पटवारी राजस्व महकमे का भले ही एक मामूली कर्मचारी होताहै, लेकिन उस के कारनामे एक से बढ़ कर एकहैं. छोटे ही नहीं, बल्कि बड़े किसानों की गांठ से भी वह पैसा निकलवाने का तरीका बखूबी जानता है. पटवारी को बगैर भेंट चढ़ाए किसानों के जूते घिस जाते हैं, लेकिन काम नहीं होता. पटवारी की कलम का मारा किसान जिंदगी भर मुकदमे में उलझा रहता है. इसलिए झंझट से बचने के लिए लोग पटवारी को नाखुश नहीं करते और उस की मांग पूरी करते रहतेहैं.

बीच का खेत नहीं सूखा

पिछले साल यानी 2016 में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सूबे सूखे की चपेट में थे. इस आपदा की मार से दोनों सूबे के कई किसानों ने मौत को गले लगा लिया. जो बचे वे पटवारियों की करामात के कारण खून के आंसू रोते रहे. सूखा पटवारियों के लिए कमाई का सुनहरा मौका था. जिन किसानों ने पटवारियों को खुश कर दिया, उन का मुआवजा बन गया, लेकिन जिन्होंने भेंट नहीं चढ़ाई, वे भटकते रह गए. सतना जिले के एक किसान सोमेश तिवारी ने बताया, ‘एक बड़े खेत के 3 हिस्से हैं. मुझे खेत के बीच में हिस्सा मिला है, लेकिन मैं ने उसे घूस नहीं दी थी. उस ने जो रिपोर्ट पेश की थी, उस में लिखाथा कि सोमेश की फसल को नुकसान नहीं हुआ है. सोचिए कि ऐसा कैसे हो सकताहै सूखे से तो पूरा खेत ही प्रभावित होगा न बीच की फसल सूखे से कैसे बच जाएगी मैं ने पटवारी की शिकायत कलेक्टर, विधायक और कृषि मंत्री सेभी की. अखबारों में खबर भी छपवाई, लेकिन उस का बाल बांका भी नहीं हुआ. मैं आज तक मुआवजा नहीं पा सका.’

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