समलैंगिक संबंधों को सुप्रीम कोर्ट ने अब जुर्मों के बाहर कर दिया है. ताजीराते हिंद यानि इंडियन पीनल कोर्ड की धारा 377 की मरम्मत करते हुए उन्होंने साफ कह दिया है कि दो जनानों का किसी भी तरह का प्रेम कानूनी दायरे में नहीं आएगा. यह कानून अंग्रेजों ने बनाया था पर उस से पहले किस बात को समाज गलत मानता था और किस को नहीं आज कहना मुश्किल है. समाज का कानून तो पति के मर जाने पर भी बेवा पत्नी को सजाए मौत की सजा देता रहा है. दया आई तो उस का सिर मुंडवा कर कभी वृंदावन भेज दिया था तो कभी घर के कोने में धकेल दिया.

लेकिन 2 आदमियों के बीच सैक्स कोई नई बात नहीं है. और न ही अजीबोगरीब. बोलचाल की  गालियों में इस का इस्तेमाल ऐसे किया जाता है मानो हर जना ही समलैंगिक हो. समाज इन गालियों को सिरमाथे पर रखता है, वर्ना तो कब का इन पर रोकटोक लग सकती थी. कभी रामायण महाभारत को पढ़ कर देवताओं के कारनामों के बारे में कुछ कह कर देखें, समाज के ठेकेदार बिलबिला कर पीछे पड़ जाएंगे. जाहिर है समाज को आदमियों के बीच सैक्स उसी तरह मंजूर है जैसे वेश्याओं से. चूंचूं कर ली पर होने दिए.

सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानूनी दायरे के बाहर कर के अब 2 औरतों और 2 आदमियों को मर्जी से एकदूसरे के साथ रहने की इजाजत दे दी है. कम से कम खाकी वर्दी वाला डंडा घुमाता तो नहीं आएगा. वैसे एक आदमी औरत के बीच पैसे देले कर भी सैक्स कानून में जुर्म नहीं है पर पुलिस और कुछ कानूनों का सहारा ले कर पकड़ ही लेती थी. 2 आदमियों और 2 औरतों के बीच शादी अब कानून नहीं हो सकती. शादी होने के बाद विरासत का फायदा हो जाता है और गोद लेने में आसानी रहती है. शायद यह अगला कदम होगा.

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