नोटबंदी का आर्थिक लाभ हो या न हो, उस ने सामाजिक नुकसान जरूर कर दिया है. देशभर के नागरिकों को सरकार ने एक झटके में गुनहगार बना दिया क्योंकि उन के पास अपने कमाए हुए 1,000 व 500 रुपए के नोट थे. 8 नवंबर की रात के बाद हर नागरिक अपने पुराने नोटों को इस तरह देख रहा है मानो उस ने ये कमाए नहीं, रिजर्व बैंक से चुराए थे.
लोगों को पापी की श्रेणी में रखने का यह बहुत पुराना फार्मूला है. बहुत राज्य इसे राज करने का सुगम तरीका मानते रहे हैं. गोरों की जमात में काला, कालों की जमात में गोरा, यहूदियों के बीच ईसाई, सुन्नी मुसलमानों के बीच शिया मुसलमान, काने, लंगड़े, बौने व लंबे समाज व धर्म के शिकार रहे हैं और लगभग हर धर्म व धर्म के सहारे राजा ज्यादा से ज्यादा लोगों को पापी या गुनहगार की श्रेणी में रखना चाहते रहे हैं. लोकतंत्र ने इस प्रवृत्ति को बदला था पर नोटबंदी जैसे फैसलों से समाज में यह फिर दाखिल होने लगी है.
नोटबंदी का प्रभाव यह हुआ है कि अब समाचार आते हैं कि 2 लाख के पुराने नोट लिए व्यक्ति पकड़ा गया, ट्रेन से 11 लाख के पुराने नोटों सहित व्यक्ति जेल में, नगालैंड जाते 3.5 करोड़ रुपए पकड़े आदि. जिन नोटों पर लोगों का कानूनी, सामाजिक अधिकार था, एक झटके में वे गुनाह के सुबूत हो गए.
इस का मानसिकता पर असर पड़ता ही है. अपने कमाए हुए नोटों को नोटबंदी के चलते रखते हुए एक गरीब, सभ्य इंसान इस तरह घबराएगा कि मानो उस ने जहर की पुडि़यों को तिजोरी में रख रखा है. आदमी को कमजोर करने की यह पुरानी भगवाई तरकीब है पर आमतौर पर यह जनता के छोटे हिस्से पर लागू की जाती है. नरेंद्र मोदी ने देश को कठघरे में खड़ा कर डाला है. 1975-79 की आपातस्थिति की तरह हर मुंह पर अब ताला जड़ दिया गया है. हर कोई, जिस के पास 1,000-500 के नोट हैं, अपने को गुनहगार मान रहा है.
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