रात का सन्नाटा पसरा हुआ था. घर के सभी लोग गहरी नींद सोए थे, लेकिन पूर्णिमा की आंखों में नींद का नामोनिशान तक नहीं था. बगल में लेटा उस का पति इंद्र निश्चिंत हो कर सो रहा था, जबकि पूर्णिमा अंदर ही अंदर घुट रही थी. पूर्णिमा को इंद्र के व्यवहार में आए परिवर्तन ने बेचैन कर रखा था.
पूर्णिमा की शादी को 5 साल गुजर गए थे, लेकिन वह मां नहीं बन पाई थीं. इलाज जरूर चल रहा था, लेकिन परिणाम की हालफिलहाल कोई आशा नहीं थी. रात के तीसरे पहर इंद्र की नींद खुली. बिस्तर टटोला तो उसे पूर्णिमा नजर नहीं आई. उस ने उठ कर बल्ब का स्विच औन किया. देखा, पूर्णिमा बिस्तर के एक कोने पर घुटनों में मुंह छिपाए बैठी थी. उसे इस हालत में देख कर इंद्र ने पूछा, ‘‘पूर्णिमा, तुम अभी तक सोई नहीं?’’
‘‘मुझे नींद नहीं आ रही,’’ पूर्णिमा का स्वर बुझा हुआ था.
‘‘क्यों?’’ इंद्र ने पूछा.
‘‘बस, यूं ही.’’ पूर्णिमा ने टालने वाले अंदाज में जवाब दिया.
‘‘पूर्णिमा, मैं जानता हूं कि तुम्हें नींद क्यों नहीं आ रही है. मैं तुम्हारा दुख समझ सकता हूं. थोड़ा इंतजार करो, सब ठीक हो जाएगा.’’ इंद्र का इतना कहना भर था कि पूर्णिमा उस के सीने से लग कर सुबकने लगी.
‘‘इंद्र, तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?’’ पूर्णिमा ने अनायास पूछा. पत्नी के इस सवाल पर इंद्र गंभीर हो गया. वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘कैसी पागलों वाली बातें कर रही हो?’’
बीते दिन की ही बात थी. पूर्णिमा हमेशा की तरह इंद्र की अलमारी के कपड़ों को हैंगर में लगा रही थी, तभी गलती से एक शर्ट नीचे गिर गई. शर्ट की जेब से एक फोटो निकल कर जमीन पर जा गिरा. पूर्णिमा ने सहज भाव से फोटो को उठाया, किसी लड़की का फोटो था. लड़की देखने में आकर्षक लग रही थी. उस की उम्र 25 के आसपास रही होगी. वह इंद्र के पास जा पहुंची, वह अखबार पढ़ रहा था.
जैसे ही पूर्णिमा ने फोटो दिखाई, वह अखबार छोड़ कर उस के हाथ से फोटो लेते हुए बोला, ‘‘यह फोटो तुम्हें कहां से मिली? ‘‘तुम औरतों की यही खामी है, टटोलना नहीं छोड़ सकतीं.’’ कहते हुए इंद्र ने फोटो अपनी जेब में रख ली.
‘‘तुम्हारे कपड़े ठीक कर रही थी. मुझे क्यापता था कि तुम जेब में इतने महत्त्वपूर्ण दस्तावेज रखते हो.’’ पूर्णिमा ने चुहलबाजी की.
इंद्र मुसकरा कर बोला, ‘‘मेरे ही विभाग की है.’’
‘‘तो जेब में क्या कर रही थी?’’
‘‘फिर वही सवाल. एक फार्म पर लगानी थी, गलती से मेरे साथ चली आई.’’ वह बोला.
पूर्णिमा इधर कुछ महीनों से महसूस कर रही थी कि भले ही इंद्र उस के साथ बिस्तर पर सोता है, लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं थी. पतिपत्नी का संबंध महज औपचारिकता बन कर रह गया था. एक दिन उस से न रहा गया तो पूछ बैठी, ‘‘इंद्र, तुम बदल गए हो.’’
‘‘यह तुम कैसे कह सकती हो?’’ वह सकपकाते हुए बोला.
‘‘तुम्हारे व्यवहार से महसूस कर रही हूं.’’ पूर्णिमा ने कहा.
‘‘ऐसी बात नहीं है. औफिस में काम का बोझ बढ़ गया है.’’ उस ने सफाई दी तो पूर्णिमा ने मामले को ज्यादा तूल नहीं दिया.
दिन के 10 बज रहे होंगे. इंद्र का औफिस से फोन आया, ‘‘पूर्णिमा, आज मेरा मोबाइल चार्जिंग पर ही लगा रह गया. क्या तुम उसे मुझ तक पहुंचा सकती हो?’’
‘‘जरूर, तुम औफिस से बाहर आ कर ले लेना.’’ कह कर पूर्णिमा ने जैसे ही फोन चार्जर से निकाला एक लड़की का फोन आ गया, ‘‘इंद्र सर, आज मैं औफिस नहीं आ सकूंगी.’’
पूर्णिमा ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली, ‘‘आप कुछ बोल नहीं रहे. क्या नाराज हो मुझ से. माफी मांगती हूं, कल मेरा मूड नहीं था. घर पर कुछ रिश्तेदार आए थे, मम्मी ने जल्दी आने के लिए कहा, इसलिए आप के साथ कौफी पीने नहीं जा सकी.’’
पूर्णिमा को समझते देर नहीं लगी कि इंद्र शाम को देर से क्यों आता है. सोच कर पूर्णिमा का दिल बैठने लगा. वह खुद पर नियंत्रण करते हुए बोली, ‘‘मैं उन की बीवी बोल रही हूं. आज वह अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गए हैं.’’
पूर्णिमा का इतना कहना भर था कि उस ने फोन काट दिया.
पूर्णिमा का मन आशंकाओं से भर गया. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इंद्र से कैसे पेश आए. वह सोचने लगी कि इस लड़की से इंद्र का क्या संबंध है. ऐसे ही विचारों में डूबी पूर्णिमा पति को मोबाइल देने के लिए निकल गई. इंद्र के औफिस पहुंच कर उस ने फोन कर दिया, इंद्र औफिस के बाहर आ गया. फोन देते समय पूर्णिमा ने उस लड़की का जिक्र किया तो वह बोला, ‘‘मैं बात कर लूंगा.’’
शाम को इंद्र घर आया तो आते ही पूर्णिमा से बोला, ‘‘मैं 2 दिनों के लिए औफिस के काम से लखनऊ जा रहा हूं. मेरा सामान पैक कर देना.’’
‘‘अकेले जा रहे हो?’’ पूर्णिमा के इस सवाल पर वह असहज हो गया.
‘‘क्या पूरा औफिस जाएगा?’’
‘‘मेरे कहने का मतलब यह नहीं था.’’ पूर्णिमा ने कहा तो अचानक इंद्र को न जाने क्या सूझा कि एकाएक सामान्य हो गया. वह पूर्णिमा को बाहों में भरते हुए बोला, ‘‘मुझे क्षमा कर दो.’’
इस के बाद पूर्णिमा भी सामान्य हो गई. उस ने पति के कपड़े वगैरह बैग में रख दिए. पति के जाने के बाद वह अकेली रह गई. घर में बूढ़ी सास के अलावा कोई नहीं था. वह किसी से ज्यादा नहीं बोलती थी. इसीलिए वह चाह कर भी अपने मन की बात किसी से शेयर नहीं कर पाती थी.
रात को आंगन में चांदनी बिखरी थी, जो पूर्णिमा को शीतलता देने की जगह शूल की तरह चुभ रही थी. मन में असंख्य सवाल उठ रहे थे. कभी लगता यह सब झूठ है तो कभी लगता उस का वैवाहिक जीवन खतरे में है. तभी अचानक सास की नजर पूर्णिमा पर पड़ी.
‘‘यहां क्यों बैठी हो?’’
‘‘नींद नहीं आ रही है.’’ कह कर पूर्णिमा उठने लगी.
‘‘इंद्र चला गया इसलिए?’’ इस सवाल का पूर्णिमा ने कोई जवाब नहीं दिया.
इंद्र को ले कर उस के मन में जो चल रहा था, वह उस की निजी सोच थी. उसे सास से साझा करने का कोई औचित्य नहीं था. अनायास उस का मन अतीत की ओर चला गया. पूर्णिमा अपने मांबाप की एकलौती संतान थी. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद उस के पिता ने सिर्फ इंद्र की अच्छी नौकरी देखी और कर दी शादी. काफी दहेज दिया था उन्होंने उस की शादी में. एक ही रात में इंद्र की सामाजिक हैसियत का ग्राफ ऊपर उठ गया था.
तब उसे क्या पता था कि ऐसा भी वक्त आएगा, जब रुपयापैसा सब गौण हो जाएगा. हर महीने सैकड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद उस के मां बनने की संभावना क्षीण नजर आती थी. कभीकभी इंद्र खीझ जाता, तो पूर्णिमा अपनी मम्मी से दवा पर होने वाले खर्चे की बात करती. संपन्न मांबाप उस के खाते में तत्काल हजारों रुपए डाल देते थे.
इधर कुछ महीने से इंद्र उखड़ाउखड़ा सा रहने लगा था. दोनों में बात कम ही हो पाती थी. उसे भावनात्मक सहारे की जरूरत थी. सोचतेसोचते उस का मन भर आया. अगले दिन अचानक पूर्णिमा के मम्मीपापा आ गए. उन्हें देखते ही वह फफक कर रो पड़ी. बेटी का दुख उन्हें पता था. बोले, ‘‘मायके चलो.’’
पूर्णिमा के लिए यह राहत की बात थी. लेकिन उसे इंद्र की मां का खयाल था. इसलिए मातापिता से कहा, ‘‘सास अकेली रह जाएंगी. इंद्र औफिस के काम से बाहर गए हुए हैं.’’
‘‘कोई बात नहीं, मैं 2 दिन उस का इंतजार कर लूंगा.’’ पूर्णिमा के पापा बोले.
तीसरे दिन इंद्र आया तो पूर्णिमा ने कहा, ‘‘मैं मायके जाना चाहती हूं.’’
‘‘बिलकुल जाओ,’’ इंद्र निर्विकार भाव से बोला, ‘‘तुम कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओगी तो माहौल चेंज हो जाएगा. एक ही माहौल में रहतेरहते ऊब होने लगी है.’’
‘‘पति के साथ रहने में कैसी ऊब? कहीं तुम मुझ से ऊब तो नहीं गए?’’ लेकिन इंद्र ने एक शातिर खिलाड़ी की तरह चुप्पी साध ली. पूर्णिमा बेमन से मायके चली गई.
पूर्णिमा मायके चली जरूर गई थी, लेकिन उस का मन इंद्र पर ही टिका रहा. सोच रही थी कि अब तो वह आजाद पंछी की तरह रहेगा. पता नहीं वह क्या करता होगा. मन नहीं माना तो उस ने इंद्र को फोन लगाया.
‘‘कौन?’’ उधर से आवाज आई.
‘‘अब तुम्हें मेरी आवाज भी पहचान में नहीं आ रही.’’ पूर्णिमा ने उखड़े स्वर में कहा.
‘‘पूर्णिमा, तुम से बाद में बात करूंगा.’’ कह कर इंद्र ने काल डिसकनेक्ट कर दी.
इस दरमियान उस के कानों में कुछ ऐसी आवाजें आईं मानो कोई पिक्चर चल रही हो. घड़ी की तरफ देखा, शाम के 5 बज रहे थे. शक के कीड़े फिर कुलबुलाए. इंद्र कहीं अपनी उसी सहकर्मी के साथ पिक्चर तो नहीं देख रहा. सोच कर पूर्णिमा की बेचैनी बढ़ गई. पूर्णिमा की मां की नजर उस पर पड़ी, तो वह बोलीं, ‘‘यहां अकेले क्यों बैठी हो?’’
‘‘तो कहां जाऊं?’’ पूर्णिमा झल्लाई.
‘‘जब से आई हो परेशान दिख रही हो. इंद्र से कुछ कहासुनी तो नहीं हो गई.’’ मां ने पूछा.
‘‘हांहां, मैं ही बुरी हूं. झगड़ालू हूं.’’ पूर्णिमा रुआंसी हो गई. मां ने करीब आ कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरा तो वह शांत हो गई.
पूर्णिमा को मायके में रहते 15 दिन हो गए. इस बीच एक दो बार इंद्र का फोन आया लेकिन मात्र औपचारिकता के लिए. एक दिन पूर्णिमा की सास का फोन आया, ‘‘पूर्णिमा, कब आ रही हो?’’
‘‘मम्मीजी, मैं जानती हूं आप को मेरी फिक्र है, लेकिन इंद्र ने एक बार भी नहीं कहा कि आ जाओ. जब उसे मेरी जरूरत ही नहीं है तो मैं आ कर क्या करूंगी.’’ पूर्णिमा ने कहा.
‘‘ऐसे कैसे हो सकता है, उस ने तो तुम्हें कई बार फोन किए.’’ सास बोलीं.
‘‘वह तो कह रहा था कि तुम आने के लिए तैयार नहीं हो.’’
सास की बात सुन कर पूर्णिमा तिलमिला गई. अब इंद्र झूठ भी बोलने लगा था. काफी सोचविचार कर पूर्णिमा ने वापस ससुराल जाने का मन बनाया. इंद्र के मन में क्या चल रहा है, यह जानना उस के लिए बेहद जरूरी था. वह अपनी ससुराल चली गई.
इंद्र ने अचानक आई पूर्णिमा को देखा तो अचकचा गया. बोला, ‘‘बताया होता तो मैं लेने आ जाता.’’
‘‘तुम्हें फुरसत हो तब न?’’ पूर्णिमा के चेहरे पर व्यंग्य की रेखाएं खिंच गईं.
इंद्र ने पूर्णिमा को मनाने की कोशिश की, ‘‘आज शाम को पिक्चर चलते हैं.’’
‘‘नहीं जाना मुझे पिक्चर.’’ वह बोली.
‘‘जैसी तुम्हारी मरजी.’’ कह कर इंद्र अपने दूसरे कामों में लग गया.
एक रात इंद्र गंभीर था. पूर्णिमा को अहसास हो गया था कि उस के मस्तिष्क में कुछ चल रहा है. उस वक्त पूर्णिमा कोई किताब पढ़ रही थी. लेकिन बीचबीच में इंद्र के चेहरे पर आतेजाते भावों को चोर नजरों से देख लेती थी.
‘‘पूर्णिमा, मैं अंजलि से शादी करना चाहता हूं.’’ इंद्र का इतना कहना भर था कि पूर्णिमा की जिंदगी में भूचाल सा आ गया. उस ने किताब एक तरफ रखी, ‘‘मेरा शक ठीक निकला. अंजलि नाम है न उस का. बहुत खूब.’’ पूर्णिमा हंसी.
इस हंसी में रोष भी था तो बेवफाई की एक गहरी पीड़ा भी, जिस का अहसास सिर्फ उस स्त्री को ही हो सकता है, जिस ने पति को देवता मान कर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया हो.
‘‘तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो? अभी मैं जिंदा हूं.’’ वह बोली.
‘‘काफी सोचविचार कर मैं ने यह फैसला लिया है.’’ इंद्र ने कहा, ‘‘डाक्टर ने साफ कह दिया है कि तुम्हारे मां बनने की संभावना क्षीण है.’’
‘‘नहीं बनूंगी. मगर इस घर में सौतन कभी नहीं आएगी. कैसी बेगैरत लड़की है. एक शादीशुदा मर्द को फंसाया और तुम कैसे पुरुष हो जिस ने लाज, शरम, सब को ताक पर रख कर एक लड़की को जाल में फांस लिया.’’
‘‘वह स्वयं तैयार है.’’
‘‘मैं तुम से बहस नहीं करना चाहता. बात काफी बढ़ चुकी है. वह पेट से है.’’
‘‘बगैर शादी के?’’ वह चौंकी.
‘‘उस की इजाजत तुम से चाहता हूं.’’
‘‘न दूं तो?’’
‘‘तुम्हारी मरजी. अगर तुम मां बन सकती तो यह नौबत ही नहीं आती.’’
‘‘सोचो, अगर तुम बाप नहीं बन पाते और मैं यही रास्ता अपनाती, तब क्या तुम मुझे ऐसी ही इजाजत देते?’’ इंद्र के पास इस का कोई जवाब नहीं था.
पूर्णिमा की मनोदशा अब एक परकटे परिंदे की तरह हो गई. जब कुछ नहीं सूझा तो वह गुस्से में बोली, ‘‘बताओ, तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया? क्यों मेरे अस्तित्व को गाली दी? क्या सोचा था कि मेरी नाक के नीचे व्यभिचार करोगे और मैं चुप बैठी रहूंगी.’’
‘‘तो जाओ चिल्लाओ. कुछ मिलने वाला नहीं है.’’ इंद्र भी ढिठाई पर उतर आया.
‘‘अगर न चिल्लाऊं तो?’’
‘‘बड़ी मां का दरजा मिलेगा.’’ इंद्र ने कहा.
‘‘तुम्हारी उस रखैल के बच्चे की बड़ी मां का दरजा घिन आती है मुझे उस के नाम से.’’ इंद्र ने गुस्से में पूर्णिमा को मारने के लिए हाथ उठाया.
‘‘खबरदार, जो मुझे हाथ भी लगाया.’’ पूर्णिमा के तेवर देख कर इंद्र ने हाथ पीछे खींच लिया. उस रात जो कुछ हुआ, उस से पूर्णिमा का मन व्यथित था. सुबह उस का किसी काम में मन नहीं लगा. वह बीमारी का बहाना बना कर लेटी रही. इंद्र औफिस चला गया तब उठी. सास ने पूर्णिमा का हाल पूछा.
डायनिंग कुरसी पर बैठी पूर्णिमा बोली, ‘‘मांजी, इंद्र दूसरी शादी करना चाहता है. क्या आप इस के लिए तैयार हैं?’’
कुछ पल सोच कर वह बोलीं, ‘‘यह इंद्र का निजी मामला है, इस में मैं कुछ नहीं कर सकती.’’
‘‘इस का मतलब इंद्र के इस फैसले पर आप को कोई आपत्ति नहीं है?’’ पूर्णिमा ने पूछा.
‘‘देखो पूर्णिमा, हर आदमी बाप बनना चाहता है. उस ने भरसक प्रयास किया. जब डाक्टरों ने तुम्हारे बारे में साफसाफ कह दिया. तो वह जो कर रहा है उस में मैं कुछ भी नहीं कर सकती.’’
‘‘ऐसे कैसे हो सकता है कि एक छत के नीचे मेरी सौत रहे?’’
‘‘यह तुम्हें सोचना होगा. रही मानसम्मान की बात, तो मैं जब तक रहूंगी तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी.’’
‘‘न रही तब?’’ पूर्णिमा ने कहा तो सास ने कोई जवाब नहीं दिया.
इंद्र औफिस से देर से आया. आने के बाद कपड़े उतार कर बिना खाएपीए बिस्तर पर पड़ गया. पूर्णिमा सोच रही थी कि किस हक से इंद्र से मनुहार करे. पर मन नहीं माना.
‘‘खाना लगा दूं?’’
‘‘मैं खा कर आया हूं.’’ सुनते ही पूर्णिमा का पारा चढ़ गया. क्योंकि वह जानती थी कि खाना किस के साथ खाया होगा. गुस्से में पूर्णिमा भी बिना खाएपीए अलग बिस्तर लगा कर सोने चली गई.
नींद आने का सवाल ही नहीं था. बारबार मन एक ही बात पर आ टिकता. इंद्र के बारे में उस ने जैसा सोचा था, वह उस से अलग निकला. उसे सपने में भी भान नहीं था कि वह ऐसा कदम भी उठा सकता है.
‘‘क्या सोचा है तुम ने?’’ इंद्र का स्वर अपेक्षाकृत धीमा था.
‘‘जब तुम ने फैसला ले ही लिया है तो मैं कुछ नहीं कर सकती. पर इतना जरूर बता दो कि मेरी इस घर में क्या स्थिति होगी? स्वामिनी या नौकरानी. अर्द्धांगिनी तो अब कोई और कहलाएगी.’’ पूर्णिमा भरे मन से बोली.
‘‘तुम्हारा दरजा बरकरार रहेगा?’’ इंद्र का चेहरा खिल गया.
‘‘रात का बंटवारा कैसे करोगे?’’ पूर्णिमा के इस अप्रत्याशित सवाल पर वह सकपका गया. जब कुछ नहीं सूझा तो उलटे उसी पर थोप दिया.
पूर्णिमा गुस्से में बोली, ‘‘अंजलि से प्यार मुझ से राय ले कर किया था?’’
इंद्र पूर्णिमा के कथन पर झल्ला गया, ‘‘पुराने पन्ने पलटने से कोई फायदा नहीं.’’
पूर्णिमा ने यह खबर अपने मायके पहुंचा दी. उस के मम्मीपापा, भाईबहन सभी रोष से भर गए. पापा तल्ख स्वर में बोले, ‘‘पूर्णिमा, तुम यहीं चली आओ. कोई जरूरत नहीं है, उस के पास रहने की.’’
‘‘वहां आ कर क्या मिलेगा? एक नीरस उबाऊ जिंदगी. सब का अपनाअपना लक्ष्य रहेगा, वही मेरे लिए एक बांझ स्त्री का अभिशप्त जीवन. बहुत होगा किसी स्कूल में नौकरी कर लूंगी. क्या इस से मेरा दुख कम हो जाएगा?’’ कहतेकहते पूर्णिमा की आंखों में आंसू भर आए.
‘‘मैं तुम्हारी दूसरी शादी करवा दूंगा.’’ पापा बोले.
‘‘कोई जरूरत नहीं है. वहां भी दूसरे के बच्चे पालने होंगे. इस से अच्छा सौतन के ही खिलाऊं.’’
‘‘मैं उसे जेल भिजवा दूंगा.’’ पिता ने कहा.
‘‘उस से मिलेगा क्या? बेहतर है कि समय का इंतजार करूं. हो सकता है मेरी गोद भर जाए.’’ पूर्णिमा ने आशा नहीं छोड़ी थी. अंतत: इंद्र से अपनी मर्जी से अंजलि के साथ शादी कर ली. उस की पत्नी बन कर वह घर में आ गई.
औफिस से आ कर इंद्र सब से पहले पूर्णिमा के कमरे में आता था. पर जल्द ही उसे पूर्णिमा से ऊब होने लगी थी. अंजलि की खुशबू वह पूर्णिमा के कमरे तक महसूस करता. फिर तेजी से चल कर उस के पास जाता. अंजलि उसी के इंतजार में सजधज कर तैयार बैठी रहती. गोरीचिट्टी अंजलि जब होंठों पर लिपस्टिक लगाती तो उस के होंठ गुलाब की पंखुडि़यां जैसे लगते थे.
एक हफ्ते बाद पहली बार इंद्र रात बिताने पूर्णिमा के पास आया.
पूर्णिमा को कहीं न कहीं विश्वास था कि वह मां अवश्य बनेगी. बेमन से उस के पास 2 घंटे बिता कर वह अंजलि के पास चला गया. पूर्णिमा अपने अरमानों का कत्ल होते देखती रही. इंद्र उस की भावनाओं को रौंद रहा था. सोचतेसोचते उस की आंखें भीग गईं.
एक दिन वह भी आया, जब अंजलि मां बनने वाली थी. इंद्र काफी परेशान था. पूर्णिमा से बोला, ‘‘हो सके तो अस्पताल में तुम रह जाओ. पता नहीं किस चीज की जरूरत हो.’’
यह सुन कर पूर्णिमा का दिल भर आया. वह सोचने लगी कि आज इंद्र, अंजलि के लिए कितना परेशान है. अगर वह सक्षम होती तो उस की परेशानी पर उस का हक होता. पूर्णिमा की आंखों में आंसू छलक आए. इंद्र की नजर उस पर पड़ी, ‘‘रोनेधोने से क्या मिलने वाला है. खुशियां मनाओ कि इस घर में एक चिराग जलने वाला है. जिस की रोशनी में हम सब नहाएंगे.’’
‘‘सिर्फ तुम दोनों.’’ वह बोली.
‘‘वह तुम्हें बड़ी मां कहेगा.’’ इंद्र ने खुश हो कर कहा.
‘‘नहीं बनना है मुझे किसी की बड़ी मां.’’ पूर्णिमा गुस्से में बोली.
इंद्र जाने लगा तो कुछ सोच कर पूर्णिमा ने कहा, ‘‘किस नर्सिंगहोम में जाना होगा?’’
इंद्र ने नर्सिंगहोम का नाम बता दिया तो वह वहां चली गई. अंजलि ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया, सब के चेहरे खिल उठे. सास जल्द से जल्द नवजात शिशु को गोद में ले कर दादी बनने की हसरत पूरी करना चाहती थी.
कुछ घंटे के इंतजार के बाद अंजलि को उस के केबिन में लाया गया. साथ में नर्स की गोद में बच्चा भी था. नर्स ने कुछ नेग के साथ बच्चा सास की गोद में रख दिया. बच्चे को देख इंद्र का मन पुलकित हो उठा.
‘‘बिलकुल इंद्र पर गया है,’’ सास पुचकारते हुए बोली. इंद्र दौड़ कर बाजार से मिठाई लाया. अस्पताल के सारे स्टाफ का मुंह मीठा कराया. एक तरफ खड़ी पूर्णिमा अंदर ही अंदर रो रही थी. किसी का ध्यान उस पर नहीं गया. सब को बच्चे और अंजलि की फिक्र थी.
जो खुशी उसे देनी चाहिए थी वह अंजलि से मिल रही थी. जो मानसम्मान उसे मिलना चाहिए था, वह अंजलि को मिल रहा था. यह सब उस के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा थी. मौका देख कर वह बिना बताए घर लौट आई. बिस्तर पर पड़ते ही वह फूटफूट कर रोने लगी. क्योंकि यहां उस का रुदन सुनने वाला कोई नहीं था. तभी मां का फोन आया. वह फोन पर ही रोने लगी.
‘‘पूर्णिमा, चुप हो जा मेरी बच्ची. मैं अभी तेरे भाई को तुझे लेने के लिए भेज रही हूं. परेशान मत हो.’’ मां ने ढांढस बंधाया.
‘‘क्यों न होऊं परेशान, अंजलि मां बन गई. एक मैं हूं जो बांझ के कलंक के साथ जी रही हूं.’’ पूर्णिमा का क्षोभ, गुस्सा, झलक गया. वह सिसकती रही.
मां ने उसे समझाया, ‘‘कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा? हो सकता है तू भी मां बन जाए.’’
‘‘नहीं बनना है मुझे मां.’’ कह कर पूर्णिमा ने फोन काट दिया.
वह सुबक रही थी, तभी इंद्र का फोन आया, ‘‘पूर्णिमा, कहां हो तुम? सब तुम को पूछ रहे हैं.’’
‘‘बच्चा कैसा है?’’ पूर्णिमा स्वर साध कर बोली.
‘‘एकदम ठीक है,’’ इंद्र खुश हो कर बोला.
कुछ दिन अस्पताल में रह कर अंजलि घर आ गई. इंद्र को तो बहाना मिल गया अंजलि के साथ रहने का. बच्चा खिलाने के नाम पर अब वह पूर्णिमा की खबर भी लेना भूल गया. यह सब असह्य था पूर्णिमा के लिए. सो एक दिन मन बना कर इंद्र से बोली, ‘‘इंद्र, मैं हमेशा के लिए मायके में रहना चाहूंगी.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘यहां मेरा मन नहीं लगता. वहां मेरा सुखदुख बांटने वाले मांबाप तो हैं.’’
‘‘तुम्हें यहां किस बात की कमी है,’’ सुन कर एक बार फिर से उस का मन भीग गया. पर जाहिर नहीं होने दिया.
‘‘परसों मेरा भाई आ रहा है. मुझे नहीं लगता कि अब यहां मेरी जरूरत है. मैं एक कामवाली बाई बन रह गई हूं.’’
‘‘तुम ऐसा क्यों कह रही हो?’’
‘‘ऐसा ही है.’’ बात को तूल न देते हुए वह अपने कमरे में आई और सामान पैक करना शुरू कर दिया.
जैसेजैसे सामान पैक करती उस की रुलाई फूटती रही. कभी सोचा तक नहीं था कि एक दिन ऐसी स्थिति आएगी, जब इस घर की दीवारें उस के लिए बेगानी हो जाएंगी. कभी यही दीवारें उस के नईनवेली दुलहन बनने की गवाह थीं. जब वह पहली बार आई थी तो लगता था कि ये सब उस पर फूल बरसा रही हैं. मगर आज कालकोठरी सरीखी लग रही थीं. सास ने महज औपचारिकता निभाई. बेटे के खिलाफ न तब खड़ी हुई, न अब.
पूर्णिमा को मायके में रहते हुए एक महीना हो गया था. उस ने एक संस्थान में नौकरी कर ली. शुरू में कभीकभार इंद्र का फोन आ जाता था. उस ने उसे खर्च के लिए रुपए देने की पेशकश की मगर पूर्णिमा ने मना कर दिया. देखतेदेखते 6 महीने गुजर गए. इंद्र अपनी नई पत्नी के साथ खुश था.
अचानक एक दिन उस के औफिस में एक युवक उस से मिलने के लिए आया. इंद्र उसे ले कर एक रेस्टोरेंट में चला गया. जैसेजैसे वह युवक इंद्र से अपनी बात कहता, वैसेवैसे इंद्र के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ती जातीं.
‘‘तुम्हारे पास सबूत क्या है?’’ इंद्र बोला.
उस ने अदालत के कागजात इंद्र को दिखाए, जिस में गवाह के रूप में उन लोगों के हस्ताक्षर थे, जिस के बारे में वह सोच भी नहीं सकता था.
‘‘अब तुम चाहते क्या हो?’’ इंद्र ने उस से पूछा.
‘‘वह आज भी मेरी पत्नी है. बाकी आप जो भी फैसला लें.’’ कह कर उस युवक ने इंद्र को ऐसे भंवरजाल में फंसा दिया कि उस से न हंसते बन रहा था न ही रोते. उस का मोबाइल नंबर लेने के बाद वह घर आया.
उस समय अंजलि अपने बच्चे के साथ लेटी हुई थी. एकहरे बदन की अंजलि मां बनने के बाद और भी निखर गई थी, जिस से सिवाय प्यार जताने के उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. मगर हकीकत तो आखिर हकीकत होती है. वह बिना कपड़े उतारे चिंताग्रस्त हो कर सोफे पर बैठ गया.
‘‘ऐसे क्यों बैठा है. अंजलि क्या कर रही है?’’ इंद्र की मां ने पूछा.
सास की आवाज पर अंजलि की तंद्रा टूटी.
‘‘आप? आप कब आए?’’ वह अचकचा उठी.
‘‘ये क्या हालत बना रखी है? औफिस में ज्यादा काम था क्या? देर क्यों हो गई?’’ अंजलि के सवालों से वह खिसिया गया.
‘‘क्या आते ही सवालों की झड़ी लगा दी. खुद तो दिन भर बच्चे का बहाना बना कर लेटी रहती हो. पति मरे या जीए, तुम्हें जरा भी चिंता नहीं रहती.’’ इंद्र के बदले तेवर ने अंजलि को असहज बना दिया. ऐसा पहली बार हुआ, जब इंद्र के बात करने का लहजा उस के प्रति असम्मानजनक था.
‘‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया. यह तो रोज ही होता है. अब बच्चे को समय न दूं तो क्या उसे अकेला छोड़ दूं.’’ अंजलि ने भी उसी टोन में जवाब दिया. उस समय तो इंद्र ने अपने आप पर नियंत्रण रखा, मगर जब परिस्थिति बदली तो मूल विषय पर आ गया.
‘‘क्या तुम्हारी पहले भी शादी हो चुकी है?’’ इंद्र के इस सवाल पर अंजलि अंदर ही अंदर डर गई. डर स्वाभाविक था. पहले तो उस ने नानुकुर किया. मगर जब इंद्र ने उस के पहले पति का नाम बताया तो वह अपने बचाव में बोली, ‘‘हां, 3 साल पहले मैं ने अपने औफिस में काम करने वाले प्रियांशु से शादी की थी.’’
‘‘क्या तुम्हारा उस से तलाक हुआ था?’’ इंद्र के इस सवाल पर उस ने चुप्पी साध ली.
‘‘बोलती क्यों नहीं? अगर यह मामला पुलिस के सामने गया तो जेल मुझे होगी. क्योंकि मैं ने किसी की ब्याहता को घर में रखा है.’’ इंद्र ने अपनी कमजोरी स्वत: जाहिर कर दी.
‘‘नहीं लिया था,’’ अंजलि बोली.
‘‘वजह?’’ इंद्र ने पूछा.
‘‘शादी के बाद पता चला कि उस का चालचलन अच्छा नहीं है. वह न केवल शराबी था बल्कि उस के दूसरी औरतों से भी संबंध थे.’’
‘‘इसलिए साथ छोड़ दिया?’’
‘‘हां.’’
‘‘शादी क्या गुड्डेगुडि़यों का खेल है, जो आज किसी से कर ली और कल किसी और के साथ.’’
‘‘यह सवाल आप मुझ से पूछ रहे हैं? आप ने खुद शादी को मजाक बना रखा है.’’ अंजलि अपने मूल स्वभाव पर आ गई. इंद्र सन्न रह गया. जिसे उस ने फूल सी कोमल समझा था, वह कांटों सरीखी निकली.
‘‘क्या बक रही हो?’’ वह चीखा.
‘‘गलत क्या कहा. आप ने पूर्णिमा के साथ जो किया, क्या वह खेल नहीं था?’’ इंद्र को अब अपनी भूल का अहसास हुआ. अनायास उस का ध्यान पूर्णिमा पर चला गया. उसे अफसोस होने लगा कि उस ने पूर्णिमा का विश्वास क्यों तोड़ा. पर अब क्या किया जा सकता था.
‘‘इंद्र, मैं जानती हूं कि मुझ से गलती हुई. मुझे उसे तलाक दे देना चाहिए था.’’
‘‘तुम ने इस सच को मुझ से क्यों छिपाया?’’ इंद्र ने पूछा.
‘‘मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. मैं ने जब प्रियांशु से शादी की, तब मेरे मातापिता दोनों की रजामंदी थी. वे दोनों इस शादी के गवाह भी थे. मगर बाद में हालात कुछ ऐसे बने कि मैं ने प्रियांशु का घर हमेशा के लिए छोड़ दिया.
‘‘3 साल तक उस ने मेरी कोई खबर नहीं ली. न ही मैं ने उस के बारे में जानने का प्रयास किया. यह सोच कर कि मामला खत्म हो चुका है. नौकरी के दौरान वह शहर में अकेला रहता था. बाद में पता चला कि उस ने नौकरी छोड़ दी. मैं ने सोचा या तो वह कहीं और नौकरी कर रहा होगा या अपने शहर उन्नाव चला गया होगा.’’
‘‘तुम्हें पूरा विश्वास है कि वह उन्नाव का ही रहने वाला था?’’ इंद्र के इस सवाल पर वह किंचित परेशान दिखी.
‘‘उस ने बताया था तो मैं ने मान लिया.’’ अंजलि से बात करने पर इंद्र को लगा कि या तो अंजलि पूरी तरह बेकसूर है या फिर वह खुद साजिश का शिकार हो चुका है.
‘‘क्या तुम उस के साथ जाना पसंद करोगी?’’ इंद्र के इस सवाल पर वह विचलित हो गई.
‘‘आप कैसे सोच सकते हैं कि मैं उस के साथ रहना पसंद करूंगी? मैं आप के बच्चे की मां बन चुकी हूं.’’
‘‘कानूनन हमारा विवाह अवैध है. तुम भले ही न फंसो, लेकिन तुम्हारे उस पति की शिकायत पर मुझे जेल हो सकती है.’’ इस पर अंजलि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई.
अगले दिन उस युवक का फोन आया तो इंद्र ने बाद में बात करने को कहा. इस बीच उस ने वकील के माध्यम से इस विवाह की हकीकत को जानने का प्रयास किया. वकील ने बताया कि उन दोनों ने अदालत में शादी की है. यह जान कर इंद्र और भी परेशान हो उठा.
अगले दिन उस युवक का दोबारा फोन आया, ‘‘आप ने क्या सोचा है?’’
‘‘तुम अब तक कहां थे?’’ इंद्र गुस्से में बोला.
‘‘जहां भी था, इस का मतलब यह तो नहीं है कि आप मेरी बीवी को अपनी बना लें.’’ वह बोला.
‘‘तुम चाहते क्या हो?’’ इंद्र मूल मुद्दे पर आया.
‘‘अंजलि मुझे चाहिए.’’ कुछ सोच कर इंद्र बोला, ‘‘वह तुम्हारे साथ जाना नहीं चाहती.’’
यह सुन कर वह हंसने लगा.
‘‘इस का मतलब यह तो नहीं कि आप उसे अपने घर में रख लें.’’ उस का कहना ठीक था.
‘‘मैं चाहता हूं कि एक बार तुम उस से मिल लो. अगर वह तुम्हारे साथ जाना चाहेगी तो ले जाना वरना तलाक दे कर अपना रास्ता बदल लो.’’ इंद्र ने कहा.
‘‘ठीक है,’’ इंद्र ने अंजलि को इस वार्तालाप से अवगत कराया.
‘‘मैं उस का चेहरा तक देखना पसंद नहीं करूंगी. आप ने कैसे सोच लिया कि मैं उस के साथ जाऊंगी.’’ अंजलि की त्यौरियां चढ़ गईं.
‘‘बिना तलाक दिए मैं भी तुम्हें अपने पास रखना नहीं चाहूंगा.’’ इंद्र ने साफ कह दिया.
‘‘आप होश में तो हैं. आप की हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की?’’ इस बार अंजलि के तेवर बिलकुल अलग थे. कल तक जिसे वह छुईमुई समझता था वह नागिन सी फुफकारने लगी थी.
‘‘ऐसा रहा तो मुझे जहर खा कर मरना पडे़गा. इस भंवनजाल से निकलने के लिए बस एक ही रास्ता बचा है मेरे लिए.’’ इंद्र रुआंसा हो गया.
‘‘वह तुम्हें तलाक देगा. क्या इस के लिए तैयार हो?’’ उस के चेहरे पर खुशी के भाव तैर गए.
‘‘बिलकुल,’’ अंजलि के कथन से उसे तसल्ली हुई. इंद्र ने उस युवक को एक गोपनीय जगह बुलाया.
‘‘वह तुम्हारे साथ जाने के लिए तैयार है.’’ कह कर इंद्र ने प्रियांशु के साथ चाल चली.
‘‘क्या?’’ वह आश्चर्य से बोला.
‘‘मैं उस कमीनी के साथ बिलकुल नहीं रहूंगा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘इस से पहले भी उस ने एक लड़के से शादी कर के मुझे धोखा दिया था. वह शादी महज 6 महीने चली थी.’’
‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ इंद्र ने पूछा.
‘‘ऐसी बातें छिपाए नहीं छिपती. तभी तो मैं ने उस का साथ छोड़ा.’’
‘‘यह सब जानने के बावजूद भी तुम उसे अपनी पत्नी बता रहे हो?’’
‘‘बताना ही पड़ेगा. उस ने काफी पैसे ऐंठे हैं मुझ से. लगभग 5 लाख रुपए. अब अगर सूद समेत मुझे नहीं मिलेगा तो जाहिर सी बात है, मैं आप दोनों को नहीं छोड़ूंगा.’’
‘‘कितने चाहिए?’’
‘‘10 लाख.’’ उस युवक ने कहा.
‘‘मैं इतना नहीं दे सकता. 6 पर तैयार हो जाओ तो मैं तुम्हें दे सकता हूं.’’ वह तैयार हो गया.
इस तरह अंजलि उस युवक से आजाद हो गई. अब यह इंद्र को तय करना था कि अंजलि को किस रूप में ले. क्या ऐसी औरत विश्वास लायक है? वह खुद भी तो बेवफाई के कटघरे में खड़ा था. अनायास उस का ध्यान पूर्णिमा पर चला गया और वह पश्चाताप के गहरे सागर में डूब गया.