सरकार अर्थव्यवस्था को आसानी से आगे बढ़ाने के लिए बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति पर बारीक नजर रखे हुए है. सरकार बैंकों पर गैर निष्पादित संपत्ति को कम करने पर जोर दे रही है और साथ ही, उस ने बैंकों को कुछ क्षेत्रों के लिए ऋण देने में कोताही नहीं बरतने के निर्देश दिए हैं. ऐसे में बैंक द्विविधा की स्थिति में हैं. बैंकों का पैसा छोटे और सामान्य कारोबारियों अथवा जनसामान्य के पास नहीं है बल्कि बैंकों का पैसा रियल एस्टेट में फंसा हुआ है. इस क्षेत्र में उन के करीब 62 हजार करोड़ रुपए फंसे हुए हैं.

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के हवाले से आई खबरों के अनुसार, डैवलपरों ने बड़ीबड़ी अट्टालिकाएं खड़ी तो कर दी हैं लेकिन उन्हें ग्राहक नहीं मिल रहे हैं. क्रिसिल ने एक अध्ययन कराया है जिस में 25 शीर्ष भवन निर्माताओं को शामिल किया गया है. इन निर्माताओं का रियलिटी क्षेत्र के 95 फीसदी कारोबार पर कब्जा है.

अध्ययन में कहा गया है कि इस क्षेत्र पर बैंकों का 61,500 करोड़ रुपए का कर्ज शेष पड़ा हुआ है. बिल्डरों ने भवन तो खड़े कर लिए हैं लेकिन उन्हें ग्राहक नहीं मिल रहे हैं. उन का कहना है कि एक बहुमंजिला भवन खड़ा करने में करीब 5 साल का वक्त लगता है लेकिन मंदी के कारण उन्हें ग्राहक मिलने पर लगभग इतना ही समय और लग रहा है.

इस से बिल्डरों को बैंकों का कर्ज लौटाने में दिक्कत हो रही है. भुगतान में देरी होगी तो उस का ब्याज उसी दर से बढ़ता रहेगा, जिस से बिल्डरों को नुकसान होगा. लेकिन यह भी तय है कि बिल्डर ने 5 साल पहले जिस दर पर भवन बनाया था उस से कई गुना ज्यादा दर पर वह उस भवन को बेचेगा, इसलिए नुकसान नहीं है.

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