Hindi Kahani : आखिरकार 11 साल बाद कोर्ट का फैसला आ ही गया. वह जो चाहती थी, वही हुआ था. उसे अपने पति से तलाक मिल गया था. लेकिन 11 साल बाद अब इस तलाक का क्या औचित्य था. जब उस ने तलाक के लिए अदालत में मुकदमा दायर किया था, तब वह 25 वर्ष की यौवन के भार से लदी सुंदर युवती थी. अब वह 36 साल की प्रौढ़ा हो चुकी थी. चेहरे पर उम्र की परतों को दिखाने वाली मोटी चरबी चढ़ गई थी, जिस पर झुर्रियां पड़ने लगी थीं. बाल सफेद होने की यह कोई उम्र तो नहीं थी, लेकिन गमों के सायों ने उस पर सफेदी फेरनी शुरू कर दी थी.
यौवन पता नहीं कब चला गया था. हर सालज़्उसे वसंत का इंतजार रहता कि अब उस के जीवन में भी फूल खिलेंगे. न जाने कितने वसंत उस के जीवन में आए और गुजर गए, लेकिन उस के मन की बगिया में फूल नहीं खिले. हवा में खुशबू नहीं फैली. 36 वसंत देखने के बाद भी उसे लगता कि उस के जीवन में कोई वसंत नहीं आया था. दूरदूर तक, जहां तक नजर जाती थी, पतझड़ ही पतझड़ दिखता था और आंखों में रेगिस्तान था. उस के जीवन के गुजरे साल सूखे पत्तों की तरह हवा में उड़ते हुए उस के दिल में भयावह सन्नाटे का एहसास करा रहे थे.
इतने सालों बाद तलाक का आदेश पा कर वह गुम सी हो गई थी. आज वह यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि पति से तलाक तो मिल गया, लेकिन अब आगे क्या होगा?
वह बिलकुल अकेली है. मां कई साल पहले गुजर गई थीं. पिता उसी की चिंता में घुलते रहे और इसी कारण वे भी जल्दी मौत को गले लगा चले गए. मांबाप की मृत्यु के बाद बड़े भाई ने उस से किनारा कर लिया. भाभी से हमेशा 36 का आंकड़ा रहा. उस को ले कर भैयाभाभी में अकसर तनातनी चलती रहती. वह सब देखती थी, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी. उस का भार, उस के मुकदमे का भार, कौन कब तक उठाता. वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी. उस से केवल उस के मुकदमे का ही खर्चज़्निकल पाता था. अब वह किराए के एक छोटे से कमरे में रहती थी.
बवंडर की तरह विचार उस के मस्तिष्क में उमड़घुमड़ रहे थे. विचारों में खोई वह अदालत की सीढि़यां उतर कर नीचे आई. चारों तरफ लोगों की भीड़ और चीखपुकार मची थी. आज का शोर उस के कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रहा था. लग रहा था, शोर की अधिकता से उस के कान बहरे हो गए थे. किसी तरह वह कोर्टज़्परिसर से बाहर आई और बेमकसद एक तरफ चल दी.
जनवरी का महीना था और धूप में तीव्रता का एहसास होने लगा था. चलतेचलते वह एक छोटे से पार्कज़्के पास पहुंची, तो उस के अंदर चली गई. कुछ लड़केलड़कियां वहां बैठ कर चुहलबाजी कर रहे थे. उस ने उन की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और एक पेड़ के नीचे जा कर बैठ गई. वहां वह धूपछांव दोनों का आनंद ले सकती थी, लेकिन उस के जीवन में आनंद कहां था?
जिन प्रश्नों पर वह कई बार विचार कर चुकी थी, वही बारबार उस के दिमाग में आ रहे थे. आज से 11 साल पहलेज़् जब उस की शादी हुई थी, तब वह नहीं जानती थी कि एक दिन वह बिलकुल अकेली होगी, एक तलाकशुदा स्त्री, जिस के जीवन में पतझड़ की वीरानी के सिवा और कुछ नहीं होगा.
शादी से पहलेज़्उस की सहेलियां उस से कहती थीं कि वह घमंडी और अपनी खूबसूरती के मद में चूर लड़की है. वह नहीं जानती थी कि उस के स्वभाव में ये सारे अवगुण कैसे आए थे. ये जन्म से थे या हालात के तहत उस के स्वभाव में समा गए थे. तब वह जवानी और अपनी खूबसूरतीज़्के मद में चूर थी, इसलिए अपने इन अवगुणों की तरफ देखने, सोचने व उन में सुधार लाने की तरफ उस का ध्यान नहीं गया. मांबाप ने भी कभी उसे नहीं टोका कि उस में कोई ऐसा अवगुण है जो उस के जीवन को बरबाद कर देगा. भाई को उस से कोई मतलब नहीं था.
शादी के समय मां ने उसे सीख दी थी, ‘बेटी, अब तुम्हारे जीवन का दूसरा पक्ष शुरू होने जा रहा है. यह बहुत महत्त्वपूर्णज़् है और इस में यदि तुम ने सोचसमझ कर कदम नहीं रखा तो जीवनभर पछताने के अलावा और कुछ तुम्हारे हाथ में नहीं आएगा. पति को काबू में रखना, सासससुर को दबा कर रखना, उन के रिश्तेदारों को भाव न देना वरना सब आएदिन तुम्हारे ऊपर बोझ बन कर खड़े रहेंगे. कोशिश करना कि सासससुर से अलग रह कर अपना स्वतंत्र जीवन बिताओ. इस के लिए हर समय पति को टोकते रहना. एक न एक दिन वह तुम्हारी बात मान कर अलग रहने लगेगा.’
मां की बात उस ने गांठ बांध ली और शादी के एक हफ्ते बाद ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. सब से पहले तो उस ने सास की बातों की तरफ ध्यान देना बंद किया. सास कुछ कहती तो वह न सुनने का बहाना बनाती. सास पास आ कर कहती, तो वह चिड़चिड़ा कर कहती, ‘आप नहीं कर सकतीं क्या इतना छोटा सा काम? जब देखो, तब मेरे सिर पर खड़ी रहती हैं. मैं जब इस घर में नहीं थी तो क्या ये काम आप नहीं करती थीं.’
वह जानबूझ कर कोई न कोई हंगामा खड़ा कर देती. फिर भी सास उस से तकरार न करती. कुछ ही दिनों बाद उस ने खाने को ले कर घर में हंगामा खड़ा कर दिया, ‘मुझे रोजरोज दालचावल अच्छे नहीं लगते. आप को खाने हों तो बनाइए. मैं अपना अलग खाना बना लिया करूंगी, नहीं तो होटल से मंगा लूंगी.’
पति राजीव ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘तुम को जो पसंद हो, बना लिया करो. कोई मना करता है क्या?’
वह फास्टफूड की शौकीन थी. चाइनीज और कौंटिनैंटल खाना उसे पसंद था. वह जानती थी, ये चीजें घर में नहीं बनाई जा सकती थीं और अगर कोई बना भी ले, तो किचन की गरमीज़्में फुंकने से अच्छा है होटल से मंगा कर खा ले. इसीलिए उस ने इतना नाटक किया था कि घर में खाना बनाने का झंझट न करना पड़े. फिर भी उस ने साफसाफ कह दिया कि वह खाना नहीं बनाएगी.
वह फोन पर और्डर कर के बाहर से अपने लिए खाना मंगवाने लगी थी. इस सब का एक ही मकसद था कि वह राजीव को अपने मांबाप से अलग कर सके. यही नहीं, हर रविवार जिद कर के वह राजीव को बाहर भी ले जाती और महंगे रैस्तरां में खाना खा कर आती. जब भी दोनों बाहर से खाना खा कर आते, वह देखती कि राजीव का मूड उखड़ाउखड़ा सा रहता. लेकिन वह ध्यान नहीं देती.
एक दिन राजीव ने कह ही दिया, ‘स्मिता, अब ये महंगे शौक छोड़ दो. कुछ जिम्मेदारी भी समझो. मेरी पगार इतनी नहीं है कि मैं तुम्हारे लिए रोजाना बाहर से खाना मंगवा कर खिला सकूं. अपने हाथ से बनाना सीखो.’
‘मैं पूरे घर के लिए खाना नहीं बना सकती. मैं तुम्हारी पत्नी बन कर आई हूं, तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. मांबाप से अलग रहो तो मैं घर में खाना बनाऊंगी वरना बाहर से ही मंगवा कर खिलाओ.’
राजीव तिलमिला कर रह गया था. फिर भी वह शांत भाव से बोला, ‘मांबाप हमारे ऊपर बोझ नहीं हैं. यह हमारा पुश्तैनी घर है. उन से अलग रह कर मेरा खर्च दोगुना हो जाएगा. यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आती?’
‘तो क्या तुम मेरा और अपना खर्चज़्नहीं उठा सकते?’
‘उठा सकता हूं, मगर अलग रह कर नहीं,’ राजीव ने साफसाफ कहा.
‘तुम मेरा खर्च नहीं उठा सकते तो शादी क्यों की थी? समझ में नहीं आता, लोग कमाते एक धेला भी नहीं, लेकिन सुंदर पत्नी की कामना करते हैं. इस से अच्छा तो कुंआरे रहते?’
‘स्मिता, तुम बात का बतंगड़ क्यों बना रही हो. मेरे पापा को इतनी पैंशन मिलती है कि वे अपना खर्चज़्खुद उठा सकें. वे मेरी तनख्वाह का एक पैसा नहीं लेते, लेकिन जो शौक तुम ने पाल रखे हैं, उन में मेरी तनख्वाह 15 दिन भी नहीं चलती. बाक़ी महीने का खर्च कहां से आएगा. खाने के अलावा घर के और भी खर्चेज़्हैं.’
‘यह तुम जानो, यह तुम्हारा घर है. घर का खर्चज़्चलाना भी तुम्हारा काम है.’
‘सही है, लेकिन अनापशनाप खर्चों से घर नहीं चलता, बल्कि बरबादी आती है.’
‘तो मैं अनापशनाप खर्चज़्करती हूं, खाना ही तो खाती हूं, और क्या? मैं सब समझती हूं, पैसे बचा कर मांबाप को देते हो. अब ऐसा नहीं चलेगा. आइंदा से तनख्वाह मेरे हाथ में रखा करोगे, तब मैं देखती हूं, घरखर्चज़्कैसे नहीं चलता.’
राजीव मान गया. उस ने अगले महीने की पूरी तनख्वाह स्मिता के हाथ में रख दी, ‘यह लो, इस में 5 हजार रुपए निकाल देना. मैं ने एक पौलिसी ले रखी है. इस के अलावा मेरा स्कूल आनेजाने का खर्च 3 हजार रुपए है. बाकी तुम रख लो और घर चलाओ.’
राजीव को 8 हजार रुपए दे कर बाकी पैसे स्मिता ने रख लिए. पैसे हाथ में आते ही वह मनमानी पर उतर आई. बिना कुछ सोचेविचारे उस ने खानेपीने की चीजों और अपने लिए कपड़े खरीद कर एक हफ्ते में ही राजीव की पूरी तनख्वाह खत्म कर दी.
‘तुम्हें तनख्वाह इतनी कम मिलती है, मुझे पता नहीं था. वह तो एक हफ्ते भी नहीं चली,’ स्मिता ने जैसे राजीव पर एहसान करते हुए कहा, ‘बाकी महीना कैसे चलेगा?’
राजीव ने तब भरी निगाहों से उसे देखा था, ‘40 हजार रुपए कम नहीं होते. इतने में 10 आदमी बड़े आराम से एक महीना दालरोटी खा सकते हैं. लेकिन तुम्हारी बेवकूफी से 40 हजार रुपए एक हफ्ते में खर्च हो गए. अब घर में बैठ कर दालरोटी खाओ.’
राजीव की आवाज सख्त नहीं थी, लेकिन उस में थोड़ी तल्खी थी. उसे लगा कि राजीव उसे डांटेगा, इसलिए वह पहले ही लगभग चीख कर बोली, ‘पता नहीं कैसे भिखमंगों के घर में मांबाप ने मुझे ब्याह दिया. इतने अच्छेअच्छे रिश्ते मेरे लिए आए थे, लेकिन उन्हें यह टुटपुंजिया स्कूलमास्टर पसंद आया.’
‘स्मिता, तुम हालात को समझने की कोशिश करो. अमीर से अमीर आदमी भी होटल का खाना खाने से एक दिन कंगाल हो जाता है. तुम घर में खाना बना लिया करो.’
‘मैं इस घर के किचन में अपनी आंखें नहीं फोड़ूंगी. मुझे कहीं से भी पैसे ला कर दो, लेकिन मुझे पैसे चाहिए. मैं एक भिखारिन की तरह इस घर में नहीं रह सकती,’ और वह पैर पटकती हुई बैडरूम में चली गई.
रात में राजीव उसे मना रहा था, ‘स्मिता, मैं समझ सकता हूं कि शादी के पहले तुम्हारी अलग जिंदगी थी, लेकिन शादी के बाद हर लड़की को ससुराल की हालत के अनुसार खुद को ढालना पड़ता है.’
‘मुझे उपदेश देने की जरूरत नहीं है. अगर तुम मेरा खर्च नहीं उठा सकते तो मुझे तलाक दे दो. अभी भी मुझे अच्छा घरवर मिल जाएगा,’ स्मिता ने ऐंठ कर कहा.
राजीव तब सन्न रह गया था. इस मुद्दे पर उस ने स्मिता से कोई बहस नहीं की.
स्मिता रोज राजीव से पैसे की मांग करती, लेकिन वह मना कर देता.
एक दिन खीझ कर स्मिता ने कहा, ‘कंगाल आदमी, लो संभालो अपना घर, मैं जाती हूं.’ उस ने तैश में अपने कपड़ेलत्ते समेटे और जातेजाते फिर बोली, ‘जिस दिन मेरे खर्चज़्लायक कमाने लगो, मुझे विदा कराने आ जाना, लेकिन उस के पहले मांबाप से अलग रहने का इंतजाम कर लेना.’
राजीव और उस की मां ने उसे कितना मनाने की कोशिश की, यह याद आते ही स्मिता की आंखों में आंसू आ गए. सोचसोच कर वह दुखी होने लगी, लेकिन अब दुखी होने से क्या फायदा? आज जिस हालत में वह थी, उस की जिम्मेदार तो वह खुद थी.
पार्क की बैंचों पर और पेड़ों के नीचे अब लड़केलड़कियों की तादाद बढ़ने लगी थी. स्मिता ने अपने चारों तरफ निगाह डाली. लड़के और लड़कियां खुले प्यार का आदानप्रदान कर रहे थे. उस ने एक लंबी सांस ली. उसे कुछ अजीब सा लगने लगा था और वह उठ कर पार्क के बाहर आ गई. शाम होने में अभी थोड़ी देर थी. उस ने अपने घर की तरफ का रुख किया.
रास्ते पर चलते हुए वह फिर उन्हीं विचारों में खो गई, जिन विचारों के दरिया से वह न जाने कितनी बार तैर कर बाहर आई थी.
पति का घर छोड़ कर अपने मायके आई तो मांबाप को बहुत हैरानी हुई. भाई भी परेशान हो गया. सब ने मिलबैठ कर उस से कारण पूछा, तो उस ने बस इतना कहा, ‘अब मैं उस कंगाल घर में नहीं जाऊंगी. आप लोगों ने अपने मन की कर ली, मुझे ब्याह कर आप लोग अपनी जिम्मेदारी से फ्री हो गए. लेकिन अब मुझे अपने ढंग से जीवन जीने दो. मैं राजीव से तलाक चाहती हूं.’
‘तलाक…’ सब के मुंह से एकसाथ निकला. कुछ देर सब मुंहबाए स्मिता का मुंह देखते रहे. फिर मां ने पूछा, ‘ऐसा क्या हो गया तुम्हारे साथ ससुराल में, जो 2 महीने बाद ही तुम तलाक लेने पर उतर आई?’
‘यह पूछो कि क्या नहीं हुआ? छोटे और गरीब लोगों के घर में मुझे ब्याहते हुए आप को शर्म नहीं आई? आप ने यह तक नहीं सोचा कि उस घर में आप की बेटी गुजारा कैसे करेगी? इतने प्यार से मुझे पालपोस कर बड़ा किया. मेरी हर जरूरत पूरी की, ऊंची शिक्षा दी. इस के बाद भी क्या मेरी जिंदगी में वही टुच्चा घर बचा था.’
‘बेटा, यह क्या कह रही हो? वे तुम्हारा खर्च क्यों नहीं उठा पा रहे हैं. तुम्हारे ऐसे कौन से खर्चे हैं, जो उन के बूते में नहीं हैं. अच्छाखासा खातापीता परिवार है,’ उस के पिता ने पूछा.
‘बेटी, ऐसी क्या बात हो गई जो तुम अपने पति से तलाक लेना चाहती हो? हमें कुछ बताओ तो हमें पता भी चले. मैं ने तुम्हें यह शिक्षा तो नहीं दी थी. बस, अलग रहने के लिए कहा था,’ उस के जवाब देने के पहले ही मां ने सवाल दाग दिया.
‘मैं ने कह दिया कि मुझे उस घर में अब लौट कर नहीं जाना, बस. मैं तलाक ले कर दूसरी जगह शादी करूंगी, इस बार खुद घरबार देख कर,’ उस ने अपना अंतिम फैसला सुना दिया. उस ने न किसी की सुनी, और न किसी की चलने दी. तब उस के पिता नौकरी करते थे, भाई भी नौकरी करने लगा था. मां गृहिणी थी. उस के खानेपीने की कोई परेशानी नहीं थी.
मायके लौटने के दूसरे महीने ही उस ने वकील से सलाह ले कर कोर्टज़्में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया. नोटिस मिलने पर राजीव उस से मिलने आया था. वह उस से घर लौट कर चलने के लिए बहुत मिन्नत कर रहा था, लेकिन स्मिता ने उस से साफसाफ कह दिया था, ‘क्या आप ने अलग घर ले लिया है?’
‘नहीं स्मिता, मैं अपने मांबाप से अलग रहने के बारे में सोच भी नहीं सकता. बचकानी हरकत मत करो. इस से हम दोनों का जीवन बरबाद हो जाएगा.’
लेकिन उस ने समझने की कोशिश नहीं की. ऐंठ कर बोली, ‘तो फिर तलाक के लिए तैयार रहो.’
राजीव ने चलतेचलते कहा था, ‘हर बात में जिद अच्छी नहीं होती. इतना ध्यान रखना कि कोर्ट इतनी आसानी से किसी को तलाक नहीं देता, जब तक उस का कोई ठोस आधार न हो.’
स्मिता तब यह बात नहीं समझी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए उस ने एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली थी.
कोर्टज़्ने वादी स्मिता को 6 महीने का समय दिया, ताकि वह अपने फैसले पर दोबारा विचार कर सके. तब भी अगर उसे लगे कि वह अपने पति के साथ गुजारा नहीं कर सकती तो फिर से याचिका पर सुनवाई होगी. इस 6 महीने के दौरान राजीव ने फिर उस से मिलने की कोशिश की. लेकिन वह उस से बात तक करने को तैयार नहीं हुई. उसे पूरा यकीन था कि
6 महीने बाद उसे तलाक मिल जाएगा और तब वह अपनी मरजीज़्से किसी धनवान लड़के के साथ शादी कर लेगी. उस ने अखबारों, पत्रिकाओं और इंटरनैट पर अपने लिए योग्य वर की खोज भी करनी शुरू कर दी थी.
लेकिन उस की आशाओं पर पहली बार पानी तब फिरा, जब 6 महीने बाद सुनवाई शुरू हुई. हर सुनवाई पर तारीख पड़ जाती, कभी जज छुट्टी पर होते, कभी कोई वकील, कभी वकीलों की हड़ताल होती, कभी जज महोदय अन्य मामलों में बिजी होते. राजीव ने अपना जवाब दाखिल कर दिया था. वह स्मिता को तलाक नहीं देना चाहता था, जबकि तलाक की याचिका में स्मिता ने कहा था कि उस का पति उस का भरणपोषण करने में समर्थ नहीं था. राजीव की आय के प्रमाणपत्र मांगे गए थे.
यह सब करतेकरते 2-3 साल और निकल गए. फिर जज बदल गए. नए जज महोदय ने नए सिरे से सुनवाई शुरू की. हर पेशी पर केस की सुनवाई हुए बिना अगली तारीख पड़ जाती. बहुत दिनों बाद एक जज ने खुद स्मिता और राजीव से व्यक्तिगत तौर पर कुछ प्रश्न किए.
उस के बाद अगली तारीख पर फैसला सुनाया, ‘दोनों पक्षों को सुनने के बाद मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि वादी के पास अपने पति से तलाक मांगने का कोई उचित कारण नहीं है. उन के बीच कलह का मात्र एक कारण है कि वादी अपने सासससुर से अलग रहना चाहती है, लेकिन पति ऐसा नहीं चाहता.
‘वादी ने दूसरा कारण यह बताया है कि प्रतिवादी उस का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है. वादी का पति एक शिक्षक है और उस की आय का ब्योरा अदालत में मौजूद है, जिस से यह प्रमाणित होता है कि वह उस का भरणपोषण करने में सक्षम है. वादी के पास प्रतिवादी द्वारा प्रताडि़त करने का कोई प्रमाण भी नहीं है, सो वादी को निर्देश दिया जाता है कि वह पति के साथ रह कर अपना पारिवारिक दायित्य निभाते हुए रिश्तों में सामंजस्य बिठाए. मुझे विश्वास है कि दोनों सुखद दांपत्यजीवन व्यतीत करेंगे. याचिका खारिज की जाती है.’
कोर्ट का आदेश सुन कर स्मिता को गश आ गया था. लगभग 5 वर्षों बाद यह फैसला आया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह किधर जाए. उसे कोर्टज़्के आदेश के ऊपर गुस्सा नहीं आ रहा था. उस का गुस्सा राजीव के ऊपर था. वह अगर सहमति दे देता तो उसे आसानी से तलाक मिल जाता.
पतिपत्नी साथसाथ रिश्तों में तालमेल बिठा कर रहने की कोशिश करेंगे. साथ रहेंगे तो मतभेद अपनेआप दूर हो जाएंगे, लेकिन स्मिता ऐसा नहीं सोचती थी. वह अपने पति के घर नहीं गई तो राजीव उसे मनाने आया था.
‘स्मिता, तुम अपनी जिद में हम दोनों का जीवन बरबाद कर रही हो,’ उस ने कहा था.
‘मेरा जीवन तो तुम बरबाद कर रहे हो. जब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती तो तुम मुझे तलाक क्यों नहीं दे देते.’
‘पता नहीं तुम कुछ समझने की कोशिश क्यों नहीं करती. शादीब्याह कोई हंसीमजाक नहीं है कि जब चाहा ब्याह कर लिया और जब चाहा तलाक ले लिया. हमारी अदालतें भी इन मामलों को गंभीरता से लेती हैं. वे दांपत्यजीवन को तोड़ने में नहीं, जोड़ने में विश्वास करती हैं. मुझे नहीं लगता, तुम्हें आसानी से तलाक मिल पाएगा.’
‘सबकुछ बहुत आसान है. तुम मुझे छोड़ दो, तो मैं आसानी से दूसरा ब्याह कर सकती हूं.’
‘तुम सुंदर हो, इसलिए तुम्हें लगता है कि तुम आसानी से दूसरा विवाह कर लोगी. हो सकता है, तुम्हें कोई राजकुमार मिल जाए, परंतु इस बात की क्या गारंटी है कि वह तुम्हें सुख से रखेगा,’ राजीव ने ताना मारते हुए कहा था.
‘मैं उसे खुश रखूंगी तो वह मुझे सुख से क्यों नहीं रखेगा?’
‘यही व्यवहार तुम मेरे साथ भी कर सकती हो. तुम अपनी बेवजह की जिद छोड़ दो, तो खुशियां पाने के बहुत सारे रास्ते खुल जाएंगे.’
‘मैं तुम्हारे साथ ऐडजस्ट नहीं कर सकती. तुम्हारे मांबाप मुझे अच्छे नहीं लगते. तुम मुझे छोड़ दो. मैं ने शादी डौटकौम पर अपना प्रोफाइल डाल रखा है, बहुत अच्छेअच्छे प्रपोजल आ रहे हैं.’ उस ने राजीव से इस तरह कहा, जैसे वह अपना अधिकार मांग रही थी. परंतु राजीव ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. गुस्से से बोला, ‘तुम तो शादी कर लोगी, लेकिन मेरा क्या होगा? मैं दूसरी शादी नहीं कर सकता. पड़ोसी और रिश्तेदार क्या सोचेंगे कि मैं तुम्हारे साथ क्यों नहीं निभा पाया?’
‘किसी गरीब लड़की से शादी कर लो, सुखी रहोगे,’ स्मिता ने मजाक उड़ाते हुए कहा.
राजीव निराश लौट गया था.
अपने ही मांबाप के घर में उसे लगने लगा था कि वह पराई हो गई थी. बड़ा उपेक्षित सा जीवन जी रही थी वह अपने सगों के बीच में. धीरेधीरे उस की समझ में आ रहा था कि एक युवा स्त्री के लिए सही जगह उस की ससुराल ही होती है, मायका नहीं. यह समझने के बावजूद वह राजीव से कोई समझौता करने को तैयार नहीं थी. इंटरनैट पर आने वाले सुंदर प्रस्ताव उसे लुभा रहे थे. कई लड़कों से वह फोन पर बातें भी कर चुकी थी.
कुछ दिनों बाद जब उस के हाथ में कुछ पैसा आया तो उस के मंसूबों को फिर से पंख लग गए.
उस ने फिर वकील से बात की, ‘वकील साहब, आप किसी तरह मुझे मेरे पति से तलाक दिलवा दो.’
‘फिर से अर्जीज़्देनी होगी. इस बार केस में कोई ठोस वजह बतानी पड़ेगी. पहले वाले जज का तबादला हो गया है. अब नए जज आए हैं. कल तुम फीस के पैसे ले कर आ जाओ. परसों अर्जीज़् दाखिल कर देंगे.’
अर्जीज़्फिर से कोर्ट में दाखिल हो गई. कोर्टज़्ने फिर से विचार के लिए 6 महीने का समय दिया. कानून के तहत यह एक निर्धारित प्रक्रिया थी.
स्मिता नहीं जानती थी कि कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी खिंचती है. इस बार भी 3-4 महीने में एक तारीख पड़ती तो उस में सुनवाई न हो पाती. किसी न किसी कारण फिर से अगली तारीख पड़ जाती. अगली तारीख भी 3-4 महीने बाद की होती. पेशियों की तारीखें लंबी पड़ती थीं, लेकिन उम्र के हाशिए छोटे होते जा रहे थे.
एक मन कहता, अहं छोड़ कर वह राजीव के पास चली जाए, लेकिन तत्काल दूसरा मन उस की इस सोच को दबा देता. क्या वह अपनी हार को स्वीकार कर लेगी. लोग क्या कहेंगे, ससुराल पक्ष के लोग ताने मारमार कर उस का जीना हराम नहीं कर देंगे? क्या वह अपने स्वाभिमान को बचा पाएगी? उस के अंदर अहं का नाग फनफना कर अपना सिर उठा लेता और उसे आगे बढ़ने से रोक लेता. जब भी वह लंबे चलने वाले मुकदमे से हताश और निराश होती, तो उस के कदम पीछे हट कर पति से समझौता करने के लिए उकसाते, लेकिन अहं के पहाड़ की सब से ऊंची चोटी पर बैठी स्मिता नीचे उतरने से डर जाती.
एक बार उस ने अपने वकील से मुकदमा वापस लेने की बात की, तो उस ने कहा, ‘अब इतना आगे आ कर पीछे हटने का कोई मतलब नहीं है.’
वह अपनी सुंदर काया को जला कर राख किए दे रही थी. 36 की उम्र में वह 45 साल की लगने लगी थी. उस के सपने टूटटूट कर बिखरने लगे थे, सौंदर्यज़्के रंग फीके पड़ने लगे थे. उस के जीवन की बगिया में न तो भंवरों की गुनगुनाहट थी, न तितलियों के रंग. उस के चारों तरफ सूना आसमान पसर गया था और पैरों के नीचे तपता हुआ रेगिस्तान था, जिस का कोई ओरछोर नहीं था.
मुकदमा चलता रहा. इस बीच न जाने कितने जज आए और चले गए, लेकिन मुकदमा अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला था. तलाक के प्रति अब उस का मोहभंग हो गया था.
कुछ और साल निकल गए. ढाक के वही तीन पात, कहीं कोई ओरछोर नजर नहीं आ रहा था.
जब उस का शरीर सूख गया, आंखों की चमक धूमिल हो गई, सौंदर्य ने साथ छोड़ दिया, बाल चांदी हो गए, तब एक दिन जज ने उस की तरफ देखते हुए पूछा, ‘क्या अभी भी आप तलाक चाहती हैं?’
उस की सूनी आंखें राजीव की तरफ मुड़ गई थीं. वह सिर झुकाए बैठा था. उस की तरफ कभी नहीं देखता था. स्मिता भी नहीं देखती थी. आज पहली बार देखा था. दोनों की आंखें चार होतीं तो बहुत सारे गिलेशिकवे दूर हो जाते. अब तक 10 साल बीत चुके थे और वह अच्छी तरह समझ गई थी कि अब उस के लिए तलाक के कोई माने नहीं थे. वह चुप रही तो उस के वकील ने कहा, ‘हुजूर, हम पहले ही कह चुके हैं कि वादी प्रतिवादी के साथ जीवन नहीं गुजार सकती.’
स्मिता का मन हुआ था कि वह चीखचीख कर कहे, ‘नहीं…नहीं… नहीं….’ लेकिन उस समय जैसे किसी ने उस का गला दबा दिया था. वह कुछ नहीं कह पाई थी और तब कोर्ट ने निर्देश दिया, ‘कुछ दिन और साथ रह कर देखो.’ लेकिन दोनों कभी साथ नहीं रहे. दोनों ही पक्ष इस बात को कोर्टज़्से छिपा रहे थे. वह इसलिए इस तथ्य को छिपा रही थी कि कोर्ट उस के आदेश की अवहेलना मान कर उस के खिलाफ कोई कार्यवाही न कर दे. राजीव पता नहीं क्यों इस तथ्य को छिपा रहा था. संभवतया वह स्मिता की भावनाओं के कारण इस बात को कोर्टज़्से छिपा रहा था.
सब के अपनेअपने अहं थे, अपनेअपने कारण थे. कोर्ट की अपनी रफ्तार थी. वह किसी की निजी जिंदगी से प्रभावित नहीं हो रही थी, लेकिन 2 जिंदगियां अदालती कार्यवाही में फंस कर पिस रही थीं.
सोचसोच कर उस ने अपने को जिंदा लाश बना लिया था. एक दिन वकील का उस के पास फोन आया कि अगली पेशी पर कोर्टज़्का आदेश आएगा. राजीव ने लिख कर दे दिया है कि वह उस को तलाक देना चाहता था. सुन कर स्मिता के दिल में एक बड़ा पहाड़ टूट कर गिर गया. वह अंदर से रो रही थी, परंतु बाहर उस के आंसू सूख गए थे. वह एक सूखी झील के समान थी, जिस में गहराई तो थी, लेकिन संवेदना और जीवन के जल की एक बूंद भी न थी.
राजीव के लिख कर देने के बाद ही शायद वर्तमान जज को यह भान हुआ होगा कि इतने सालों बाद भी अगर पतिपत्नी सामंजस्य नहीं बिठा पाए तो उन्हें तलाक दे देना ही बेहतर होगा. अगली पेशी पर वह कोर्ट गई, राजीव भी आया था. वह भी उस की तरह बूढ़ा हो गया था. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा था. राजीव की आंखों में गहन पीड़ा का भाव था. वह आहत था, लेकिन अपनी पीड़ा किसी को बयान नहीं कर सकता था. वे दोनों विपरीत दिशा में खड़े हो कर फैसले का इंतजार करने लगे.
और आखिरकार कोर्टज़्का फैसला आ गया था. उसे तलाक मिल गया था, लेकिन वह खुश नहीं थी. 11 साल बहुत लंबा वक्त होता है. इतने सालों के बाद अब तलाक ले कर उस के मन में किस तरह के जीवन की अभिलाषा बची थी.
अब आगे क्या…एक बार फिर से वही प्रश्न उस के सामने था. अंधेरा घिर आया था. चारों तरफ बत्तियां जल गई थीं. लेकिन उस के अंदर असीम अंधेरा था. उस का दिल डूब रहा था, उस का सारा सौंदर्य खत्म हो गया था. सौंदर्यज़्के जाते ही उस का घमंड भी न जाने कहां गायब हो गया था. अब उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे? कोई भी तो उस का नहीं था इस दुनिया में? भाईभाभी पहले ही उस से विमुख हो गए थे. पति से तलाक मिल गया. अब उस का कौन था? आधी उम्र बीत जाने के बाद वह किस के सहारे जीवन बिताएगी. दूसरा विवाह कर सकती थी. बुढ़ापे तक लोग एकदूसरे का सहारा ढूंढ़ लेते हैं.
उस का मन बैचेन था और वह भाग कर कहीं चली जाना चाहती थी. आज उस का अहं चकनाचूर हो गया था.
मन में एक संकल्प लेने के बाद वह एक तय दिशा में चल पड़ी. गली बड़ी सुनसान थी. चारों ओर अंधेरा था. केवल घरों का प्रकाश खिड़कियों से छन कर गली में आ रहा था. ऐसे में गली में सबकुछ साफसाफ नहीं दिखाई दे रहा था, लेकिन स्मिता के मन के अंदर एक अनोखा प्रकाश व्याप्त हो गया था, जिस में वह सबकुछ साफसाफ देख रही थी. अब उस के मन में कोई दुविधा नहीं थी.
घर के अंदर भी सन्नाटा था. उस ने धीरे से घंटी दबाई, अंदर से घंटी की आवाज सुनाई दी. फिर 2 मिनट बाद दरवाजा खुला. उस के सामने मुदर्नी चेहरा लिए राजीव खड़ा था. मूक, अंदर का प्रकाश स्मिता के चेहरे पर पड़ रहा था. वह पहचान गया था, लेकिन तुरंत उस के मुंह से आवाज नहीं निकली. स्मिता का दिमाग स्थिर था, मन शांत था. दिल में बस एक गुबार था, जो बाहर निकलने के लिए बेताब हो रहा था.
‘‘राजीव,’’ उस ने भीगे स्वर में कहा. राजीव कुछ कहना चाहता था, लेकिन स्मिता ने उसे लगभग धकेलते हुए कहा, ‘‘मैं बहुत थक चुकी हूं, राजीव, कुछ देर बैठना चाहती हूं.’’ राजीव ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया. वह अंदर आ कर धड़ाम से सोफे पर गिर गई और लंबीलंबी सांसें लेने लगी. राजीव दौड़ कर एक गिलास पानी ले आया और उस के हाथ में थमा कर बोला, ‘‘लो, पी लो.’’
राजीव ने सिर झुका कर कहा, ‘‘सबकुछ खत्म हो गया.’’
वह उठ कर सीधी बैठ गई, ‘‘नहीं राजीव, सबकुछ खत्म नहीं हुआ है. जीवन कभी खत्म नहीं होता, आशाएं कभी नहीं मरतीं. अगर कुछ खत्म हुआ है, तो मेरा अज्ञान, मूढ़ता और घमंड. मेरा सौंदर्यज़्भी खत्म हो गया है, लेकिन तुम्हारे लिए प्यार बढ़ गया है.’’
‘‘अब इस का कोई अर्थ नहीं है,’’ राजीव ने मरे स्वर में कहा.
‘‘क्या हम एकदूसरे के पास वापस नहीं आ सकते?’’ उस ने गिड़गिड़ाते स्वर में कहा और उस की बगल में आ कर बैठ गई, ‘‘मैं ने आप को बहुत कष्ट दिया, लेकिन सच मानिए, बहुत पहले ही मेरी समझ में आ गया था कि मैं जो कर रही थी, सही नहीं था.’’
‘‘फिर तभी लौट कर क्यों नहीं आई?’’ राजीव का स्वर थोड़ा खुल गया.
‘‘बस, अविवेक का परदा पूरी तरह से हटा नहीं था. अहं की दीवार तड़क गई थी, लेकिन टूटी नहीं थी. परंतु आप ने क्यों बयान दे दिया कि आप भी तलाक देना चाहते हो?’’
‘‘स्मिता, तुम्हें नहीं पता, अदालतों और वकीलों के चक्कर में न जाने कितने परिवार बरबाद हो गए. पहले मुझे लगता था, दोएक साल तक कोर्ट के चक्कर लगाने के बाद तुम्हारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी और तुम तलाक का मुकदमा वापस ले लोगी. परंतु जब देखा 11 साल निकल गए, जवानी साथ छोड़ती जा रही है. तब मैं ने कोर्ट में अपनी सहमति दे दी, वरना यह कार्यवाही जीवन के अंत तक समाप्त नहीं होती.’’
स्मिता कुछ पल तक उस के चेहरे को देखती बैठी रही, फिर पूछा, ‘‘तो क्या अदालत का फैसला मानोगे या…’’ उस ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
राजीव के दिल में एक कसक सी उठी. वह कराह उठा, ‘‘मेरे मन में कभी भी तुम्हें ठुकराने की बात नहीं आई, यह तो तुम्हारी जिद के आगे मैं मजबूर हो गया था, तभी…’’
‘‘तो क्या आप को मन का फैसला मंजूर है?’’
राजीव कुछ नहीं बोला, बस, भावपूर्ण आंखों से उस के मलिन चेहरे पर निगाह गड़ा दी. स्मिता समझ गई और धीरे से अपना सिर उस के कंधे पर रख दिया.