रेटिंग : दो स्टार

‘‘लिव इन रिलेशनशिप’’ की आड़ में विवादास्पद ‘‘लव जेहाद’’ के मुद्दे पर कटाक्ष करने वाली रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘लुका छुपी’’ पूर्णतः निराश करने वाली फिल्म है. सामाजिक स्वीकृत रिश्तों व धार्मिक कट्टरता पर धार्मिक अनुष्ठानों पर हास्य व्यंगात्मक कटाक्ष करने वाली यह फिल्म कमजोर पटकथा व निर्देशन के चलते पूरी तरह से बिखरी व अति सतही फिल्म बनकर रह गयी है. हास्य के नाम पर फिल्म में अस्वाभाविक व अविश्वसनीय दृश्यों की भरमार है.

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फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के छोटे शहर मथुरा से शुरू होती है. जहां विनोद उर्फ गुड्डू शुक्ला (कार्तिक आर्यन) अपने पिता व दो बड़े भाईयों के साथ रहता है. गुड्डू के पिता शुक्लाजी (अतुल श्रीवास्तव) की साड़ियों की दुकान है, जहां गुड्डू के दोनों बड़े भाई बैठते हैं. जबकि गुड्डू स्वयं एक स्थानीय केबल चैनल का टीवी रिपोर्टर है. उसका दोस्त अब्बास (अपारशक्ति खुराना) इसी चैनल में कैमरामैन हैं. जबकि मथुरा शहर के पूर्व सांसद और संस्कृति रक्षा मंच के नेता विष्णु प्रसाद त्रिवेदी (विनय पाठक) ने गुंडो की फौज पाल रखी है. विष्णु प्रसाद त्रिवेदी शहर में लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ मुहीम चलाते हुए अपने गुंडो के मार्फत प्रेमी जोड़ा को पकड़कर उनके मुंह पर कालिख पोतकर शहर में घुमवाते हैं. त्रिवेदी की संस्था ‘‘संस्कृति रक्षा मंच’’तो अभिनेता नाजिम खान के ‘लिव इन रिलेशनशिप में रहने का विरोध कर रहे हैं. त्रिवेदी की इकलौती बेटी रश्मी त्रिवेदी (कृति सैनन) दिल्ली से मास कम्यूनीकेशन की पढ़ाई कर मथुरा आती है, तो त्रिवेदी अपने प्रयासो से पांडे के इसी केबल चैनल में गुड्डू के साथ रिपोर्टर बनवा देते हैं. धीरे धीरे दोनों में प्यार हो जाता है.

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गुड्डू का मानना है कि यदि आप प्यार में हैं, तो प्यार को मजबूती प्रदान करने के लिए शादी क्यों न कर ली जाए? जबकि रश्मी का मानना है कि भले प्यार हो, पर शादी से पहले लिव इन में रहकर प्रेमी को समझना चाहिए. मगर रश्मी के पिता ने तो लिव इन के खिलाफ कहर बरपा रखा है. इसलिए अब्बास की सलाह पर रश्मी और गुड्डू चैनल के लिए एक स्टोरी करने के बहाने ग्वालियर जाते हैं, जहां वह एक किराए के मकान में लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं, मगर मोहल्ले के लोगों को बताते हैं कि वह दोनों शादीशुदा हैं. पर गुड्डू के भाई का साला बाबूलाल (पंकज त्रिपाठी) ग्वालियार आता है और वह गुड्डू के बारे में जानकर मथुरा से गुड्डू के पूरे परिवार को ले आता है. फिर वह सपरिवार मथुरा पहुंचते हैं.

मथुरा में गुड्डू के माता पिता रश्मी के पिता त्रिवेदी से मिलते हैं और अंत में त्रिवेदी जी अपने सम्मान के लिए एक छोटा सा समारोह कर चैनल के माध्यम से सूचना देते हैं कि उनकी बेटी की शादी गुड्डू से हो गयी. इधर रश्मी उदास रहती है कि गुड्डू के माता पिता उसे इज्जत दे रहे हैं और वह उन्हें धोखा दे रही है. इसलिए अब वह व गुड्डू दोनों शादी करना चाहते हैं. अब्बास की सलाह पर जब भी परिवार से छिपकर गुड्डू व रश्मी शादी करने मंदिर पहुंचते हैं, मामला बिगड़ जाता है. अंततः वह दोनों अग्रवाल सामूहिक विवाह में शादी करने पहुंचते हैं, जहां त्रिवेदी के पहुंचने से सच सामने आ जाता है. पर वहीं पर दोनों की शादी हो जाती है. पर उससे पहले गुड्डू, विष्णु प्रसाद त्रिवेदी को लंबा चौड़ा भाषण सुनाता है जो कि वर्तमान सरकार को फायदा पहुंचाने वाला राजनीतिक बयानबाजी के अलावा कुछ नहीं.

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कैमरामैन से निर्देशक बने लक्ष्मण उतेकर ने अपनी फिल्म के लिए एक बेहतरीन विषय उठाया, मगर इसे वह सिनेमा के परदे पर सही ढंग से उतारने में विफल रहे. यदि फिल्म की पटकथा पर ध्यान दिया गया होता, तो यह एक तेज तर्रार हास्यपूर्ण बेहतर फिल्म बन सकती थी. फिल्म में गुड्डू व रश्मी के बीच कुछ सुंदर सेंसुअल दृश्य भी हैं. पर कथानक व पटकथा लेखन के स्तर पर लेखक व निर्देशक इस कदर भटक गए कि मूल विषय पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय पड़ोसियों की चुहुलबाजी, प्रपंच आदि भर दिया, जिसके चलते एक गंभीर विषय महज लोगों के शोरगुल व ठहाकों के बीच गुम होकर रह गया. पंकज त्रिपाठी का बाबूलाल का किरदार सही रखा गया, मगर महज हास्य के लिए बाबूलाल को कुछ ऐसे संवाद दे दिए गए, जिससे फिल्म बहुत ही सस्ती व घटिया स्तर की बन कर रह गयी.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो बाबूलाल के किरदार में पंकज त्रिपाठी ने अपनी तरफ से  सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया, मगर लेखक की तरफ से उन्हें दिए गए संवादों ने सारा बेड़ा गर्क कर दिया. अब्बास के किरदार में अपारशक्ति खुराना जरुर अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं. कार्तिक आर्यन व कृति सैनन कुछ दृश्यों में जरुर अच्छे लगते हैं, मगर पूरी फिल्म के परिप्रेक्ष्य में निराशा होती है.

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दो घंटे छह मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘लुका छुपी’’ का निर्माण दिनेश वीजन ने ‘मैडौक फिल्मस’’ के बैनर तले किया है. फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर, लेखक रोहण शंकर, संगीतकार तनिष्क बागची, व्हाइट नौयजव अभिजीत वघाणी, कैमरामैन मिलिंद जोग तथा कलकार हैं- कार्तिक आर्यन, कृति सैनन, अपारशक्ति खुराना, पंकज त्रिपाठी, अतुल श्रीवास्तव, विनय पाठक, अरूण सिंह व अन्य.

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