जनगणना 2011 के आंकड़ों के मुताबिक, देश की तकरीबन 72 फीसदी आबादी गांवों में रहती है. देश में आधे से अधिक लोग खेती पर ही निर्भर हैं. मगर दुख की बात यह है कि अभी भी किसान खेती के प्रति सही से जागरूक नहीं हुए हैं. इस से विदेशों के मुकाबले प्रति हेक्टेयर पैदावार में हम काफी पीछे हैं. नतीजतन, किसान खेती में घाटा झेलने को मजबूर हैं, जिस से खेतीकिसानी छोड़ने के आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं.

एक अनुमान के मुताबिक, पिछले एक दशक में किसानों की तादाद तकरीबन 1 करोड़ घटी है. सरकारी कमियों को छोड़ दें तो इस के लिए बहुत हद तक किसान भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि किसान खेतीबागबानी की सही तरीके से देखभाल नहीं कर पाते हैं. यदि किसान सही तरह से खेती के तौरतरीके अपनाना शुरू करे तो खेतीबागबानी का यह नुकसान काफी हद तक कम हो सकता है.

खेतीकिसानी के इंतजाम में ऐसी ही एक जरूरी चीज है लेखाजोखा रखना. लेखाजोखा कितना महत्त्वपूर्ण है, यह हम इस बात से जान सकते हैं कि पिछले दिनों भारतीय किसान यूनियन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस में पता चला था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक हेक्टेयर खेत में गेहूं की उत्पादन लागत 77,830 रुपए है, जबकि इस गेहूं की बाजार कीमत महज 61,400 रुपए ही है.

आमतौर पर किसान खेती से संबंधित काम का कोई लेखाजोखा नहीं रखते हैं, जिस से यह पता नहीं चल पाता है कि कौन सी फसल से नफा हुआ या नुकसान  वे यह भी नहीं जानते हैं कि उन्हें किस मद में अधिक पैसा खर्च करना पड़ रहा है  किन बिंदुओं पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है  इनसान मेहनत को अहमियत दे या आधुनिक औजारोंमशीनों को.

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