साल 2013 में समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अंगरेजी की आलोचना कर अंगरेजी समाचारपत्रों और अंगरेजी लेखकों को उकसा दिया है. अंगरेजी भक्तों के लिए मुलायम सिंह के अंगरेजी के खिलाफ बोले गए चंद शब्द ऐसे हैं जैसे भजभज मंडली के लिए राम और कृष्ण की पोल खोलते रामायण व महाभारत से लिए गए अंश. दोनों को भारतीय दंड विधान की 295 ए धारा ऐसे ही मौकों पर याद आती है.

मूलतया दोनों तरह के लोगों का छिपा कारण एक ही है. धर्म और अंगरेजी के सहारे इस देश पर एक वर्ग विशेष बिना ज्यादा प्रतिस्पर्धा के राज करने में सफल हो रहा है. जैसे हर मंदिर के पास मानो यह अधिकार है कि वह आसपास की हजारों एकड़ जमीन पर अपना हक जमा ले, वैसे ही अंगरेजी के ज्ञान का देश की जनता के पैसे, मेहनत, प्रभाव पर एकाधिकार जमाने का मानो पूरा हक है.

अंगरेजी मोटी कमाई का जरिया है तो अंगरेजी जानने वालों के लिए, काम करने वालों के लिए नहीं. अंगरेजी में माहिर लोग दूसरों को बेवकूफ बनाते हैं. वे पंडों, मौलवियों, पादरियों की तरह ठगने में बेहद सफल हैं.

भारतीय संविधान की धारा 343 (1) की खुली अवहेलना कर के सरकार ने अपनी भाषा आज भी अंगरेजी रखी है ताकि आम आदमी सरकार की भाषा समझ न सके. आज भी आप को सरकार से कोई आवेदन करना है तो अंगरेजी जानना जरूरी है. और इस के लिए बिचौलियों की जरूरत पड़ती है जो पंडों की तरह काम करते हैं.

संस्कृत, अरबी या लैटिन में गिटपिट करने वाले धर्म के दुकानदारों की तरह अंगरेजी में गिटपिट करने वाले अधिकारी, व्यापारी, प्रोफेसर, विचारक, लेखक कम परिश्रम कर अरबों कमा रहे हैं. नेता भी अफसरों की सुनते हैं क्योंकि नेताओं का अंगरेजी ज्ञान सीमित है. वे अंगरेजी वालों को खुश करने के लिए अंगरेजी समाचारपत्रों को बड़ेबड़े विज्ञापन देते हैं, अंगरेजी लेखकों को विदेश यात्राओं पर भेजते हैं.

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