घरपरिवार से अलग रह रहे बुजुर्ग अपराधियों के लिए सौफ्ट टारगेट होते हैं. आएदिन खबर आती रहती है कि अकेले बुजुर्ग दंपती को लूटपाट के इरादे से अपराधियों ने मार डाला. ऐसे में बुजुर्गों की सुरक्षा बड़ी चिंता का विषय है. अभी हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में अकेले रह रहे 75 वर्षीय बुजुर्ग के पी अग्रवाल की मुंह दबा कर की गई हत्या ने एक बार फिर अकेले रहने वाले बुजुर्गों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं. के पी अग्रवाल के घर के अंदर व नीचे तलघर पर चल रहे उन के सर्विस सैंटर में सारा सामान बिखरा पड़ा मिला, जिस में कैश, ज्वैलरी सबकुछ गायब था.
उन की 2 बेटियों की शादी हो चुकी है और बेटा अपने परिवार के साथ दुबई में रहता है. खुशदिल व मिलनसार के पी अग्रवाल सभी सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे. वे अपना घर, अपने पड़ोसियों व जानपहचान वालों को छोड़ कर नई जगह नहीं जाना चाहते थे, क्योंकि वे यहां अपने लोगों के बीच अपनत्व की भावना महसूस करते थे. अकेले रहने की जिद ने आखिरकार उन की जान ले ली. आर्थिकरूप से समृद्ध परंतु अकेले रह रहे के पी अग्रवाल किसी शातिर अपराधी की निगाहों में आ गए, जिस ने लूट की नीयत से बड़ी आसानी से उन्हें अपना शिकार बना डाला.
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2019 में दिल्ली के ही पौश इलाके वसंत विहार में रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी विष्णु माथुर और उन की पत्नी का कत्ल कर दिया गया था. यही नहीं, उन के साथ रह रही उन की फुलटाइम मेड को भी हत्यारों ने बड़ी निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया था. घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था. शायद हत्यारे लूट के इरादे से घर में घुसे थे. पार्टटाइम नौकरानी जब काम पर आई तब इस ट्रिपल मर्डर का खुलासा हुआ. देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य महानगरों में भी अकेले रह रहे बुजुर्ग आज इन अपराधियों के रडार पर हैं. बल्कि, देखा जाए तो देश के तकरीबन हर शहर में इस तरह की घटनाएं अब आम हो चली हैं. स दरौली के थाना क्षेत्र बलहुं में 3 मई को अकेली रह रही बुजुर्ग औरत शैलदेवी की हत्या का मामला सामने आया था. उस का पति और इकलौता बेटा दिल्ली में काम करते थे और वह अकेली घर पर रह कर खेतीबाड़ी से संबंधित काम देखा करती थी.
इसी तरह, 2019 में देहरादून के डोईवाला कोतवाली क्षेत्र में 65 वर्षीय बुजुर्ग मलकीत सिंह अपने घर में मरे पाए गए थे. सुबह उन के नौकर के आने पर हत्या का खुलासा हो सका था. ये बुजुर्ग भी अकेले रहते थे. स साइबर सिटी गुरुग्राम के डीएलएफ फेज-1 इलाके में 70 वर्षीया महिला की उस के घर में गला घोंट कर हत्या कर दी गई. वृद्ध महिला के शरीर से चूडि़यां और सोने की चेन सहित सभी कीमती सामान गायब मिले. स यूपी के लखनऊ में अकेले रहने वाले बुजुर्ग दंपती कृष्णदत्त पांडेय और उन की पत्नी माधुरी पांडेय की निर्मम हत्या कर दी गई. जान लेने के बाद हत्यारे घर में रखी नकदी एवं लाखों रुपयों के गहने लूट कर ले गए. कृष्णदत्त पांडेय रेलवे से रिटायर्ड कर्मचारी थे. उन की एक बेटी मंजू शादीशुदा है और बेटा अमरीश दुबई में डाक्टर है. उन के घर में रह रहे किराएदारों के आने पर उक्त घटना का पता चल सका.
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उपरोक्त सभी घटनाएं समाज में बुजुर्गों के खिलाफ बढ़ते अपराधों की सूची में नित नए नाम जोड़ती जा रही हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ड्स के मुताबिक, इस मामले में मुंबई पहले स्थान पर है. विश्व के सब से सुरक्षित कहे जाने वाले शहरों में से एक कोलकाता में भी ऐसे मामलों में 38 फीसदी वृद्धि हुई है. यूनाइटेड नैशंस पौपुलेशन फंड (यूएनपीएफ) ने भी बीते साल अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2050 में भारत में बुजुर्गों की संख्या बढ़ कर तीनगुना हो जाएगी. आंकड़ों की यह सूची स्थिति की गंभीरता पर प्रकाश डालने के लिए काफी है. ऐसे में अकेले रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा उन के बच्चों के लिए खासी चिंता का विषय बन जाती है.
आज के दौर में व्यस्त जिंदगी की तेज रफ्तार और उस से कदमताल करते बच्चे पहले अपनी उच्चशिक्षा, फिर सफल कैरियर के लिए पूरी इच्छाशक्ति से कृतसंकल्प हैं. इस में उन के अभिभावकों का भी अहम रोल रहता है. पर यही बच्चे जब हौसलों के पंख मजबूत कर ख्वाहिशों की उड़ान भरते हैं तो पीछे रह जाती है थके हुए कमजोर कदमों की धीमी पदचाप, जिसे समाज में रह रहे शातिर अपराधी आसानी से सूंघ लेते हैं और नृशंसता से उन का शिकार कर अपना घिनौना मकसद पूरा कर लेते हैं. उपरोक्त अधिकतर मामलों में सामने आया है कि इन नृशंस हत्याओं के पीछे अपराधी का मुख्य मकसद लूटपाट करना था. ऐसी हालत में तर्कसंगत दृष्टि से यह सम?ाने की आवश्यकता है कि आखिर बुजुर्गों के अकेले रहने के कौनकौन से कारण हो सकते हैं.
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व्यर्थ की जिद या अकड़ परिवर्तन प्रकृति का नियम है. परंतु कुछ बुजुर्ग समयानुसार आए बदलावों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते. दूसरे शब्दों में कहें तो पूरी जिंदगी अपने हिसाब से चलने वाले बुजुर्ग बुजुर्गियत के इस दौर में बच्चों के कहे अनुसार चलने में अपनी शान को कम सम?ाते हैं. नतीजतन, अपनी जिद या अकड़ में बच्चों के साथ जाना या रहना पसंद नहीं करते हैं. उपरोक्त तथ्य तब और भी पुख्ता तरीके से मजबूत हो जाता है जब वे आर्थिकरूप से आत्मनिर्भर हों, यानी उन के पास घर, मकान या रुपएपैसों की कमी न हो. 65 वर्षीय रमाकांत सहाय शहर के जानेमाने वकील थे.
आज भी घरपरिवार में उन का रौब चलता था. इकलौती बेटी का ससुराल उसी शहर में था और दोनों बेटों में से एक मलयेशिया तो दूसरा यूके में सैटल्ड था. बेटों के पास घूमनेफिरने के इरादे से जाना उन्हें कभी नहीं खला. लेकिन जब पत्नी की अचानक हुई मौत के बाद बेटों ने उन्हें अपने पास शिफ्ट हो जाने को कहा तो उन्होंने यह कह कर साफ इनकार कर दिया कि किसी और के पास रहने के बजाय वे अकेले अपने तरीके से रहना अधिक पसंद करेंगे. बच्चे भी क्या करते, उन के हठ के आगे किसी की एक न चली. एक साल तक तो सब ठीक चलता रहा, पर एक रात उन के घर पर चोरों ने धावा बोला और उन्हें बांध कर एक कोने में डाल दिया व काफी माल लूट कर भाग गए.
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बाद में पुलिस तहकीकात में पता चला कि घर में खाना बनाने वाली बाई ने उन के अकेले रहने और घर की संपन्नता का बखान कभी अपने पति से किया था. उसी ने बाद में अपने दोस्तों के साथ मिल कर उन्हें लूटने की योजना बनाई थी. पैसारुपया तो वापस नहीं मिला, गनीमत रही कि रमाकांत की जान बच गई. अपनेपन का मोह कई बार बुजुर्ग अपने पुश्तैनी या स्वयं के बनाए मकान में रहने का मोह नहीं छोड़ पाते और अकेले रहने का जोखिम उठाते हैं. उस वातावरण या जगह से उन्हें अपनेपन की महक महसूस होती है. लिहाजा, वे किसी भी कीमत पर अपने निवास स्थान को छोड़ने को राजी नहीं होते जहां वे सालों से रहते आए हैं.
नई जगह में एडजस्ट न हो पाने का डर कई बार मातापिता अपने बच्चों के साथ जाने या रहने से इसलिए भी कतराते हैं क्योंकि नई जगह में नए लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने में उन्हें घबराहट या परेशानी होती है. सो, बच्चों के साथ नई जगह शिफ्ट होने के बजाय वे अकेले रहना अधिक सुविधाजनक महसूस करते हैं. अन्य वजहें इस सचाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि बच्चों के गैरजिम्मेदाराना रवैए के कारण भी कई बुजुर्ग अकेले रहने को मजबूर हैं. कई बार बच्चे स्वयं ही पेरैंट्स के साथ रहना पसंद नहीं करते, न ही उन्हें अपने साथ रखने को राजी होते हैं. कारण कोई भी हो, पर शारीरिक रूप से अशक्त हो चुके ये बुजुर्ग अकेले रहते हुए अकसर ही किसी अपराधी मनोवृत्ति का शिकार हो अपनी जान गंवा बैठते हैं. सुरक्षा में सेंध अब एक महत्त्वपूर्ण बिंदु यह सामने आता है कि अकेले रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा को आखिर किस तरह से खतरा है या वे कौन सी खामियां हैं जिन के चलते उन की सुरक्षा में चूक हो जाती है और असमय ही उन्हें इस तरह मृत्यु का ग्रास बनना पड़ता है?
गोपनीयता भंग करना अकेलेपन से घबरा कर कई बुजुर्ग किसी से भी बातचीत करने में गुरेज नहीं करते और इसी दौरान जानेअनजाने उन्हें कुछ ऐसी जानकारी भी दे बैठते हैं जो अपराधी मानसिकता वाले व्यक्ति के लिए मददगार हो जाती हैं. समाजशास्त्री राघवेंद्र पटेल कहते हैं, ‘‘अकेले रहते बुजुर्गों को घर में कोई समस्या आने पर कई बार बाहर से प्लम्बर, इलैक्ट्रिशियन आदि को बुलाना जरूरी हो जाता है. इन में से अगर कोई व्यक्ति अपराधी प्रवृत्ति का होता है तो वह घर की समृद्धि व इन का अकेलापन सूंघ लेता है व धीरेधीरे इन की मदद का दिखावा कर इन से आत्मीयता बढ़ाता है और फिर अपनी लूट की योजना को अंजाम तक पहुंचाता है. किसी पर भी बहुत जल्दी भरोसा कर लेना शारीरिक अक्षमता व अकेलेपन की लाचारी बुजुर्गों को अंदर ही अंदर अवसादग्रस्त कर देती है. लिहाजा, किसी से भी जरा सा प्रेम या अपनापन मिलते ही वे उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगते हैं और उस के आगे अपनी लाचारी व आर्थिक संपन्नता का बखान कर उस के लालच को हवा दे कर उस की बुरी नीयत का शिकार हो बैठते हैं.
नौकरों के सामने पैसे या ज्वैलरी का दिखावा करना राजधानी दिल्ली में लोकल लैवल पर बुजुर्गों का सिक्योरिटी औडिट करने वाले बीट कौंस्टेबल राजीव दुबे बताते हैं, ‘‘अकसर बुजुर्गों द्वारा अपने पुराने नौकर, ड्राइवर या धोबी आदि पर अतिविश्वास करना उन्हें मुश्किल में डाल जाता है. क्योंकि वे इन लोगों के सामने आसानी से अपना लौकर खोल कर पैसा, ज्वैलरी व अन्य कीमती सामान का प्रदर्शन करते हैं, जिस से व्यक्ति के मन में लालच आते देर नहीं लगती.’’ सो, कभी भी नौकरों आदि के सामने अपनी संपन्नता का बखान करने से बचना चाहिए. बिना वैरिफिकेशन के किसी को नौकरी पर रखना शरीर से थकेहारे बुजुर्ग कई बार अपनी मदद या सेवा के लिए बिना प्रौपर वैरिफिकेशन के नौकर या मेड आदि रख लेते हैं.
उन की यह छोटी सी गलती आगे जा कर किसी भयावह घटना में तबदील हो जाती है. अकसर ही ऐसी घटी कई घटनाओं में घर के नौकर मुख्यतया संलिप्त पाए गए हैं. यहां एक और बात भी गौर करने लायक है. अकेले रह रहे बुजुर्गों को सब से अधिक खतरा चोरी, सेंधमारी या लूट की नीयत वाले बदमाशों से होता है, जो अकसर विरोध करने या पहचाने जाने के डर से इन की हत्या कर देते हैं और ऐसा व्यक्ति ज्यादातर इन के परिचितों में से ही एक होता है. वरना एकदम अनजान अपराधी, जो ऐसे आसान शिकार की टोह में घूमते फिरते हैं, सामान्यतया लूट के दौरान हत्या जैसा जघन्य कांड करने से बचते हैं.
सुरक्षा के उपाय तो आइए अब जानते हैं कि सुरक्षा के किन उपायों को अपना कर बुजुर्गों की चिंता से काफी हद तक नजात पाई जा सकती है- द्य घर के मेनगेट पर मजबूत चेन लगवाएं, जिस से अनचाही एंट्री से बचा जा सके. द्य घर के अंदर व बाहर मुख्य जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगवाएं. द्य बीट औफिसर और अपने थाने का फोन नंबर अपने पास रखें ताकि जरूरत पड़ने पर सीधी मदद मांगी जा सके. द्य नौकर या मेड की नियुक्ति पर प्रौपर पुलिस वैरिफिकेशन करवाएं.
पासपड़ोसियों के संपर्क में रहें जिस से वे रोजाना आप के हालचाल लेते रहें और किसी भी अनचाही स्थिति में आप की सहायता कर सकें. द्य घर के नौकरों, ड्राइवर या अन्य किसी व्यक्ति के सामने फोन पर बाहर रह रहे अपने बच्चों से पैसों आदि के बारे में चर्चा करने से बचें. द्य चाहे कितना भी पुराना और विश्वस्त नौकर क्यों न हो, उस के सामने अपना लौकर आदि खोलने से बचें. द्य दरवाजों पर मजबूत और एक्स्ट्रा लौक लगवाएं. उपरोक्त टिप्स अपना कर कई आकस्मिक खतरों से बुजुर्गों का बचाव काफी हद तक किया जा सकता है. वैसे, कई राज्य सरकारों द्वारा अकेले रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा हेतु एहतियातन अब कड़े कदम उठाए जा रहे हैं, जिन में इन का थानेवार नाम, पता और मोबाइल नंबर दर्ज किया जाता है. कई प्लांस जैसे ‘सवेरा योजना’, ‘सीनियर सिटिजन सेल’ आदि बनाए गए हैं जिन में संबंधित थानों में इन का रजिस्ट्रेशन कराया जाता है.
तत्काल मदद के लिए इन्हें टोलफ्री हैल्पलाइन नंबर मुहैया कराए जाते हैं जिस पर किसी भी परिस्थिति या परेशानी में वे सीधी मदद की गुहार लगा सकें और तुरंत ही उन तक सहायता पहुंचाई जा सके. आजकल अकेले रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय पुलिस भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. समयसमय पर टैलीफोन पर बात कर के उन से उन के हालचाल मालूम किए जाते हैं. इस के अलावा, फील्ड विजिट के जरिए भी बुजुर्गों को उन की सुरक्षा का भरोसा दिया जाता है व उन की समस्याओं को दूर किया जाता है. सो, यदि आप के मातापिता भी बुजुर्ग हो चले हैं तो जहां तक हो सके उन्हें अपने पास रखें और यदि साथ न रख सकें तो कम से कम उन की सुरक्षा के समुचित उपाय करें. आखिर आप के बुजुर्ग आप की जिम्मेदारी हैं. उन से लगातार संपर्क में रहें, रोजाना थोड़ी देर उन से बात अवश्य करें ताकि वे स्वयं को अकेला व असहाय न सम?ों और न ही किसी अप्रिय घटना के शिकार हों.