संपादकीय मोदी सरकार को एक और झटका लगा जब ऐन चुनावों से पहले कश्मीर में आतंकवादियों ने जम्मू से श्रीनगर जा रहे सीआरपीएफ की बसों के काफिले पर आत्मघाती हमला कर के 40 जवानों को शहीद कर दिया. एक मारुति ईको वैन में 70 किलोग्राम विस्फोटक पदार्थ भरा गया और यह 78 वाहनों के बीच आ गई और फिर उस को उड़ा दिया गया जिस से 2 बसों में सवार सैनिकों में से 40 की तुरंत मुत्यु हो गई.
पुलवामा के आदिल अहमद डार ने हमले को अंजाम दिया. बाद में सोशल मीडिया पर उस का मैसेज वायरल हुआ जो घटना से कुछ दिनों पहले रिकौर्ड किया गया था. पाकिस्तान से संचालित किए जा रहे जैश ए मोहम्मद ने भी दावा किया कि उस ने हमला करवाया.
दिल दहलाने वाले इस हत्याकांड ने फिर जगजाहिर कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी और महबूबा मुफ्ती की साझी सरकार का आतंकवादियों पर कोई असर नहीं पड़ा है और वे अपना अलगाववाद किसी भी सूरत में छोड़ने को तैयार नहीं.
इस तरह की आतंकवादी घटना का हो जाना देश की गुप्तचर संस्थाओं के निकम्मेपन की पोल खोलता है क्योंकि यह कांड बिना पूर्व योजना के नहीं किया जा सकता है. इस के लिए लंबी प्लानिंग चाहिए होती है और इतने सारे वाहन किस समय कहां होंगे, यह पता होना जरूरी है. हमारी गुप्तचर संस्थाएं यदि यह सूंघ नहीं पाईं तो बेहद अफसोस की बात है.
कश्मीर में ही नहीं, देश के कई हिस्सों में आतंकवादियों के हौसले ऐसी करतूतों के सफल हो जाने से बुलंद हो जाते हैं. पंजाब में छिटपुट सुरसुराहाट शुरू हो गई है. छत्तीसगढ़ में माओवादी चुप नहीं हैं. उत्तरपूर्व में प्रस्तावित नागरिक कानून के कारण बेहद नाराजगी है. कश्मीर में हमारी सुरक्षाव्यवस्था में साफ दिखता क्रैक इन सब के हौसले मजबूत करता है.
कहने को तो केंद्र में हमारे पास एक मजबूत सरकार है पर जब सारे फैसलों के लिए केवल एक ही शख्स अधिकृत हो तो परेशानियां हो सकती हैं. भाजपा अगर महबूबा मुफ्ती के मारफत जम्मूकश्मीर पर ले दे कर फैसले करने के मूड में होती तो शायद शांति का कुछ माहौल बनता पर दोनों कट्टरवादियों ने अपनेअपने स्टैंड पर अड़े रह कर अलगाववादी आतंकवादियों को भरपूर मसाला दे दिया. आम कश्मीरी को यह भरोसा नहीं हो पा रहा है कि उस का विकास तो भारत के साथ ही होना है.
धर्म के नाम पर उसे अलग करने की छूट मिली हुई है क्योंकि दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार खुद ही हर समय धर्म का आलाप करती रहती है. जब नागरिकता कानून में धर्म को आधार बनाया जा सकता है तो कश्मीरियों को कैसे समझाएंगे कि अल्पसंख्यक हो कर भी वे भारत में कहीं ज्यादा सुखी रहेंगे. कुछ बिगड़ैल सिरफिरे तो अति कराएंगे ही, जैसे मैदानी इलाकों में गौरक्षकों से कराई जाती है.