7 साल का राजीव कुछ दिनों से चुपचुप रहने लगा था. वह कहता था कि वह स्कूल नहीं जाएगा. स्कूल जाने से उस के सिर में दर्द होता है. उस की बातों को बहाना मान कर मातापिता ने जबरदस्ती उसे स्कूल भेजा पर वहां वह पढ़तालिखता नहीं था. टिफिन का खाना नहीं खाता था. मातापिता गौर कर रहे थे कि पहले की तरह वह सक्रिय व चंचल नहीं था. परेशान हो कर राजीव की मां स्कूल गई, पता चला कि वहां वह पीछे बैठ कर सोता रहता है. दोस्तों से बात तक नहीं करता.

घर आ कर मां ने उस से पूछा कि वह ऐसा क्यों करता है तो पहले तो वह कुछ नहीं बोला फिर जोर देने पर काफी देर बाद उस ने बताया कि उस की एक गलती पर टीचर ने स्केल से उस के हाथ पर मारा है. यह उसे बहुत खराब लगा. टीचर उसे स्केल से मारने के बजाय दूसरी सजा भी दे सकती थी. उस का कहना है कि वह अब उस स्कूल में नहीं जाएगा, किसी दूसरे स्कूल में पढ़ेगा. मां उसे काउंसलर के पास ले गईं. काउंसलर से बात करने पर पता चला कि राजीव डिप्रैशन के दौर से गुजर रहा है. इलाज के बाद शुरुआत में उस का इलाज शुरू हुआ. पहले तो वह बिना यूनिफौर्म के स्कूल जाता था, साथ में मां भी स्कूल जाती थीं, 2 महीने बाद इलाज से वह सामान्य हो गया.

बदलते समीकरण

राजीव तो उदाहरण मात्र है, इस तरह की घटनाएं आजकल अकसर घटती रहती हैं. इस बारे में काउंसलर याशिता लालपुरिया बताती हैं कि आजकल के बच्चे मीडिया व आधुनिक तकनीक के काफी करीब हैं. वे अपनी मानसिक क्षमता से अधिक एक्स्पोजर पा रहे हैं. प्रतियोगिता बहुत बढ़ चुकी है. साथ ही, मातापिता का स्कूलों में बेहतर अकादमिक प्रदर्शन का दबाव, मातापिता की आपसी अनबन, सैपरेशन एंग्जायटी, स्कूल बदलना, दोस्तों में नासमझी, सैक्सुअल एब्यूज आदि बातें भी बाल मन पर असर डालती हैं. ऐसे में बच्चा उस परिस्थिति से भागने की कोशिश करता है और अगर मातापिता का ध्यान उस ओर नहीं गया तो बच्चा डिप्रैशन का शिकार हो जाता है. मातापिता जानते हैं बच्चे उन का भविष्य हैं. आज जो कुछ वे उन पर लुटाएंगे बुढ़ापे में उन्हें उस का सुख भी मिलेगा. उन की यही चाह उन से वह सब करा देती है जो उन्हें नहीं करना चाहिए.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...