सब को पसंद आने वाली सब्जियों में भिंडी का स्थान सब से आगे है. किसी को कद्दू से परहेज होता है, तो कोई घुइयां खाने में आनाकानी करता है, मगर भिंडी की तरकारी को आमतौर पर सभी चाव से खाते हैं. यही वजह है कि हर मौसम में भिंडी की मांग रहती है और यह खूब धड़ल्ले से बिकती है. भिंडी के शौकीन इसे 50 रुपए पाव के रेट से भी खरीदते हैं और 20 रुपए पाव के रेट से भी लेते हैं यानी उन्हें यह मनपसंद सब्जी किसी भी कीमत पर लेनी होती है. चूंकि यह काफी डिमांड वाली सब्जी है, लिहाजा इस की खेती करना काफी फायदे का सौदा रहता है. किसान तोे बड़े पैमाने पर भिंडी बोते ही हैं, पर आम लोग भी अगर उन के पास थोड़ीबहुत जमीन हो तो आराम से भिंडी की फसल उगा सकते?हैं. यहां पेश हैं भिंडी की खेती से जुड़ी चंद खास बातें:
जमीन : भिंडी की खेती के लिए सही पानी निकास वाली दोमट से चिकनी मिट्टी तक मुफीद होती है.
बोआई का वक्त : करीब पूरे साल बिकने वाली भिंडी की बोआई करने के लिहाज से फरवरीमार्च, जूनजुलाई व अक्तूबरनवंबर के महीने मुनासिब होते?हैं.
खेत की तैयारी : भिंडी की खेती के लिए भी खेत की बाकायदा पूरी तैयारी करनी चाहिए. इस के लिए खेत की पहली जुताई हैरो द्वारा करें. इस के बाद 2 बार साधारण ट्रेलर से जुताई करें. हर जुताई के बाद खेत में पाटा लगाना बेहतर रहता है. पाटा लगाने से जमीन जल्दी भुरभुरी हो जाती है.
बीज की मात्रा : भिंडी की उम्दा खेती के लिए 8-10 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना ठीक रहता है.
बोआई का फासला : भिंडी की बोआई हमेशा सीधी लाइनों में करनी चाहिए. एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी
60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. लाइनों में एक पौधे से दूसरे पौधे का फासला 30 सेंटीमीटर होना चाहिए. ज्यादा पासपास बोआई करने से पौधों की बढ़वार ठीक से नहीं हो पाती है. इसी तरह लाइनों के बीच का फासला भी निहायत जरूरी है. तकरीबन 60 सेंटीमीटर यानी 2 फुट का फासला लाइनों के दर्मियान रहने से पौधों की देखभाल करने में सहूलियत होती?है. लाइनों के बीच अंतर होने से फलों की तोड़ाई करने में भी आसानी होती है.
खाद व उर्वरक : बोआई से पहले खेत की तैयारी के वक्त खेत में 50-60 बैलगाड़ी गोबर की अच्छी तरह सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालनी चाहिए. इस के अलावा 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए.
सिंचाई : खेत में नमी का खयाल हमेशा रखना चाहिए. खास कर बीजों का अंकुरण होने के बाद 1 बार खेत की सिंचाई करना बेहद जरूरी है. इस के बाद जरूरत के मुताबिक खेत की सिंचाई करनी चाहिए.
अंतरसस्य क्रियाएं
(अन्य जरूरी काम)
अंतरसस्य क्रियाओं यानी दूसरे जरूरी कामों के तहत भिंडी के खेत को खरपतवारों से बचा कर रखना बेहद जरूरी?है. इस के लिए कम से कम 3 बार खेत की निराईगुड़ाई करना बहुत ही जरूरी है. निराईगुड़ाई के काम में कतई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, वरना फसल पर खराब असर पड़ सकता?है.
रोगों से बचाव : तमाम फसलों की तरह भिंडी की फसल भी रोगों से बच नहीं पाती. सब से ज्यादा आम बीमारी पाउडरी मिल्ड्यू होने पर बचाव के लिए 20 से 25 किलोग्राम सल्फर का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 2 से 3 बार बुरकाव करें. सल्फर की बजाय केराथेन का छिड़काव भी किया जा सकता है.
पीली नसों वाली मोजेक वायरस से संक्रमित पौधों को खेत से दूर ले जा कर जला कर खाक कर देना चाहिए.
कीड़ों से बचाव : बीमारियों के साथसाथ भिंडी की फसल कुछ कीड़ों की चपेट में?भी आती रहती?है, लिहाजा कीड़ों के प्रति चौकन्ना रहना भी बेहद जरूरी होता है.
सफेद मक्खी का फसल पर हमला होने की हालत में कारगर कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए. अपने इलाके के हिसाब से मुफीद कीटनाशक का ही इस्तेमाल करना मुनासिब होत?है. इस के लिए अपने इलाके के कृषि वैज्ञानिक से बात की जा सकती है. सफेद मक्खी के अलावा चूसक कीड़े भी भिंडी की फसल के दुश्मन होते?हैं. ये फसल की तीसरी पत्तों की अवस्था में ज्यादा घातक रहते?हैं. इन की रोकथाम के लिए इलाके के हिसाब से कारगर कीटनाशक का इस्तेमाल करना बेहतर रहता है. इस मामले में भी अपने इलाके के कृषि वैज्ञानिक की सलाह ले कर ही दवा का इस्तेमाल करना चाहिए. इस प्रकार संकर भिंडी की सुधरी हुई खेती कर के किसान भाईभरपूर उपज हासिल कर सकते हैं.