मैं अपनी बहन की लड़की की शादी में गई थी. हमारे यहां प्रथा है कि बरात आने से पहले लड़की कुलदेवता के सामने बैठ कर गौरीपूजन करती है. बहन का घर सुदूर देहात में था. अप्रैल का महीना होने की वजह से काफी गरमी पड़ रही थी.
प्रथा के अनुसार लड़की को गौरीपूजन के लिए बैठाया गया. शादी की भारीभरकम साड़ी और चुनरी से लदीफंदी लड़की ने 2 दिन से उपवास रखा था. आधे घंटे के बाद बिजली चली गई. ऊपर से जैनरेटर भी खराब हो गया.
अचानक लड़की बेहोश हो कर गिर गई. कुछ औरतों ने उसे उठा कर पलंग पर लिटा दिया. सभी लोग घबरा गए. डाक्टर को बुला कर दिखाया गया तो इलाज के बाद लड़की ठीक हो सकी. इलाज के अभाव में लड़की की मृत्यु हो सकती थी.
वीणा कुमारी, समस्तीपुर (बिहार)
होली के अवसर पर मैं और मेरे पति अपने एक परिचित के घर पर पहली बार गए. हमारे पास रंग के नाम पर गुलाल ही था. चूंकि श्रीनगर में ठंड बहुत ज्यादा होती है, इसलिए होली खेलने के लिए थोड़ा सा गुलाल ही इस्तेमाल किया जा रहा था.
उन के बच्चे खिड़की में बैठे बड़ी मायूसी से बाहर होली खेलने वालों को देख रहे थे. हम ने डोरबैल बजाई तो बड़े लड़के ने दरवाजा खोला. हम ने अपना परिचय दे कर उसे गुलाल लगाने को तत्पर होते हुए ‘होली मुबारक हो’ बेटा कहा तो वह बोला, ‘‘नहीं अंकल, हम होली नहीं खेल सकते. हमारे यहां इस बार होली नहीं खेली जाएगी.’’
हम ने एकदम अपना हाथ रोकते हुए पूछा, ‘‘क्यों?’’ तो उस ने बताया, ‘‘हमारे दादाजी के बड़े भाई की मृत्यु हुए अभी 3 ही महीने हुए हैं इसलिए इस बार हम लोग होली नहीं खेल सकते.’’
हम ने अफसोस जताया, तबतक बच्चों की मम्मी भी वहां आ गई थीं. हम वापस जाने लगे तो दोनों बच्चों खासकर छोटे वाले की होली खेलते लोगों को देख रही हसरत भरी आंखें व चेहरे की मायूसी जैसे दिल में गड़ गईं.
हमारे देश में आज भी कुछ रूढि़यां, परंपराएं व रिवाज बड़ी ही शिद्दत व गहराई से मौजूद हैं. उस में से एक है कि खानदान में किसी की मौत हो जाए तो सालभर तक कोई त्योहार व खुशी नहीं मनाई जाती है. यह धार्मिक बेड़ी है और कुछ नहीं.
इन रिवाजों की बेडि़यों को भला बच्चे क्या समझ पाएंगे. आज के तनाव भरे जीवन में जो रूढि़यां व परंपराएं और भी दुख भरें, जीवन को तनावयुक्त करें उन्हें निभाना कहां तक उचित है?
मंजु शर्मा, श्रीनगर (जम्मू कश्मीर)

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