गुड्स ऐंड सर्विसेस टैक्स यानी जीएसटी, राहुल गांधी के शब्दों में गब्बर सिंह टैक्स, असल में पंडों का कुंडली टैक्स है जो हर हिंदू को जन्म से ब्रेनवाशिंग द्वारा जकड़ लेता है. केंद्र सरकार बड़ेबड़े विज्ञापन दे रही है कि वन नेशन वन टैक्स के जरिए अभूतपूर्व प्रगति होगी. दरअसल, यह वैसा ही है जैसा पंडित कहते हैं कि कुंडली बनवाओ, ग्रहदोष ठीक कराओ और जीवनभर सुख पाओ.
सरकारी टैक्स और हिंदू टैक्स में समानताएं ही समानताएं हैं. लगता है वित्त मंत्रालय में कुंडली बनाने वालों की बरात बैठी है जिन के डीएनए में ही है कि हर मानव पापी है और केवल पाखंडी कर्मकांड कर के ही वह पापों का प्रायश्चित्त कर सकता है. यही नहीं, ये कर्मकांड उसे हर रोज, हर सप्ताह, हर माह, हर वर्ष करने ही होंगे और हर बार दान, दक्षिणा, आहुतियां और सब से बड़ी बात, समय देना ही होगा. जीएसटी में कुंडली में कुंडली है और ग्रहदोष पर ग्रहदोष.
जीएसटी ऐसा है जैसा अकसर हिंदी फिल्मों में दिखता है कि विवाह का शुभमुहूर्त निकला जा रहा है और वर व वधू का मंडप में होना अनिवार्य है. जीएसटी में इस तरह के प्रावधानों का अंबार है. ईवे बिल तो हर काम पंडित से पूछ कर करने वाली प्रक्रिया जैसा है जब तक कंप्यूटर पंडा हां न कहे आप बनाबनाया सामान कहीं भेज नहीं सकते.
जीएसटी के प्रवर्तक सारे देश में गौसेवकों की तरह फैलने वाले हैं. गौसेवकों के गले में भगवा दुपट्टा होता है और हाथों में डंडे, फरसे जबकि जीएसटी सेवकों के पास कंप्यूटर टैबलेट होंगे ताकि वे पता कर सकें कि सामान आवश्यक मुहूर्त में सभी विधिविधानों के बाद कंप्यूटर पंडा की अनुमति से ही निकला है या नहीं. हर गलती पर महापाप लगेगा जिस के दंड में अपना आखिरी लंगोट तक जीएसटी पुरोहितों को देना पड़ सकता है.