23 जून का दिन ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन के इतिहास में बड़ा दिन होगा. 2008 की मंदी के बाद वित्तीय जगत में ये दूसरी बड़ी घटना है, जिसकी सभी और चर्चा हो रही है. इस दिन ब्रिटेन में यूरोपियन यूनियन से अलग होने या उसमें रहने पर जनमत होगा. इसे ही ‘ब्रेक्ज़िट’ कहा जा रहा है. अंग्रेजी में इसका मतलब है ब्रिटेन एक्जिट (बाहर होना).

ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने का असर इन दोनों पर तो पड़ेगा ही, बल्कि पूरे विश्व पर भी इसका असर होगा. भारत के वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने हाल ही में कहा था कि अगर ब्रिटेन में यूरोपियन यूनियन से बाहर होने के पक्ष में जनमत होता है, तो इसके होने वाले असर की समीक्षा भारत कर रहा है.

ब्रिटेन के जीडीपी पर 7 फीसदी तक असर!

यूरोपियन यूनियन से बाहर होने पर ब्रिटेन के यूनियन के दूसरे देशों से रिश्ते भी बिखरेंगे. ज्यादा प्रतिबंध से ब्रिटेन को दिक्कत हो सकती है. इससे ब्रिटेन के जीडीपी पर 2 से 7 फीसदी तक का असर आ सकता है.

अगर ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन के साथ रहता है और सदस्यों के साथ लचीले करार कर लेता है, तो उसकी जीडीपी में 2030 तक 1.6 फीसदी की बढ़ोतरी आ सकती है. यूरोपियन यूनियन ब्रिटेन का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट का बाजार है. ब्रिटेन का 40 से 45 फीसदी एक्सपोर्ट यूरोपियन यूनियन को होता है. ब्रिटेन का लक्ष्य है कि उसकी यूनियन के आंतरिक बाजार तक पहुंच हो. अगर ब्रिटेन बाहर होता है तो ये उसके लिए मुश्किल होगा. दूसरी तरफ ब्रिटेन के जाने से यूरोपियन यूनियन को भी झटका लगेगा. ब्रिटेन यूनियन के सबसे मजबूत सदस्यों में है. उसके जाने से यूरोपियन यूनियन की स्थिति राजनैतिक और आर्थिक तौर पर कमजोर होगी.

ब्रिटेन के बाहर होने से वहां के रियल एस्टेट बाजार पर भी असर होगा. साथ ही महंगाई बढ़ेगी, जिससे पाउंड की स्थिति चिंताजनक हो सकती है. यूरोपियन यूनियन से बाहर होने पर अप्रवास संबधी नियम कड़े होंगे. जिससे कुशल लोग कम आएंगे. यूरोपियन यूनियन के 21 लाख लोग ब्रिटेन में काम करते हैं. ब्रिटेन के बाहर होने से डॉलर पर अच्छा असर होगा. इससे डॉलर मजबूत होगा.

क्यों बाहर होना चाहता है ब्रिटेन

– भारत, चीन और अमेरिका के साथ बेहतर ट्रेड सौदे करने के लिए

– इससे पैसा बचेगा जिसे साइंटिफिक रिसर्च और नई इंडस्ट्रीज बनाने में खर्च किया जा सकता है.

– छोड़ने से रोजगार, कानून, सुरक्षा और हेल्थ पर सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा.

पूरी दुनिया पर पड़ सकता है असर

एंबिट कैपिटल के एंड्रयू हॉलेंड के मुताबिक ब्रिटेन के बाहर होने से दूसरे देश भी यूरोपियन यूनियन से बाहर होने का मन बना सकते हैं. इससे यूरोप में मंदी भी आ सकती है. अगर यूरोप में मंदी आती है तो इसका असर जापान पर भी पड़ेगा, जिससे अमेरिका का विकास भी धीमा हो जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो इससे पूरे विश्व में विदेशी निवेशकों की बिकवाली शुरू हो जाएगी. जिसका असर लगभग सभी देशों पर पड़ेगा.

ब्रिटेन में जमी भारतीय कंपनियों पर होगा असर

ब्रिटेन में भारतीय कंपनियां विदेशी निवेश का तीसरा बड़ा स्रोत हैं. फिक्की के मुताबिक अगर ब्रिटेन बाहर होता है, तो इससे भरतीय कार्पोरेट्स में अनिश्चितता बढ़ेगी.

लंदन की एक लॉ फर्म के पार्टनर पीटर किंग के मुताबिक इससे यूरोप में आर्थिक मंदी आ सकती है. जिस तरह ब्रिटेन का बाजार भारत के लिए खुला है उससे भारत पर भी असर होगा. ब्रिटेन बाहर होता है तो कई भारतीय कंपनियों के लिए जोखिम बढ़ेगा, जिनके वहां कारोबार हैं. इससे भारत में भी नौकरियां जा सकती हैं.

ग्रांट थॉरटन की रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में करीब 800 भारतीय कंपनियां हैं. जिसमें 1 लाख 10 हजार लोग काम करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सबसे तेज विकास करने वाली भारतीय कंपनियों का वहां टर्नओवर 26 अरब पाउंड है. इन कंपनियों को नई योजना बनानी पड़ सकती है. यूरोप में घुसने के लिए इन्हें लंदन के मुकाबले दूसरा यूरोपियन शहर ढूंढना पड़ सकता है.

टाटा मोटर्स की सब्सिडियरी कंपनी जगुआर और लैंड रोवर ब्रिटेन में ही है. कंपनी के मुनाफे में 90 फीसदी का योगदान इसी कंपनी से आता है. इसके लिए कंपनी को नई रणनीति पर काम करना होगा.

यूके में भारती एयरटेल, एचसीएल टेक, एमक्युर फार्मा, अपोलो टायर, वोकहार्ट जैसी बड़ी भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं. इन सभी पर असर संभव है. भारत का एक्सपोर्ट पहले ही गिर रहा है. ऐसे में ब्रिटेन से व्यापार में थोड़ा भी उतार-चढ़ाव आता है तो एक्सपोर्ट में और गिरावट आ सकती है.

शेयर बाजार और रुपए में उतार-चढ़ाव संभव

शेयर बाजार की नजर भी लगातार इसी घटना पर टिकी है. इसके चलते पिछले कुछ दिनों से बाजार में कमजोरी भी देखी जा रही है. बाजार के जानकारों के मुताबिक शेयर बाजार पर छोटी अवधि में असर होगा. लंबी अवधि में उन कंपनियों पर ज्यादा असर होगा, जिनका ब्रिटेन में कारोबार है. इसके चलते रुपए में भी उतार-चढ़ाव आ सकता है. गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक इससे पाउंड में 11 फीसदी की कमजोरी आ सकती हैं. जिससे पूरे विश्व की मुद्राओं में उतार-चढ़ाव होगा. इसका असर रुपए पर भी पड़ेगा. पिछले साल जब चीन ने मुद्रा का अवमूल्यन किया था, तब रुपए पर काफी दबाव पड़ा था.

बाजार के जानकार एंड्रयू हॉलेंड के मुताबिक ग्लोबल मार्केट में बिकवाली से भारत में भी विदेशी निवेशकों की बिकवाली हो सकती है. उनके मुताबिक इसका भारत की आर्थिक स्थिति पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. हम विश्व को ज्यादा एक्सपोर्ट नहीं करते हैं और ये अच्छी खबर है. लेकिन आप विश्व के जोखिम को नकार नहीं सकते.

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन भी कह चुके हैं कि ब्रेक्ज़िट से उतार-चढ़ाव के जोखिम से नहीं बचा जा सकता, हालांकि भारत के पास अच्छी नीतियों और विदेशी मुद्रा भंडार का कवच है.

‘ब्रेक्ज़िट’ की 10 खास बातें

 1. 23 जून को ब्रिटेन की जनता को जनमत संग्रह के ज़रिये यह फैसला करना है कि वे 28 देशों के समूह यूरोपियन यूनियन (ईयू) में बने रहना चाहते हैं या नहीं.

2. 'ब्रेक्ज़िट' शब्द भी दो शब्दों 'ब्रिटेन' और 'एक्ज़िट' से मिलकर बनाया गया है, और इसे लेकर ब्रिटेन में भी दो गुट बन गए हैं, जिनमें से एक का मत 'रीमेन' (Remain या ईयू में बने रहें) है, और दूसरे का मत है 'लीव' (Leave या ईयू को छोड़ दें).

3. यूरोपियन यूनियन से नाता तोड़ लेने के पक्षधर लोगों की दलील है कि ब्रिटेन की पहचान, आज़ादी और संस्कृति को बनाए और बचाए रखने के लिए ऐसा करना ज़रूरी हो गया है. ये लोग ब्रिटेन में भारी संख्या में आने वाले प्रवासियों पर भी सवाल उठा रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि यूरोपियन यूनियन ब्रिटेन के करदाताओं के अरबों पाउंड सोख लेता है, और ब्रिटेन पर अपने 'अलोकतांत्रिक' कानून थोपता है.

4. 'रीमेन' खेमे के लोगों की दलील है कि यूरोपियन यूनियन में बने रहना ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए ज़्यादा अच्छा रहेगा, और इस फायदे के सामने प्रवासियों का मुद्दा बेहद छोटा है. अधिकतर अर्थशास्त्री इस दलील से सहमत हैं.

5. दरअसल, यूरोप ही ब्रिटेन का सबसे अहम बाज़ार है, और विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत भी. इन्हीं बातों ने लंदन को दुनिया का एक बड़ा वित्तीय केंद्र भी बनाया है. ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलना उसके इस स्टेटस को खतरे में डाल सकता है.

6. वैसे भी, सिर्फ जनमत संग्रह की बात से ही ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर काफी उल्टा असर पड़ चुका है, और ब्रिटेन की मुद्रा पाउंड स्टर्लिंग इस समय बीते सात साल के अपने सबसे निचले स्तर पर है.

7. जनमत संग्रह को लेकर ब्रिटेन की प्रमुख पार्टियों में भी दरारें पड़ गई हैं. सत्तासीन कंज़रवेटिव पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ईयू में बने रहने के पक्ष में हैं, जबकि उन्हीं की पार्टी से जुड़े लंदन के मेयर बोरिस जॉनसन ईयू से बाहर निकल जाने के पक्षधर हैं. देश में जारी इसी बहस के दौरान 16 जून को विपक्षी लेबर पार्टी की 41-वर्षीय महिला सांसद जो कॉक्स की उत्तरी इंग्लैंड स्थित उन्हीं के संसदीय क्षेत्र में गोली मारकर और चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई थी. कॉक्स ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने का समर्थन कर रही थीं.

8. यूरोपियन यूनियन 28 देशों का महासंघ है, जिसकी संसद में यूरोप के सभी देश अपने चुने हुए सदस्यों को भेजते हैं. इसकी कार्यपालिका यूरोपियन कमीशन का एक प्रेज़िडेंट होता है, और एक कैबिनेट भी, जिसमें सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं.

9. ब्रिटेन वर्ष 1973 से यूरोपियन यूनियन का हिस्सा है, लेकिन इसके बावजूद वह शेष यूरोप से हमेशा आशंकित ही रहा है. जहां बाकी यूरोपीय देशों ने शेनजेन एग्रीमेंट के बाद अपनी सीमाओं से आना-जाना काफी आसान कर दिया, वहीं ब्रिटेन इसके लिए तैयार नहीं हुआ.

10. इसके अलावा बाकी यूरोपीय देशों ने एक ही मुद्रा 'यूरो' को अपना लिया, जबकि ब्रिटेन इससे भी बाहर रहा. वह यूरो के लिए अपनी मुद्रा पाउंड स्टर्लिंग को छोड़ने के लिए कभी राज़ी नहीं हुआ.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...