फिल्म इंडस्ट्री को उद्योग का दर्जा मिलने के साथसाथ बौलीवुड पर राजनीतिक शिकंजा कसना शुरू हुआ और बौलीवुड जाति, धर्म, ऊंच नीच व राजनीतिक सोच के अनुसार कई खेमों में बंटता चला गया.

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के चेयरमैन, गीतकार व फिल्म पटकथा लेखक प्रसून जोशी तथा कुछ निर्माताओं की पहल पर कई फिल्मी कलाकारों, निर्माता व निर्देशकों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में मुलाकात कर फिल्म इंडस्ट्री के विकास पर चर्चा की थी. उस के बाद अपने मुंबई आगमन पर भी कुछ फिल्मी हस्तियों संग प्रधानमंत्री ने मुलाकात कर काफी तसवीरें खिंचवाई थीं. लेकिन हकीकत में फिल्म इंडस्ट्री के हालात सुधरने के बजाय बदतर ही हुए हैं. फिल्म इंडस्ट्री के बदतर हालात के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम कुसूरवार नहीं हैं.

कई वर्षों से फिल्म उद्योग, फिर चाहे वह बौलीवुड (मुंबई) हो या टौलीवुड (दक्षिण भारत), ने सुचारुरूप से फिल्म निर्माण व उन के वितरण आदि को जारी रखने के लिए अपनी एक स्वतंत्र प्रणाली व तंत्र को विकसित कर रखा था. इसी मकसद से 1937 में इंडियन मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन (इम्पा) का गठन किया गया था.

यह एसोसिएशन फिल्म ‘आलम आरा’ के निर्मातानिर्देशक खान बहादुर आर्देशीर एम ईरानी के दिमाग की उपज थी, जिस में उन्हें चंदूलाल जे शाह, एम ए फजल भौय, जे बी एच वाडिया, चिमनलाल बी देसाई, रुस्तम सी एन बरूचा और शंकर लाल जे भट्ट का साथ मिला था. 2006 से इम्पा अध्यक्ष के तौर पर टी पी अग्रवाल काबिज हैं. अनिल नागरथ इस के सचिव हैं. इम्पा का अपना इम्पा वैलफेयर ट्रस्ट भी है. इस से इम्पा के सदस्य निर्माता  को बीमारी के समय सहायता दी जाती है. इम्पा का मानना रहा है कि अन्य सभी  32 एसोसिएशनें उस की छत के नीचे हैं.

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