फिर घिसापिटा मुद्दा

चंद चाटुकारों से घिरे राहुल गांधी को जब कुछ नहीं सूझता तो वे दलितों के हक की राजनीति करने लगते हैं. इसी झोंक में वे भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली महू जा पहुंचे और ऐसी बातें कर डालीं मानो कांग्रेसी राज में दलित बड़े सुकून से रहते थे जो भाजपा के राज में उन से छिन गया है. इस घिसेपिटे मुद्दे से अब आम लोगों को वितृष्णा सी हो चली है कि जाने क्यों नेता सलीके की बात नहीं करते. रैली और भाषण के बाद राहुल के खास सिपहसालार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राहुल की तारीफ करने में फुरती दिखाई तो लोग यह पूछते नजर आए कि दलित अत्याचारों के मामले में वे पहले अपने इलाके ग्वालियरचंबल में झांक लें जहां देश में सब से अधिक दलित अत्याचार होते हैं.

जनता के आम

दूसरे के घर या राह चलते पत्थर मार कर आम तोड़ने का मजा ही कुछ और है. चोरी के ये आम बडे़ स्वादिष्ठ लगते हैं क्योंकि ये मेहनत और चालाकी से हासिल किए जाते हैं. जिन के आंगन में आम लगे होते हैं वे गरमी के दिनों में आम के सीजन में सो नहीं पाते कि जाने कब उन के घर कहीं से सनसनाता पत्थर आए और धड़ाम की आवाज सुनाई दे, आम टूटे न टूटे पर खिड़की के कांच टूट गए तो हजारों रुपए का चूना लग जाता है. एक दिलचस्प इलजाम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जीतनराम मांझी ने लगाया कि सीएम हाउस के आम, कटहल, लीची वगैरह की हिफाजत के लिए 25 सदस्यीय पुलिस टीम तैनात की गई है जिस का मकसद उन्हें फल खाने से रोकना है. आरोपप्रत्यारोप राजनीतिक हैं लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि सरकारी आवासों में लगे फलदार वृक्षों पर हक किस का है और इन की हिफाजत पर क्यों लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं. इस से तो अच्छा है कि आम तोड़ कर आम जनता में बांट दिए जाएं. वैसे, मांझी वक्त रहते मुख्यमंत्री निवास खाली कर देते तो इस विवाद और पहरेदारी की जरूरत ही न पड़ती.

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