गुस्सा एक प्रकार का भाव है जो व्यक्ति के अंतर्मन में रहता है. यह एक प्रकार का नकारात्मक भाव है जिस में अपराध बोध, आक्रोष, ईर्ष्या आदि बहुतकुछ शामिल होता है. गुस्सा आने से व्यक्ति की सकारात्मक सोच लगभग समाप्त हो जाती है.

चायनीज मैडिसिन में गुस्से को यकृत से जोड़ा गया है. जब आप को लिवर की बीमारी होती है, आप उत्तेजित और चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं लेकिन आज के बदलते परिवेश में इस नकारात्मक भाव का असर कुछ अधिक दिखाई पड़ने लगा है. गुस्से में व्यक्ति सहीगलत समझने की शक्ति खो देता है. कई बार तो गुस्से में लोग गलत काम भी कर बैठते हैं और जब उन्हें महसूस होता है तब पछताने के सिवा उन के पास कोई रास्ता नहीं रह जाता.

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मुंबई के हीरानंदानी अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक डा. हरीश शेट्टी कहते हैं कि आजकल गुस्से की परिभाषा बदल चुकी है. आज के बच्चे नौर्मल तरीके से अपने अभिभावक और मातापिता से ऐसे बातचीत करते हैं जैसे गुस्से में हों. जबकि ऐसा होता नहीं. मित्रता की वजह से खुल कर बात करते हैं. अब दोस्ती का वातावरण आ चुका है. बच्चों और मातापिता के बीच की दूरी कम हो चुकी है. नौर्मल बातचीत में भी वे एकदूसरे को धक्का मारते हैं. ऐसा नहीं है कि वे मातापिता को प्यार या सम्मान नहीं करते. लेकिन देखना यह है कि ये बातचीत कितनी हद तक ठीक है? कहीं वह उन्हें किसी प्रकार की हानि तो नहीं पहुंचा रही? उन के स्वभाव में बदलाव तो नहीं आ रहा?

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