चार्ल्स डिकेन के उपन्यास ‘‘ग्रेट एक्सपेक्टैशन’’ पर अभिषेक कपूर फिल्म ‘‘फितूर’’ लेकर आए हैं, जिसे देखने का अर्थ खुद को सजा देना है. यह एक घटिया फिल्म है, जो कि कहानी के स्तर पर भी दर्शक को कन्फ्यूज करती है. निर्देशक अभिषेक कपूर भी पूरी तरह से कन्फ्यूज नजर आते हैं. उन्हे समझ में नही आ रहा है कि वह कहानी व अपने किरदारों को किस दिशा में ले जाएं.
फिल्म की कहानी एक तेरह वर्षीय लड़के नूर (आदित्य रॉय कपूर) से शुरू होती है, जो कि अपनी बहन व जीजा जुनेद के साथ रहता है. एक दिन वह एक आतंकवादी (अजय देवगन) को उसकी धमकी से डरकर खाना खिला देता है, इस बात से वह आतंकवादी सुधर कर दिलदार के नाम से लंदन में बस जाता है. दूसरी तरफ नूर की मुलाकात बेगम हजरत की बेटी फिरदौस (कटरीना कैफ) से होती है. फिरदौस को नूर के जूते पसंद आ जाते हैं. इसी बात से प्रभावित होकर बेगम हजरत नूर को अपने अस्तबल में घोड़ों की देखभाल करने का काम दे देती हैं और उसे धमकी देती हैं कि वह काम पर ध्यान दे, प्यार के चक्कर में ना पडे़.
बाद में बेगम हजरत को फिरदौस और नूर के बीच बढ़ती नजदीकियां पसंद न आने पर वह फिरदौस को लंदन भेज देती हैं. इधर नूर की गरीबी का मजाक उड़ाते हुए उससे कहती हैं कि यदि फिरदौस को पाना है, तो उसके काबिल बनो. लंदन में फिरदौस की मुलाकात पाकिस्तान सरकार के मंत्री मुफ्ती (अक्षय ओबेराय) के बेटे बिलाल (राहुल भट्ट) से होती है और दोनो के बीच प्यार हो जाता है. इधर नूर बड़ा होकर एक बेहतरीन चित्रकार बन चुका है. बेगम हजरत नूर से मिलने आती है और उसकी चित्रकारी देखकर प्रभावित हो जाती है. तभी एक अंजान इंसान की तरफ से नूर के पास संदेश आता है कि उसे वजीफा दिया गया है और वह दिल्ली जाकर चित्रकारी के क्षेत्र में कुछ कारनामा करे.
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