भारत का बुंदेलखंड इलाका हर साल सूखे जैसी कुदरती मार का बुरी तरह से शिकार होता है. इस बार यह कहर और ज्यादा है. इसी कारण यहां पर किसानों की खुदकुशी भी खूब हो रही है. पिछले 2 सालों से लगातार सूखे के कारण यहां के तकरीबन 85 फीसदी खेत खाली रह गए. जिन खेतों में बोआई हुई भी उन्हें वहां के मवेशी चर गए. वहां के सभी खेत व पगडंडियां सूख चुकी हैं. चारा न मिल पाने के कारण बहुत सारे पशु दम तोड़ रहे हैं. बदहाली का आलम यह है कि दुधारू पशुओं को भी किसान अब औनेपौने दामों में बेच रहे हैं या फिर लावारिस छोड़ रहे हैं, जिस से अंत में पशुओं को दर्दनाक मौत ही मिल रही है.

इन हालात को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने हुक्म दिया है कि कैंप लगा कर किसानों को अनाज और पशुओं को चारा बांटा जाए. मगर सच यह है कि जिन जगहों पर जितना चारा पहुंचना चाहिए था, पहुंच ही नहीं पाया या बांदा सहित दूसरे हिस्सों में टेंडर द्वारा भूसा खरीदने के कारण समय पर भूसा खरीद नहीं हो सकी. वैसे विभागीय अफसर कागजी कार्यवाही में पूरा काम कर चुके हैं और किसी भी चूक से साफ इनकार कर रहे हैं. कुल मिला कर मीडिया के द्वारा आई रिपोर्ट के अनुसार पशुओं का चारा अफसर हजम कर रहे हैं, जिस के कारण बड़ी संख्या में पशु मर रहे हैं.

किस हाल में जानवर और किसान

इस बार भारी सूखे के चलते तकरीबन 85 फीसदी खेत खाली रह गए. जिन खेतों में बोआई की गई, उन्हें पशुओं ने चर डाला. अब जब कि हर जगह चारे की कमी पड़ गई है, तो पशुओं को लावारिस छोड़ा जा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक पूरे बुंदेलखंड में 1 करोड़ पशुओं पर मुसीबत आ गई है. हालत यह है कि किसान मोटा मुनाफा देने वाले दुधारू पशुओं को भी औनेपौने दामों पर बेच रहे हैं. बहुत सारे किसानों की डेरियों में ताले लग चुके हैं.

संकट से निबटने को सरकारी मदद

उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव सुरेश चंद्रा ने वित्तीय साल 2015-16 में सूखे की चपेट में आए बुंदेलखंड के सभी 7 जिलों के लिए सरकारी खजाने से 7 करोड़ रुपए (हर जिले को 1 करोड़ रुपए) जारी किए. यह रकम पशुओं के लिए चारा और दाना खरीदने को दी गई थी, जिस से पशु भूख और प्यास से न मर सकें. सख्त निर्देश है कि इस रकम का इस्तेमाल दूसरे किसी काम में नहीं होना चाहिए. राहत राशि की पावती और लाभार्थी के पहचान प्रमाण के रूप में रसीद पर स्थानीय लेखपाल व ग्राम प्रधान के हस्ताक्षर करा कर इसे रिकार्ड में सुरक्षित किया जाए. साथ ही बांटी गई रकम ग्राम सभा के नोटिस बोर्ड पर दर्ज की जाए. यह भी निर्देश है कि आपदा समिति लगातार इस पर नजर रखे.

कहां गई सरकारी मदद

भूखप्यास के कारण पशु दम न तोड़ सकें, इस के लिए बुंदेलखंड के 7 जिलों में सरकारी प्रयासों से क्या चल रहा है? इस का मध्य फरवरी तक हमीरपुर जिले में हुए कामों से अंदाजा लगा सकते हैं. इस जिले में कुल 25 केंद्र बनाए गए हैं, इन में से आधा दर्जन केंद्रों में तो भूसा ही नहीं भेजा गया था. जिन केंद्रों पर भेजा गया, वहां पर मौरंग और मिट्टी के सहारे वजन बढ़ाए जाने की शिकायतें लगातार आती रहीं. यही नहीं जिले के ज्यादातर केंद्रों पर तोल से कम भूसा देने और खरीद की रसीद अधिक दिखाए जाने के आरोप लगातार लगते रहे हैं. ताज्जुब की बात तो यह है कि जिले के इंगोहटा पौथिया केंद्र पर भूसा पहुंचा ही नहीं. समेरपुर ब्लाक के मुंडेरा केंद्र पर मंडी समिति में 200 जानवर थे. नियमानुसार 12 क्विंटल भूसा पहुंचना था, मगर मात्र 2 क्विंटल ही पहुंच पाया था. इस की शिकायत ग्राम प्रधान संगीता ने जिलाधिकारी से की थी. सिसोलर ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान विजय शंकर ने आरोप लगाया कि उन के केंद्र पर भूसा ले कर गई गाड़ी के चालक ने 40 क्विंटल की रसीद दिखाई जबकि भूसा 25 से 30 क्विंटल ही था. इसी प्रकार इचौली केंद्र में 41 क्विंटल 5 किलोग्राम की रसीद दिखाई थी, लेकिन भूसा 30 क्विंटल ही निकला. इस तरह हुई धांधलियों की एक लंबी सूची है. यह तो उदाहरण भर है, जबकि हालात इस से भी ज्यादा खराब हैं. बुंदेलखंड राहत पैकेज के नाम पर केंद्र सरकार ने भी 3606 करोड़ रुपए दिए हैं. वहीं दूसरी ओर इस बार उत्तर प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड राहत के लिए लुभावना बजट बनाया है. बुंदेलखंड व विंध्य क्षेत्र में सतह आधारित ग्रामीण पेयजल परियोजनाओं के लिए बजट में 500 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं. मगर ऐसी ही लूटखसोट बनी रही तो इन रकमों के सही इस्तेमाल से पशुओं व किसानों की दशा नहीं सुधर सकती.

क्या बोले जिम्मेदार

इस संबंध में हमीरपुर के मुख्य पशुचिकित्साधिकारी जेएन पांडेय इन बातों से पल्ला झाड़ते हुए कहते हैं कि सेंटरों पर भूसा पहुंचा दिया गया है. जहां पर भूसा कम होता है, वहीं पर भेजा जा रहा है. इसी तरह झांसी मंडल के अतिरिक्त पशुपालन निदेशक डा. प्रकाश चंद वर्मा ने भूसा धांधली को सिरे से खारिज करते हुए कहा, ‘दरअसल, यह भूसा केवल सीमांत और खेतिहर किसानों के जानवरों के लिए है. बड़े किसानों को इस का लाभ नहीं मिल पा रहा है, जिस की वजह से हल्ला मचाया जा रहा है.’

कैसे होगा सुधार

केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से जो योजनाएं बनाई गई हैं, केवल वही सही तरीके से लागू हो जाएं तो बुंदेलखंड की सूरत बदल सकती है. असल समस्या तो यही है कि योजनाएं तो बन रही हैं, मगर सही तरीके से लागू नहीं हो पा रही हैं. पशुओं के चारे और दवाओं में हेराफेरी करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों से सख्ती से पेश आ कर कठोर दंड देना चाहिए जिस से फिर ऐसी धांधली सुनने को न मिले. बुंदेलखंड में सूखा जरूर पड़ता है, मगर एक अनुमान के मुताबिक वहां 600 मिलीमीटर सालाना बरसात होती है. बरसात के इस पानी को अच्छी तरह से इकट्ठा करने की कोशिश होनी चाहिए, जिस से जल स्तर बेहतर बन सके. जल स्तर बेहतर होने पर सिंचाई के अभाव में फसलें सूखेंगी नहीं. और जब फसलें नहीं सूखेंगी तो हर तरह की तबाही खुदबखुद थम जाएगी.

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