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सभी ने मिल कर उन्हें नर्सिंगहोम पहुंचाया. डाक्टरों ने तत्काल उन्हें आईसीयू में भरती किया. दिल का दौरा पड़ा था. हालत बहुत गंभीर थी. हालत सुधरने तक सभी वहीं बैठे रहे. इधर रोतीबिलखती सरिता को महिलाओं ने गले लगा कर संभाले रखा. इलाज का लंबा खर्च आया था, जिसे बिल्डिंग के सारे लोगों ने सहर्ष वहन किया. बाद में सभी को उन की रकम लौटा दी गई पर निस्वार्थ सेवा को कैसे लौटाया जा सकता था. सब से बड़ी बात यह थी कि बिल्डिंग में होली का त्योहार नहीं मनाया गया. बच्चे निरुत्साहित थे पर कोई शिकायत नहीं थी. समय की नजाकत को सभी समझ रहे थे.

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4 दिनों बाद अमेरिका से उन का बेटा समीर जब तक आया, तब तक विनय खतरे से बाहर थे. समीर ने सारे बिल्डिंग वालों को दिल से धन्यवाद दिया. बेटे के आने के बाद भी बिल्डिंग के पुरुषवर्ग अपनी ड्यूटी निभाते रहे. घर में सरिता को महिलाओं ने संभाले रखा. सरिता में जबरदस्त बदलाव आया था. सारी महिलाओं और बच्चों पर अपना प्यार लुटा रही थीं. इस प्यार के असर और डाक्टरों की कोशिश से 2 हफ्ते बाद ही विनय स्वस्थ हो कर घर आ गए.

होली के दिन बिल्डिंग में भले ही रंग नहीं गिरा हो, पर सब का दिल खुशियों के फुहार में भीग उठा था. सरिता और विनय में आए बदलाव ने पूरी बिल्डिंग में प्यार का छलकता सागर प्रवाहित कर दिया था जिस में सभी बहे जा रहे थे. अमेरिका लौट जाने से पहले समीर की इच्छा थी कि वह पिता का दिल्ली में अच्छी तरह से चैकअप करवा दे. बिल्डिंग के सभी लोगों को समीर का विचार बहुत ही भाया. सभी की राय से विनय और सरिता दिल्ली चले गए.

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