सरकारी योजनाओं का फायदा बिहार में छोटे किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा है. खेती की जमीन के मालिकाना हक को ले कर मची अराजकता और छोटे किसानों तक खेती की तरक्की की योजनाएं नहीं पहुंच पाने की वजह से खेती और छोटे किसानों की हालत लगातार खराब होती जा रही है. इस से छोटे किसानों का खेती से मन उचटता जा रहा है. यही वजह है कि खेती का रकबा और उत्पादन बढ़ाने की तमाम सरकारी योजनाएं फेल हो रही हैं. खेती छोड़ कर किसान पेट पालने के लिए मजदूरी करने लगे हैं, जिस वजह से खेतिहर मजदूरों की संख्या आज 270 लाख हो गई है.

बिहार में 80.26 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती की जाती है. यहां की खेती छोटे जोत वाले किसानों पर आधारित है, क्योंकि 96 फीसदी किसान ऐसे हैं जिन के पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है. कुल खेती लायक जमीन का 67 फीसदी हिस्सा ऐसे ही किसानों के पास है. साधनों की काफी कमी होने की वजह से ये किसान खेती की नई तनकीकों और सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं उठा पाते हैं.

जहानाबाद के चेनारी गांव के किसान अरुण प्रसाद ने बताया, ‘सभी सरकारी योजनाओं का फायदा बड़े और पहुंच वाले किसान ही उठाते हैं. छोटे किसानों को तो पता ही नहीं चल पाता है कि उन के लिए क्या क्या स्कीमें हैं. सीओ, बीडीओ और मुखिया में से कोई भी छोटे किसानों की बात सुनने वाला नहीं है. 2 साल पहले सरकारी अनुदान पर मिलने वाले पावर टिलर को लेने के लिए कई बाबुओं के पास दौड़ लगाई, पर कुछ नहीं हो सका.’

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