहानी सुनाकर अपने साथ बंदी बनाकर लायी गयी लड़की जया (आहाना कुमरा) को उनके पास सुरक्षित रखने के लिए छोड़ जाता है. धीरे धीरे जया, कर्नल का दिल जीत लेती है और कर्नल उसे उसकी मां के पास वापस भेजने का वादा कर देते हैं. उसके बाद एक महाराष्ट्यिन उन्हे मारने आता है. पर वह कर्नल की बजाय कर्नल के कुत्ते को मौत के घाट उतारता है. फिर कर्नल उसे मौत के घाट उतार देते हैं.

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